चलो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बहाने फिर वहीं कार्यक्रम दुहराएं, रांची-लोहरदगा मार्ग पर महिलाओं से ट्रेन चलवाएं, मीडियाकर्मियों से वाहवाही लूटें
चलो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, इसी बहाने एक बार फिर रांची-लोहरदगा सेक्शन पर महिलाओं द्वारा ट्रेन चलवा दें और मीडियाकर्मियों से वाहवाही लूट लें। जी हां, रांची रेल मंडल के होनहार रेल अधिकारियों ने फिर वहीं कार्यक्रम दुहराया है, जो पूर्व में ये कई बार कर चुके हैं। जिसको लेकर पहले भी मीडियाकर्मियों ने रांची रेल मंडल के अधिकारियों की जय-जयकार की थी। आज फिर उन्हें जय-जयकार करने का मौका मिला। अखबारों को रांची रेल मंडल के वरीय अधिकारियों के जय-जयकार से रंग दिया।
ऐसे भी रंगना जरुरी है। रांची रेल मंडल के वरीय अधिकारियों से जितना मेल-जोल होगा। उतना ही मीडियाकर्मियों को फायदा होगा, क्योंकि अंत में अपनों को जब ट्रेन में आरक्षण नहीं उपलब्ध होता हैं, तो यही प्यारे वरीय रेल अधिकारी ही तो काम आते हैं। ऐसे में इन्हें रुष्ट करने से क्या फायदा? इसलिए रेलवे अधिकारियों को प्रसन्न रखना भी तो मीडियाकर्मियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस धर्म का निर्वहण करना भी तो जरुरी है। तभी तो हर अखबारों ने इस समाचार को प्रमुख स्थान दिया है।
शुक्रवार को रांची रेल मंडल के अधिकारियों ने महिला दिवस मनाया, क्योंकि महिला दिवस तो आठ मार्च, दिन बुधवार को था और आठ मार्च को होली थी, इसलिए रांची रेल मंडल ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 10 मार्च को मनाया और इस एवज में 08689 मेमू पैसेंजर ट्रेन का संचालन महिलाकर्मियों द्वारा करवाया। बताया गया कि इस मेमू पैसेंजर ट्रेन में लोको पायलट, सहायक लोको पायलट, टिकट जांचकर्ता, प्रबंधक, सुरक्षाकर्मी तक सभी महिलाएं थी। बताया गया कि वरिष्ठ मंडल परिचालन प्रबंधक (योजना) श्रेया सिंह ने महिलाकर्मियों को गुलाब का फूल देकर प्रोत्साहित किया था। इस दौरान सीनियर डीसीएम निशांत कुमार समेत रांची रेल मंडल के कई रेल अधिकारी मौजूद थे।
ज्ञातव्य है कि तीन वर्ष पहले भी रांची रेल मंडल में रांची से टोरी और चक्रधरपुर रेल मंडल में चक्रधरपुर से राउरकेला तक महिलाओं ने ट्रेन की कमान संभाली थी। रांची रेल मंडल में ही एक वर्ष पहले रांची रेल मंडल के डीटीएम आदित्य कुमार चौधरी ने रांची लोहरदगा टोरी ट्रेन के परिचालन का कमान महिलाओं को सौंपा था। 2018 में भी इसी प्रकार का दृश्य देखा गया था।
सवाल उठता है कि महिलाओं के सम्मान देने के नाम पर यह केवल 8 मार्च को ही इस प्रकार का ड्रामा क्यों? जबकि वो हर प्रकार से पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं। वो सिर्फ 8 मार्च ही नहीं बल्कि हर दिन अपने कर्तव्यों का निर्वहण इसी प्रकार कर सकती है। तो ऐसे में ये दृश्य प्रतिदिन क्यों नहीं दिखता। आखिर ये ड्रामा सिर्फ रांची लोहरदगा टोरी रेल मार्ग पर ही क्यों? दूसरे जैसे रांची-बोकारो-धनबाद रेलमार्ग पर क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि रांची रेल मंडल के वरीय होनहार अधिकारियों को महसूस होता हो कि ये महिलाएं रांची लोहरदगा टोरी रेलमार्ग के लिए ही सिर्फ फिट हैं और अन्य रेल मार्गों पर नहीं। नहीं तो, ये जो ड्रामा चल रहा हैं, इस ड्रामे को अब तक दूसरे अन्यत्र स्थानों पर भी दिख जाना था।
सच्चाई यही है कि रांची रेल मंडल के वरीय अधिकारियों को अपनी तेजतर्रार, जोश से भरी व अपने कर्तव्यों के प्रति सच्ची निष्ठा रखनेवाली इन महिलाओं पर उतना विश्वास ही नहीं हैं। वे लोग डरते है कि कही कुछ बड़ी घटना हो गई, तो इसका जिम्मा कौन लेगा। इसलिए वे हर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन इस प्रकार का जो वर्षों से ड्रामा चल रहा हैं, उस ड्रामे का ही आयोजन करते हैं, पहले से मीडियाकर्मियों को बुलाकर, उनका शानदार स्वागत करते हैं, बदले में मीडियाकर्मी भी उन रेलकर्मियों की जय-जयकार करते हैं।
लीजिये अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ये कार्यक्रम हर्ष एवं उल्लास के बीच हर साल सम्पन्न हो जाता है। दूसरे दिन अखबार रंगे हुए मिलते हैं। ये उसका कटिंग कर उपर के अधिकारियों को अथवा मंत्रालय में भेजकर अपना पीठ थपथपवाते हैं और अपनी जय-जय करते/कराते हैं और उसके बाद नौ मार्च से यही महिलाएं फिर आनेवाले दूसरे वर्ष की आठ मार्च का इंतजार करती हैं। फिर वही ड्रामा चलता हैं। ये ड्रामा तब तक चलता रहेगा, जब तक इन महिला रेलकर्मियों पर दृढ़ विश्वास रखनेवाला कोई ईमानदार रांची रेल मंडल का प्रबंधक नहीं आ जाता, क्योंकि सवाल तो इनके अंदर छुपी प्रतिभाओं पर विश्वास का है।