कांग्रेस विधायक अम्बा प्रसाद की तरह घोड़े पर बैठकर घुमना शुरु कीजिये, अगर आप महिला हैं तो ऐसा करते ही सशक्त हो जायेंगी
चलिये, आप उधार के घोड़े पर चढ़कर विधानसभा के प्रवेश द्वार तक गई, फिर अपने मनपसंद की कार पर बैठकर विधानसभा की पोर्टिको तक पहुंच गई, उसके बाद सदन की कार्यवाही में भी भाग लिया, पर इस प्रकार के प्रायोजित कार्यक्रम से आम जनता को क्या मिला? किसने कह दिया कि घोड़े पर सिर्फ बैठ जाने से महिला सशक्त हो जाती है? क्योंकि जिसने ये सवाल उठाये हैं, वो भी एक महिला ही है, जो एक पोर्टल द्वारा फेसबुक लाइभ के दौरान, उसी पोर्टल पर दिये जा रहे कमेन्ट्स में अपनी मंतव्य प्रकट कर दी।
विद्रोही24 ने देखा कि उस पोर्टल पर दिये जा रहे कमेन्ट्स में बहुत कम ही लोगों ने, मतलब गिने-चुने एक-दो लोगों ने ही आपका समर्थन किया, बाकी सभी ने आपकी इस हरकत पर सवाल उठाते हुए आक्रोश ही प्रकट किया। मतलब आज आपका दिन और उस दिन भी आपको खरी-खोटी ही सुनने को मिलें तो आप समझ लीजिये कि आपके इस प्रायोजित कार्यक्रम से आपको, आपकी पार्टी को और जनता को क्या मिला?
जरा अब घोड़े से उतरिये और उस पोर्टल में आम जनता द्वारा दिये जा रहे कमेन्ट्स को पढ़िये, क्या कह रहे हैं लोग…
- राजदीप कुमार – अरे 1932 की बात करो, घोड़े की नहीं।
- सुकुमार मंडल – 1932 की बात करो।
- सागर कुमार महतो – देख थोड़ा ध्यान दीही।
- नीलम कुमारी – घोड़े पर बैठ कर सशक्त हो जाती है महिला, तो सबको घोड़े में ही बिठाओ। पढ़ना-लिखना, आत्मनिर्भर बनना, जागरुक करना सब बेकार है। असली सशक्तिकरण तो घोड़े में बैठ कर होता है – आज नया चीज पता चला।
- शुभम राज – बस आज के लिए है कि, डेली आना है।
- प्रकाश – बेटी सब कुछ कर सकती है नहीं, बेटी पहली बार विधायक बनी है। सुख में रहना है। इसलिए नौटंकी कर रही है। क्या बात है, घोड़े पर बैठी है। आज तो प्राइम टाइम मिल ही जायेगा। मैडम नौटंकी कितना दिन, और चार साल फिर दुबारा राजनीति में बात भी नहीं बनेगी। सारा पढ़ा लिखा नवजवान रोड पर अपना हक अधिकार मांग रहा है, उधर एक बार भी नजर नही जाता, सदन में झारखण्ड हित में कुछ नहीं बोली। आगे तेरा खेल खत्म, हम सब मिलकर रहेंगे।
- श्याम नारायण – घोड़ा-घोड़ी का खेल सर्कस में करना चाहिए विधानसभा में नहीं, फालतू में जनता का पैसा बर्बाद कर रही है।
- सीमन्त महतो – पता चलेगा 2024 में।
- रितेश सिंह – आप मीडिया वालों को और कोई मुद्दा नहीं मिलता।
- उमेश कुमार पप्पू – यही फुटानी ले डूबेगा और दो साल झेलना है। @ नियुक्ति वर्ष।
- दीपक माझी – 1932 की बात कीजिये।
- विक्रम पंडित – कर इ ले अत।
- पंकज कुमार – 1932 की बात करो।
- संतोष साह – अजीब पागलपन है।
- साहू आकाश – इस लेडी को सिर्फ अपनी पब्लिसिटी चाहिए, बाकी जनता चाहे जैसे रहे।
कमाल की बात है, इस विधायक को यह भी पता नहीं कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव चल रहा है कि खत्म हो गया, आप खुद उस पोर्टल के रिपोर्टस के प्रश्नों का जवाब जो अम्बा दे रही हैं, उस को सुन लीजिये, आपको हंसी आयेगी, ये आज के जमाने की विधायक है, जिसे राजनीति की वर्तमान स्टेट्स तक का पता नहीं।
इधर आजकल के संवाददाताओं व रिपोर्टर्स को देखिये, जिन्हें आजकल बोल-चाल की भाषा में न्यूज ट्रेडर्स या न्यूज सप्लायर्स भी कहा जाने लगा है, कर क्या रहे हैं। जो न्यूज ही नहीं, उसे न्यूज बनाने में लगे हैं। अम्बा घोड़े पर बैठी है और वे संवाददाता व रिपोर्ट्स सड़क पर दौड़ रहे हैं, हांफ रहे हैं, आंखों देखा हाल सुना रहे हैं, जैसे लगता हो कि स्वर्ग से स्वयं मां अम्बा इस धरा धाम पर पहुंच गई हैं, जिनके दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो गया है, लोगों को भी दिखाने की कोशिश कर रहे है कि अम्बा घोड़े पर सवार होकर आई है।
अरे भाई, इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई। कोई कुछ भी जानवर पर चढ़कर आये, आप उसके लिए हांफ क्यों रहे हो? क्यो बदहवास हो? क्यों जो न्यूज नहीं हैं, उसे न्यूज बनाने पर तूले हो? तुम इस बात को क्यों नहीं महसूस करते कि जनता तुम्हारी इन हरकतों को देखकर तुम पर हसंती है, क्यों पत्रकार की जगह स्वयं को हास्य कलाकार धूमल, मुकरी, महमूद, राजेन्द्र नाथ या जगदीप बनकर अपना मजाक उड़वा रहे हो?