अपनी बात

सुनो… सुनो… सुनो… झारखण्ड में उधार के नेता से भाजपा अपना मांग भरेगी, सुहागन बनेगी, दुधो नहाओ पुतो फलो का आशीर्वाद ग्रहण करेगी

झारखण्ड में भाजपा का अपना क्या है? प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी झाविमो से, नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी झाविमो से, सचेतक जय प्रकाश पटेल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा से, केन्द्र में बने मंत्री अर्जुन मुंडा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और अन्नपूर्णा देवी राष्ट्रीय जनता दल से। सच पूछा जाय अगर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा या अन्य दल यहां पर नहीं रहे तो भाजपा को कोई आनेवाले दिनों में नेता ही नहीं मिले।

मतलब झारखण्ड निर्माण के बाद भाजपा के अंदर एक भी ऐसा नेता केन्द्र को नहीं मिला जो अपने बलबूते पर झारखण्ड में भाजपा को मजबूती प्रदान कर सकें। हमेशा से भाजपा दूसरे दलों के नेताओं पर डोरे डालती रही, उन्हें फंसाती रही और अपना वारा न्यारा करती रही, हद हो गया, उनके केन्द्र के नेता झूठ भी इतनी सफाई से देते हैं, जैसे लगता है कि झारखण्ड की जनता महामूर्ख है।

अब जरा देखिये न। कुछ दिन पहले यानी 14 अक्टूबर को भाजपा के बड़े नेता व केन्द्र में मंत्री पद सुशोभित कर रहे अश्विनी कुमार चौबे ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने इस बात को लिखा कि बाबूलाल मरांडी इस बात की घोषणा करें कि अमर कुमार बाउरी विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता होंगे, मतलब साफ था कि अमर कुमार बाउरी नेता प्रतिपक्ष होंगे।

अपने इस बात को रखने के पूर्व उन्होंने पत्र में लाम-काम भी बांधा कि वे रांची पर्यवेक्षक बनकर आये थे, सभी विधायकों व भाजपा के वरीय पदाधिकारियों की राय ली थी। उसके बाद सभी के विचार-विमर्श उपरांत अपना प्रतिवेदन उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को दिया और सम्यक विचारोपरांत जे पी नड्डा इस बात पर पहुंचे कि अमर कुमार बाउरी को भाजपा विधायक दल का नेता तथा जय प्रकाश पटेल को सचेतक बना दिया जाय।

भाजपा के पुराने व समर्पित कार्यकर्ता को मिलेगा सिर्फ पालकी उठाने का काम

हालांकि अश्विनी कुमार चौबे का पत्र आया और सभी विधायकों व भाजपा के प्रदेश के पदाधिकारियों ने केन्द्र के इस आदेश को शिरोधार्य कर लिया, लेकिन इस पत्र ने अंदर ही अंदर इस आग को भी सुलगा दिया, इस आग को भी भड़का दिया कि आनेवाले समय में जो भी भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता या नेता हैं, उसे सिर्फ झोला ढोने व पालकी उठाने का ही काम मिलेगा, असली पद व प्रतिष्ठा उसे ही मिलेगा जो दल-बदल कर आया है, चाहे उसके अंदर योग्यता हो अथवा न हो, ये कोई मायने नहीं रखता।

भाजपा के ही कई नेता विद्रोही24 को नाम न छापने के शर्त पर बताते है कि जिस दिन भाजपा विधायक दल के नेता के चयन की बात हो रही थी। सभी एक स्वर से सी पी सिंह को लेकर एकमत थे। उसका मूल कारण भाजपा के प्रति उनका समर्पण, पुराने नेता व मंत्री तथा विधानसभाध्यक्ष के पद पर भी काम करने का अनुभव का होना तथा सभी माननीयों को एक सूत्र में ले चलने तथा सरकार को नकेल कसने में कामयाब होने का सूत्र उनके पास होना था।

लेकिन उस दिन केन्द्र के नेता कुर्मियों का वोट भाजपा को मिले, इसको लेकर ज्यादा दिमाग लगा रहे थे और झामुमो से आये नेता जयप्रकाश पटेल को नेता प्रतिपक्ष बनाने पर जोर दे रहे थे। उस दिन तो बैठक के पहले ही हल्ला था कि जयप्रकाश पटेल भाजपा विधायक दल के नेता बनेंगे, केवल घोषणा की औपचारिकता होनी बाकी है।

इसको लेकर उस दिन भाजपा विधायकों में आक्रोश भी था और इधर विधानसभा में स्पीकर ने जयप्रकाश पटेल को एक तरह से नेता प्रतिपक्ष की तरह ट्रीट करते हुए यह भी कह दिया था कि पटेल जी आप अपने विधायकों को अपने सीट पर जाने को कहें। जिससे सुनकर प्रेस दीर्घा व अध्यक्षीय दीर्घा में बैठे लोग हंसे बिना नहीं रह सकें।

दरअसल केन्द्र में बैठी भाजपा दलित-आदिवासी व पिछड़ा कार्ड खेलकर झामुमो गठबंधन को धराशायी करने की सोच रही हैं। लेकिन उसे नहीं मालूम की ये सब कार्ड झारखण्ड में कम से कम नहीं चलता। यहां की जनता किसी को भी अपना बहुमत देती है तो प्रचण्ड रुप से देती है और अगर गुस्सा करती है तो एक-एक सीट को लेकर तरसा देती है।

यह ठीक है कि प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी, नेता प्रतिपक्ष दलित और सचेतक पिछड़ा हो गया। लेकिन क्या भाजपा के केन्द्रीय नेताओं को यह भी मालूम है कि इन सारे लोगों के खिलाफ स्वयं भाजपा के कार्यकर्ता व पुराने नेताओं में ही भारी नाराजगी का जन्म हो गया है। इन सारे पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं ने भाजपा में रहकर झोला ढोने व पालकी उठाने का काम अब न करने का व्रत ले लिया हैं और अगर नहीं आपको इसकी जानकारी है तो बस 2024 की लोकसभा का परिणाम देख लीजियेगा।

अभी तो आप बहुत खुश हैं कि कुछ चुनावी सर्वेक्षण करानेवाली संगठन आपको लोकसभा की 14 में से 12 सीटें दे रहे हैं। लेकिन मैं जानता हूं कि ऐसा कुछ यहां होनेवाला नहीं हैं और अब तो और नहीं होगा, क्योंकि अब तो घर-घर में फूट है, उस फूट को कौन ठीक करेगा? अब तो जो भाजपा का वोटर हैं वो खुद ही अपने ढंग से फैसले लेगा, क्योंकि उसके पास भी अब बहुत विकल्प हैं। अगर भाजपा के पास आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी हैं तो फिर हेमन्त सोरेन उनसे कौन थोड़े ही कम है। अगर जय प्रकाश पटेल पिछड़े हैं तो मथुरा प्रसाद महतो झामुमो के कौन कम है? अगर अमर कुमार बाउरी दलित नेता है तो क्या झामुमो गठबंधन में दलितों की कमी है।

दरअसल भाजपा जिस सोच को लेकर कदम बढ़ा रही है, वहीं सोच भाजपा को खत्म भी कर रही है। शायद भाजपाइयों को पता ही नहीं। एक तो बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बने कई महीने बीत गये, पर वे आज तक अपनी एक टीम नहीं बना सकें और न बनाने दिया गया। आज भी दीपक प्रकाश की टीम ही भाजपा को चला रही है और बाबूलाल मरांडी केवल रबर स्टाम्प बने हुए हैं।

ऐसे में क्या अमर कुमार बाउरी व जय प्रकाश पटेल रबर स्टाम्प नहीं होंगे, इसकी गारंटी कौन देगा? ले-देकर भाजपा की झारखण्ड कुण्डली यही कह रही है कि पार्टी के दीपक प्रकाश के पुराने पदाधिकारियों की टीम व ये केन्द्र का नया आदेश भाजपा को जमीन पर लाकर पटक देगी। इससे हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी को कोई बड़ा या छोटा नुकसान तो नहीं होने जा रहा, उलटे भाजपा झारखण्ड में अब कही की नहीं रहेगी।