लंडन रिटर्न युवक जो शानो-शौकत की जिंदगी छोड़ विधायक बना और ग्रामीणों में ही अपनी जिंदगी ढूंढ रहा
आम तौर पर मैं जब झारखण्ड के विधायकों व सांसदों को देखता हूं तो हमें चिढ़ सी होती है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर विधायक या तो अपने परिवार के प्रति लॉयल है या धन कमाने की लालच में झारखण्ड की जनता के अरमानों को कुचल रहे होते हैं, उसमें भी ऐसा करने में भाजपा के विधायकों व सांसदों का नाम सबसे ऊपर है, पर इन दिनों झामुमो के एक विधायक ने हमें कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया। वह है बहरागोड़ा के झामुमो विधायक कुणाल षाड़ंगी।
इस युवा ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़नी शुरु कर दी है। वह मीडिया में प्रचार-प्रसार से दूर, आम जनता के बीच इस प्रकार समय गुजार रहा है, कि आप देखकर दंग रह जायेंगे। उसका मानना है कि विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है, जरुरी नहीं कि हम जनता से किये गये सारे वायदे पूरे ही कर दें, पर हम इतना तो जरुर कर सकते है कि उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताकर, उनके छोटे-मोटे कष्टों को खुद से साझा जरुर कर सकते हैं, उनकी पीड़ा को कुछ हद तक जरुर कम कर सकते हैं, हम उनके साथ रहकर यह जरुर समझ सकते है कि वे वर्तमान में किस पीड़ा को झेल रहे हैं और उन पीड़ाओं को कैसे दूर किया जा सकता है? शायद गांधी की भारत दर्शन यात्रा भी इसी को केन्द्र में लेकर बनी होगी, क्योंकि आप फाइव स्टार होटलों में शानों-शौकत वाली जिंदगी जीते हुए, आम जनता के कष्टों को दूर करने में सफलता नहीं प्राप्त कर सकतें, उसके लिए आपको गांवों में, टोलों में, मुहल्लों में जाना ही पड़ेगा।
कुणाल षाड़ंगी, इन दिनों अपने इलाके में यहीं कर रहे हैं, वे महीने में चार या उससे ज्यादा दिन विभिन्न गांवों में रात्रि प्रवास में रहते है और, वहां जाकर ग्रामीणों की समस्याओं को बखूबी नोट करते हैं, वे अचानक तय करते है कि उन्हें किस गांव में जाना है? ये पहले से तैयार नहीं रहता, जहां जिस गांव में रुके, वे वहीं किसी ग्रामीण के घर की बनी रुखा-सूखा भोजन खाकर फिट हो जाते है, खटिया पर सोना उनका फेवरिट है।
ये वह नौजवान हैं, जो लंडन रिटर्न है, पर उसे लंडन और दुनिया की चकाचौंध पसंद नहीं हैं, उसे तो ग्रामीणों की दुखभरी जिंदगी को महसूस करने और उसे खत्म करने में ही आनन्द आ रही हैं, वह लंडन की चकाचौंध भरी जिंदगी को ठुकराकर 2014 में बहरागोड़ा से झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी रहा, आनेवाले समय में भी जिस प्रकार जनता के बीच उसकी पकड़ है, उसकी जीत पक्की है। कुणाल की आम जनता से इस प्रकार मिलने की प्रवृत्ति ने बाकी सारे दलों के नेताओं की नींद उड़ा दी है।
देखने में फैशनेबल और हीरो की तरह यह स्मार्ट युवा सबको भा रहा है, सादगी और सहजता उसकी पूंजी है। उसका आम लोगों से घुलमिल जाना, उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। वह इसका ध्यान नहीं रखता कि मीडिया में उसे कितना स्थान मिलता है, मीडिया उसे भाव भी नहीं देती, पर वह इसका परवाह नहीं करता, क्योंकि वह जानता है कि मीडिया पैसों पर चलती है, इसलिए वह इन सबको दूर से प्रणाम कर, निकल पड़ता है, गांवों में। जहां सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उसका स्वागत करने और उसको अपनी समस्या बताने के लिए तैयार बैठे रहते है।
कुणाल षाड़ंगी को पता है कि ज्यादा लाम-काम बांधने से, ग्रामीण अपनी समस्याएं नहीं बतायेंगे, इसलिए वह उसी में रम जाता है, वह खटिया पर सो जाता है, वह चोप-मूरी खाता है, वह बड़ी ही सहजता से ग्रामीणों से उन्हीं की गंवई भाषा में बात करता है, और उसे वह सभी बातों की जानकारी मिल जाती है, लोग बताते है कि कुणाल षाड़ंगी उन्हें पसन्द है, क्योंकि वह लंडन की शानो-शौकत की जिंदगी, एक अच्छी नौकरी छोड़कर उसके पास आया है, जो दूसरा नहीं कर सकता, आजकल तो लोग सुविधाभरी जिंदगी जीने के लिए अपने परिवार और माता-पिता तक को ठोकर मार देते हैं, इसने तो हम ग्रामीणों के लिए शानो-शौकत की जिंदगी ठुकरा दी और हमारे बीच रहकर, हमारी जैसी जिंदगी जी रहा है। कमाल है, आज की परिस्थतियों में जहां ड्राइन्ग रुम की पालिटिक्स ही ज्यादा चल रही है, वहां ग्रामीणों के बीच रहना, टूटी-फूटी मरई में, वह भी टूटे-फूटे खाट पर सोकर रात गुजारना, जो मिल गया ग्रामीणों से खा लिया और भरोसा दिलाना कि वह कुछ करेगा, क्या कोई बता सकता है? कि झारखण्ड में ऐसे कितने विधायक है, जो कुणाल षाड़ंगी की तरह ग्रामीणों को समय दे रहे हैं।
मैंने तो खुद महसूस किया है कि यहां बहुत सारे नेता, नेता क्या मुख्यमंत्री तक गांवों में जाते है, पर जैसे ही ग्रामीण उनसे सवाल करते है, उनकी आवाज बंद करा दी जाती है, 28 सितम्बर की केरेडारी की घटना, उसका सुंदर उदाहरण है, क्या मुख्यमंत्री बता सकते है कि सीएम बनने के बाद किस गांव में जाकर खटिया पर सोकर, उन्होंने एक रात बिताये हैं या ग्रामीणों के द्वारा बनाया गया भोजन किये है, यहां तो जिस ग्रामीण के यहां सीएम या उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष को भोजन करना होता है, वहां पहले से ही एक शानदार रेस्तरां में बनी हुई चीजें और मिनरल वॉटर की बोतलें पहुंच जाती है और फिर शुरु होता है, नौटंकी का दौर। अपने पैसों से खरीदे हुए अखबारों व मीडियाकर्मियों को बुलाना, फोटो खिंचवाना तथा अखबारों व चैनलों में उसे मनपसन्द जगह दिलवाना।
खुशी हो रही है कि झामुमो के एक विधायक ने एक नई दिशा, यहां के विधायकों को देने की कोशिश की है, अगर सभी ऐसा करने लगे और सही मायनों में आम जनता के दुख-दर्द कम होने लगे तो यकीन मानिये, उसी दिन से झारखण्ड आगे बढ़ना शुरु हो जायेगा, पर यहां तो कथनी और करनी में आकाश जमीन का अंतर साफ दिखाई देता है, सत्ता मिलने के बाद तो मैंने अच्छे-अच्छों को गिरगिट की तरह रंग बदलते देखा है, उनमें हमारे राज्य के एक मुख्यमंत्री रघुवर दास भी है, जिनके भाषण में पारदर्शिता और ईमानदारी का पुट, कुट-कुट कर भरा होता है, पर सच्चाई कितनी है, वह किसी से छुपा है क्या?
जमशेदपुर की वरिष्ठ पत्रकार ने हमें बताया कि जमशेदपुर की ही एक अभिनेत्री तनुश्री दत्ता है, सोनारी आशियाना में उसके पिता का फ्लैट है, उसके अलावा नाना के मामले का जमशेदपुर में कोई कनेक्शन नहीं, हीरोइन बनने के बाद एक आध बार ही जमशेदपुर आई। वरिष्ठ पत्रकार का कहना था कि आज के युग में जहां लोग शानो-शौकत जिंदगी बिताने के चक्कर में अपने माता-पिता को भूल जाते है, आज कुणाल ने उम्र के इस पड़ाव पर अपने माता-पिता के साथ, अपने ग्रामीणों के साथ जिंदगी बिता रहा है, ये क्या कम है?
वरिष्ठ पत्रकार ने विद्रोही 24.कॉम को बताया कि उनका एक क्लासमेट है, जो विदेश में खूब कमाता है, और वहीं एक राजस्थानी से शादी कर ली और कभी अपने माता-पिता को देखने जमशेदपुर नहीं आता, उसकी बहन मुसीबत में जब आई, वह बचाने तक नहीं आया, माता-पिता को अमेरिका बुलाता है, पर खुद वह यहां आता नहीं, ऐसे-ऐसे मित्रों और दृश्यों को देखकर, और कुणाल षाड़ंगी के इस भाव को देखकर, जब वह अपने माता-पिता ही नहीं, बल्कि उन सारे बुजूर्गों का जब वह हृदय से सम्मान करता है तो वह कुणाल षाड़ंगी के प्रति हृदय से अभिभूत हो जाती है।