अपनी बात

2024 में मोदी को हराने की लालसा पाले, नीतीश को पता है कि विपक्षी दल का कोई नेता उन्हें PM पद के लायक नहीं समझता, तभी तो…

पहले सर्वाधिक स्वयं को होनहार माननेवाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह बताएं कि वे बिहार के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं या देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार है, क्योंकि इधर कुछ स्थानों पर जो उनके बयान आये हैं, वो विरोधाभास को जन्म दे रहे हैं, साथ ही लोग कन्फ्यूज्ड भी हो रहे हैं। एक जगह वे कहते है कि वे 2024 के आम चुनाव में उसी पार्टी और व्यक्ति का समर्थन करेंगे जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा और दूसरी जगह वे प्रधानमंत्री पद की लालसा भी रखते हैं।

अगर वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार है, जैसा कि महागठबंधन के कई नेता कह भी चुके हैं और इसी लालसा लेकर वे दिल्ली जाकर कई विपक्षी नेताओं से भी मिले, पटना में तेलगांना के मुख्यमंत्री के साथ प्रेस कांफ्रेस भी कर लिये, ऐसी हालात में ये कहना कि वे उसी पार्टी को समर्थन देंगे जो बिहार को विशेष दर्जा देगा, तो भाई जब आप प्रधानमंत्री पद के ही उम्मीदवार है और मान लिया कि आप प्रधानमंत्री बन भी गये तो करना तो आपको ही हैं न, बिहार को विशेष राज्य देने का दर्जा तो आपके ही हाथों में होगा न, तो फिर इस प्रकार के बयान का क्या मतलब?

कही ऐसा तो नहीं कि आपको आभास हो गया कि आप 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद पूरे देश से और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में पूरे बिहार से गायब हो जायेंगे, हमें तो लगता है कि समय देखकर यथोचित समय पाला बदल लेनेवाले महापंडित शिवानन्द तिवारी ने ठीक ही कह दिया कि अब आपको आश्रम खोल लेना चाहिए और वहां राजनीति में आनेवाले युवाओं को वहां आप प्रशिक्षण दें, ये प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम भी बुरा नहीं हैं, और कभी-कभी महापंडित शिवानन्द बाबा बक्सर वाले अच्छा बयान दे डालते है, इसलिए उस ओर ध्यान दे देना चाहिए।

सच्चाई यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री जदयू नेता नीतीश कुमार ने इस बार ऐसी पलटी मारी है कि इस पलटीमारी में इनकी सारी बुद्धि गायब हो गई है। जो राजनीतिक पंडित है, वे जानते है कि बिहार में अब जब भी चुनाव हो, चाहे लोकसभा की या विधानसभा की, जदयू कहीं भी नजर नहीं आने जा रहा, जो भी लड़ाई होगी, वो भाजपा और राजद के बीच में ही होगी, यानी बिहार की लड़ाई में केन्द्र में यही दो दल होंगे। यह आभास हालांकि नीतीश कुमार को भी है, पर वे अब बोल नहीं पा रहे हैं, बोलेंगे कैसे?

अब पलटी मारने का मौका कहां हैं, अब पलटी मार के देखे न, पूरा जदयू ही समाप्त हो जायेगा, कुछ राजद में जायेंगे और कुछ भाजपा में जाकर इनके विधायक इतिश्री कर लेंगे। ऐसे भी मौके की नजाकत को भांपते हुए, सपा वाले, साइकिलवाले भैया अखिलेश यादव ने उन्हें अप्रैल फूल बनाने का पूरा खाका तैयार कर लिया है और नीतीश को उनकी जाति के अनुरुप फूलपुर से लोकसभा सीट देने का फैसला कर लिया है, अब नीतीश उत्तरप्रदेश में कितने लोकप्रिय है, वो इस साल के यूपी विधानसभा चुनाव में पता लग ही चुका है।

रही बात तृणमूल कांग्रेस की नेतृ ममता बनर्जी हो या तेलगांना के केसीआर या राकपा के शरद पवार या शिवसेना के उद्धव ठाकरे या आप के अरविन्द केजरीवाल या सपा के ही मुलायम सिंह यादव या उछलकूद कर अपनी राजनीति खराब करनेवाले शरद यादव या राजद के मजबूत खूंटा लालू यादव नीतीश कुमार को कितना पसन्द करते हैं, वो जगजाहिर है। कांग्रेस की सोनिया जी को तो अपना लाडला राहुल के अलावे कुछ अच्छा लगता ही नहीं और इधर हर जगह से घुमकर पटना में बड़े भैया लालू प्रसाद के चरण-कमलों में नीतीश कुमार का बलिहारी जाना बता दे रहा है कि वर्तमान में उनकी राजनीति में औकात क्या रह गई है?

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ ठीक ही कहते हैं कि 17 सालों में आठ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीशजी ने कहा है कि 2024 के आम चुनाव में वो उसी पार्टी और व्यक्ति का समर्थन करेंगे जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा। मौजूदा नियमों और मानदंडों के अनुसार बिहार को किसी भी हाल में विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता, ये बात नीतीश बाबू अच्छी तरह जानते हैं। उन्होंने बिहारवासियों को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने का आश्वासन पहले भी दिया है, कुछ सार्वजनिक “आँख में धूल झोंको” कार्यक्रम भी चलवा दिए थे ताकि बिहारी वोटर्स जम कर उन्हें वोट दें।

बहरहाल, उनकी मौजूदा राजनीतिक हैसियत काफी डांवाडोल हो चुकी है, रही सही कसर उनकी वो मजबूरी पूरी किये दे रही है जिसके तहत वो “सुपर सीएम” लालूजी के दैनिक निर्देशों को मानने के लिए बाध्य हो चुके हैं। हां, तो मैं बात कर रहा था नीतीश जी की उस शर्त की जो वो 2024 में केंद्र सरकार के “किंग मेकर” के रूप में रखने का ऐलान कर रहे हैं। नीतीश जी की इस शर्त में कितना दम है ये सभी “भावी प्रधानमंत्री” अच्छी तरह जानते हैं, सबसे बेहतर नीतीश ख़ुद जानते हैं। उनकी इस हताशा भरी शर्त पर एक गीत की कुछ पंक्तियां याद आ गयीं – ” कैसे बाज़ार का दस्तूर तुम्हें समझाऊं, बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता”।