कनफूंकवों और रघुवर सरकार की मूर्खता देखिये, एक्रेडिएशन उसी पत्रकार को मिलेगा जो स्नातक होगा
धन्य है, राज्य की रघुवर सरकार, जो कनफूंकवों के दिव्य ज्ञान से प्रकाशित है, तथा कनफूंकवों के दिव्य ज्ञान से ओत–प्रोत होकर, कैबिनेट ही नहीं बल्कि पूरे राज्य का मार्गदर्शन कर रही हैं, और धन्य हैं वे कनफूंकवें जो अपने राज्य के मुख्यमंत्री को अपने इशारों पर ता–ता, थैया करा रहे हैं। जरा देखिये न, कल की ही बात है, कैबिनेट की मीटिंग थी, कैबिनेट की मीटिंग के बाद पता चला कि राज्य सरकार ने प्रेस एक्रेडिएशन संशोधन अधिनियम स्वीकृत किया है, जिसमें एक्रेडिएशन के लिए स्नातक या समकक्ष होना जरुरी कर दिया है।
सवाल उठता है कि जब रघुवर सरकार पत्रकारों के एक्रेडिएशन के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित कर दिया तो फिर यहीं न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का निर्धारण खुद जैसे नेताओं के लिए क्यों नहीं? जब नेता अंगूठा छाप हो सकता हैं तो पत्रकार अंगूठा छाप क्यों नहीं हो सकता, भाई? ये क्या अंधेरगर्दी हैं, पत्र और पत्रकारिता के लिए, न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का निर्धारण, वह भी एक्रेडिएशन के लिए, ये तो पत्रकारों के साथ क्रूर मजाक है।जरा सोचिये, जो बुजुर्गू है, जो चाहकर भी अब स्नातक की परीक्षा दे नहीं सकते, और न ही स्नातक हो सकते हैं, इसका मतलब उन्हें एक्रेडिएशन नहीं मिलेगा।
इन कनफूंकवों को किसने कह दिया कि डिग्री ही ज्ञान का आधार होता है, संसार में ऐसे कई लोग हैं, जो डिग्रियां नहीं ली, पर उनके बोले हुए शब्दों पर लोग रिसर्च कर रहे हैं और डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर, अपने नाम के आगे डाक्टर लगा ले रहे हैं, जैसे आप महान संत कबीर को ही ले लीजिये।
जरा रघुवर दास के आगे–पीछे करनेवाले कनफूंकवे ही बता दें कि विश्व कविगुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने किस विश्वविद्यालय से डिग्रियां ली थी, जिन्हें विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार नोबेल प्राइज मिला था। ये दो उदाहरण बताने के लिए काफी है कि डिग्री कभी ज्ञान का आधार हो ही नहीं सकता। सरकार को यह जान लेना चाहिए कि हर डिग्रीधारक विद्वान नहीं होता और न हर डिग्रीविहीन व्यक्ति मूर्ख होता है।
क्या मुख्यमंत्री रघुवर दास बता सकते है कि अगर किसी व्यक्ति को कवि बनना है, या साहित्यकार बनना है, तो वह कौन सी डिग्री प्राप्त करें या किस विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई जारी करें, ताकि कवि या साहित्यकार हो जाये, अरे भाई कवि और साहित्यकार तो जन्मजात होते हैं, उन्हें कोई बना ही नहीं सकता। ठीक उसी प्रकार, कोई भी डिग्रियां किसी को पत्रकार नहीं बना सकती, पत्रकार तो जन्मजात होता है, ऐसा नहीं कि विभिन्न संस्थानों में कुछ पैसों और अपने परिवार के लिए नौकरी करनेवाला हर व्यक्ति पत्रकार ही होता है।
ऐसे भी एक्रेडिएशन आप कब देते हो, जब तक अखबार/चैनल/पोर्टल आदि में काम करनेवाले व्यक्ति को, वहां का संपादक अनुमोदन नहीं कर देता कि वह व्यक्ति उसके संस्थान से जुड़कर पत्रकारिता कर रहा हैं, या कोई व्यक्ति जिसने कई वर्षों से विभिन्न संस्थानों में पत्रकारीय कार्य किया और फिर आज वह स्वतंत्र रुप से सिर्फ पत्रकारिता कार्य कर रहा हैं, ऐसे में संस्थान में कार्यरत संपादक किसे पत्रकार घोषित करेगा, ये सरकार कब से डिसाइड करने लगी भाई? और ये अधिकार सरकार को किसने दे दिया? ज्ञान के आधार को डिग्री से जोड़ने का आधार किस मूर्ख ने सरकार को दे दिया।
अरे मूर्खों, आप खुद बताओ कि भारत के महान पत्रकारों में से एक प्रभाष जोशी क्या स्नातक थे? अगर प्रभाष जोशी आज जीवित होते, और झारखण्ड के किसी संस्थान में आज पत्रकारीय कार्य कर रहे होते तो तुम तो उन पर भी कैंची चला देते। धिक्कार हैं तुम्हारी सोच पर।
पत्रकार, पत्रकार होता है, पत्रकार डिग्रियों का गुलाम नहीं होता, वह जनता का होता है, उसे जनता के बीच रहना होता है, वह जनसमस्याओं को अपने अखबारों में उठाता हैं, चैनलों में दिखाता हैं, ये अलग बात है कि झारखण्ड में चल रही वर्तमान सरकार जो कनफूंकवों के इशारे पर चल रही है, आजकल की पत्रकारिता को विज्ञापन का धौंस दिखाकर, प्रभावित कर रही हैं, तथा यहां के विभिन्न संस्थानों में कार्यरत संपादक उनके चरणकमलों में लोटकर अपनी पत्रकारिता पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं, लेकिन सच्चाई क्या हैं, ये तो झारखण्ड की जनता जानती ही हैं।
झारखण्ड के सभी पत्रकारों को चाहिए कि राज्य सरकार के इस निर्णय का कड़ा विरोध करें, प्रतिवाद करें तथा सड़कों पर उतरें, नहीं तो ये सरकार निरंकुशता के पहले पड़ाव की ओर बढ़ गई हैं, इसे सबक सिखाना जरुरी होगा। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ ने कहा कि पत्रकारों या सृजनात्मक कार्य करनेवाले किसी भी व्यक्ति को डिग्री में तौलना ही मूर्खता है, क्योंकि पत्रकार, साहित्यकार, कवि, कलाकार को कोई बना ही नहीं सकता, वे अपनी प्रतिभा के आधार पर चमकते–दमकते हैं, डिग्री लेना अलग बात है, और अपने कार्यक्षेत्र में निपुणता अलग बात है। दुनिया का कोई भी पत्रकार, डिग्री प्राप्त कर, श्रेष्ठता सिद्ध की हो, यह वे मानने को तैयार नहीं, पर पता नहीं आजकल के राजनीतिज्ञों को क्या हो गया, वे हर चीज अपने ढंग से देख रहे हैं, जिससे हर चीज विकृतियों का शिकार हो रहा है।
इधर रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह का कहना है कि पता नहीं किस व्यक्ति ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को ये सलाह दे डाली, सच्चाई तो यही है कि डिग्री को पत्रकारिता का आधार नहीं बनाया जा सकता और न ही आजतक बना है। पत्रकार कौन होगा, ये संपादक निर्णय करेंगे और सरकार संपादकों के निर्णयों के आधार पर उन्हें एक्रेडिएशेन देगी, लेकिन डिग्री का इसमें जोड़ना हास्यास्पद हैं, क्योंकि पत्रकारिता एक सोच हैं, जुनून है, न कि एक डिग्री।
सही तर्क और वाजिब सवाल पूछे हैं,
क्या कंनफूँकवें इसका जवाब देंगे..?