एक ही अखबार के दो संपादकों के कमाल देखिये, एक हेमन्त सरकार और उनके IAS/IPS अधिकारियों के मुंह पर कालिख पुत दी, तो दूसरा हेमन्त के गोद में मचलने को तैयार दिखा
एक ही अखबार के दो संपादकों के कमाल देखिये, एक धनबाद का संपादक है जो खनन को लेकर राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे निर्णयों को ही अपने समाचार के माध्यम से कटघरे में खड़े कर दे रहा हैं और दूसरा रांची के संपादक को देखिये, जिसे धनबाद की एक-एक घटना की जानकारी है, पर उसने उक्त सारे समाचार को दबा दिया और हेमन्त के गोद में मचलने को तैयार बैठ, वो समाचार दिया, जिसे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने रिलीज किया था।
अब सवाल उठता है कि धनबाद और रांची के पाठकों के साथ ये अन्याय है या नहीं। एक ही अखबार का संपादक धनबाद में कुछ परोस रहा है और उसी अखबार का एक संपादक उस न्यूज से अपने इलाके के लोगों को वंचित रख रहा हैं, ये तो जनता के साथ सरासर अन्याय है। आखिर इसकी वजह क्या है? कौन बतायेगा इसकी वजह? जाहिर है अखबार वाले नहीं बतायेंगे, क्योंकि उनकी अपनी मजबूरियां है, पर जनता को ये जानने का हक है।
आज का प्रभात खबर का धनबाद संस्करण देखिये, प्रभात खबर ने प्रमुखता से एक समाचार वो भी प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित की है – समाचार की हेडिंग है – “धनबाद में कोयला तस्करी के सारे रिकार्ड टूटे, हर महीने छह सौ करोड़ रुपये का काला धंधा” समाचार में साफ बताया गया है कि एनजीटी ने शुक्रवार को निरसा इलाके का निरीक्षण किया, एनजीटी को अनुमान है कि सिर्फ निरसा इलाके से ही रोज दस हजार टन कोयले का अवैध कारोबार हो रहा है।
अखबार ने अवैध कोयला तस्करी में लगे लोगों के नाम और वे किस-किस इलाके में सक्रिय हैं, उसे भी प्रकाशित किया है, इसी अखबार ने इस अवैध खनन पर विशेष पेज निकाल दिये हैं, जिसकी चर्चा धनबाद में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में हो रही हैं, और इसके समाचार सोशल साइट पर खूब वायरल हो रहे हैं, साथ ही ये बाते भी चर्चा में है कि आखिर क्या वजह रही कि प्रभात खबर का रांची संस्करण ने इस बड़े समाचार को अपने यहां जगह नहीं दी, जबकि धनबाद से प्रकाशित प्रभात खबर ने इसे मुद्दा बना दिया।
प्रभात खबर के धनबाद संस्करण ने एक तरह से देखा जाये, तो पूरी राज्य सरकार, खनन विभाग, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के चेहरे पर कालिख पुत दी हैं, उस कालिख पुतने की भी शर्म इन लोगों को होगी तो शायद सरकार और उनके अधिकारी जगे, नहीं तो इस राज्य में जो हो रहा हैं, उससे शर्म तो जनता को आ रही हैं पर सत्ता का आनन्द लेनेवाले महान दुरात्माओं को शायद ही शर्म आये।