अपनी बात

भाग्यशाली रहे हजारीबाग के राजेश कि उनके खिलाफ आरोप लगानेवालों को कनफूंकवों का साथ नहीं मिला, नहीं तो…

बड़ी खुशी हुई यह समाचार जानकर कि हजारीबाग के आरटीआई कार्यकर्ता व स्वतंत्र पत्रकार राजेश मिश्रा को उन आरोपों से मुक्ति मिल गई, जिस आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। राजेश मिश्रा हजारीबाग डिस्ट्रिक्ट मोड़ के पास से अफीम और ब्राउन सुगर के साथ गिरफ्तार किये गये थे। पुलिस जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि आरटीआई कार्यकर्ता निर्दोष है, रजिस्ट्री ऑफिस के कर्मी और भू-माफिया ने मिल कर उनके खिलाफ एक साजिश रची थी, जिसमें वे फंस गये।

इस पूरे मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जिसमें थाना प्रभारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरु हो गई है। मैं सोचता हूं कि जितना आनन-फानन में इस मामले में पुलिस जांच हुई, रिपोर्ट भी आ गई, झूठे और मक्कार लोग पकड़ भी लिये गये, अगर इन झूठे और मक्कार लोगों को कनफूंकवों का आशीर्वाद मिला होता, तो क्या राजेश मिश्रा को इतनी जल्दी राहत मिल जाती। उत्तर है – नहीं।

कमाल तो इस बात की भी है कि बड़ी जल्दी राजेश मिश्रा के पक्ष में आंदोलन भी खड़ा हो गया और हजारीबाग से लेकर रांची के कई बड़े-बड़े और भारी-भरकम पत्रकार के साथ-साथ कई पत्रकार संघों को भी उनका साथ मिला, जो मिलना भी चाहिए, मैं इसके पक्ष में हूं। इन सारी भारी-भरकम संगठनों-पत्रकारों के उनके पक्ष में उतरने के बावजूद भी, अगर कनफूंकवों को झूठे-मक्कारों को समर्थन मिल गया होता, तो क्या राजेश मिश्रा को राहत मिलती, उत्तर होगा – नहीं।

अब आप पूछेंगे कि मैं ये बातें किसलिए लिख रहा हूं, उत्तर है – कि ऐसे-ऐसे कई झूठे आरोपों में कई पत्रकार अब भी पीस रहे हैं, पर उन्हें न तो किसी ने समर्थन दिया और न ही उनके पक्ष में बोलने की कोशिश की, जिससे वो पत्रकार आज भी झूठे केसों के चक्कर में अदालतों की परिक्रमा कर रहे हैं। झूठा केस करनेवाला भी जानता है कि पूरा केस झूठा है, पर चूंकि कनफूंकवों को उसे आशीर्वाद प्राप्त है, तो भला उस सच्चे व्यक्ति को कौन साथ देगा? उसे कौन कहेगा कि हम आपके साथ है, कौन ऐसा साहसी व्यक्ति है कि वो कनफूंकवों के साथ लोहा लेगा? क्या उसे भगवान ने बीवी-बेटा, बेटी-बहू तथा सपने नहीं दिये हैं?

दरअसल राजेश मिश्रा को त्वरित न्याय इसलिए मिल गया, क्योंकि उसमें कनफूंकवें इन्वाल्व नहीं थे, नहीं तो राजेश कितना भी मुड़ी पटक लेते, इतना जल्दी राजेश मिश्रा को राहत मिलना नहीं था। हमारे पास ऐसे कई उदाहरण है कि बेईमानों ने कई लोगों को झूठे मुकदमें में फंसा दिये हैं, राज्य का राजा भी जानता है कि मुकदमें झूठे हैं, जिस थाने में केस दर्ज होता है, उस केस की बिना जांचे-परखे ही प्राथमिकी दर्ज कर उनमें अनाप-शनाप धाराएं लगा दी जाती है, और जिस पर आरोप लगा है, वो बंदा स्वयं थाने में जाकर अपना पक्ष रखता है तो उससे कहा जाता है कि आप बेल ले लीजिये।

अरे भाई जब अपराध उसने किया ही नहीं, तो बेल कैसे ले लें? आप जांच करो? जांच भी वो नहीं करेगा, क्योंकि उसे तो कनफूंकवों के आदेश पर केस प्राप्त हुआ है, तो जो कनफूंकवे कहेंगे, वहीं करना है, तो जांच क्या खाक करेंगे, ऐसे में जो ईमानदार है, एक और केस को झेले। अरे होना हैं तो वहीं जो ईश्वर चाहेगा, पर थाने ने कनफूंकवे के कहने पर उस व्यक्ति की रातों की नींद तो हराम कर दी।

ये बातें केवल रघुवर काल की ही नहीं है, ये तो हेमन्त काल में भी चल रहा है क्योंकि सत्ता की अपनी हनक होती है, जो दिखती है, वो होती नहीं, जो कहती है वो करती नहीं, और जो करती है, वो ऐसा करती है कि ईमानदार व्यक्ति का पूरा जीवन लड़ने में ही खत्म हो जाता है। इसलिए बधाई राजेश आपको, इसलिए नहीं कि आपको आरोपों से मुक्ति मिल गई। बधाई इसलिए कि आपके केस में झूठे-मक्कारों पर कनफूंकवों की कृपा नहीं थी, वे इसमें इनवॉल्व नहीं थे, अगर वो इनवॉल्व होते तो आप इतनी जल्दी आरोपों से मुक्त नहीं होनेवाले थे। यह सच्चाई हैं, इसे स्वीकार करें या न करें, आपकी मर्जी।