रघुवर सरकार का कमाल, ‘बदलता झारखण्ड’ बन गया ‘लुढ़कता झारखण्ड’
जी हां, ये रघुवर सरकार के काम-काज के तीन साल का कमाल है। अपना बदलता झारखण्ड ‘लुढ़कता झारखण्ड’ में बदल गया है। जो सरकार ये कहते नहीं थकती थी कि व्यापार सुगमता सूचकांक में हम तीसरे स्थान पर हैं, आज वह लुढ़क कर 12 वें स्थान पर चल गया हैं, यानी झारखण्ड टॉप टेन में भी नहीं हैं, यानी ‘मोमेंटम झारखण्ड’ और ‘झारखण्ड माइनिंग शो’ के आयोजन के बाद झारखण्ड की यह स्थिति है। तीन साल किसी भी सरकार के लिए कम नहीं होता, बेहतर करनेवाले के लिए तो एक साल काफी है, पर यहां तो मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों ने झारखण्ड की इस प्रकार गर्दन पकड़ ली हैं कि यहां विकास की परिछाई भी नहीं दिखाई दे रही।
याद करिये 2 अक्टूबर 2015, स्थान दुमका और ठीक उसी दौरान बिहार के विधानसभा का चुनाव प्रचार का समय। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गर्व से कह रहे थे कि उनकी सरकार मात्र कुछ ही दिनों में झारखण्ड में आयी है और देखते ही देखते झारखण्ड व्यापार सुगमता सूचकांक में तीसरे स्थान पर आ गया। याद करिये उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव, स्थान इलाहाबाद, जहां प्रधानमंत्री गर्व से कह रहे है कि अगर विकास देखना हो तो झारखण्ड जाइये। याद करिये दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास को किस प्रकार घुमाया जा रहा था, पर आज गुजरात के विधानसभा चुनाव में इन्हें दूर रखा जा रहा हैं, आखिर ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि केन्द्र को भी पता है कि झारखण्ड की सच्चाई क्या है?
नीति आयोग का कथन है कि झारखण्ड में स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा की बद से बदतर स्थिति है। झारखण्ड में पांच साल तक के 45.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है। पांच साल से कम उम्र के 47.8% बच्चे अंडरवेट है। स्वास्थ्य के हालात ये है कि यहां एक हजार की आबादी पर 0.14 डाक्टर और एक हजार की आबादी पर 0.24 ही बेड है यानी झारखण्ड का स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे है। शिक्षा और बिजली के हालात भी ठीक नहीं है। बिजली पहुंचाने के मामले में नीचे के तीन राज्यों में बिहार, नागालैंड के बाद झारखण्ड का नंबर है, पर राज्य के विज्ञापनों में आप पायेंगे कि झारखण्ड के अलावा विकास में दूसरा कोई राज्य ही नहीं।
स्थिति यह है कि तीन साल पहले जो मंत्री बने हैं, वे आज भी उसी मंत्रालय को संभाल रहे हैं, और अपने हिसाब से राज्य का कितना विकास कर रहे हैं? उसका प्रमाण नीति आयोग का यह प्रजेंटेंशन है, जो अमिताभ कांत ने संसदीय समिति के समक्ष दिया। मंत्रियों, अधिकारियों व कनफूंकवों की जमातों की बल्ले-बल्ले हैं, लोग भूख से मर रहे हैं, जिस परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाया कि उसका टूटा मकान बना दिया जाय, उसके टूटे मकान बनाने के लिए न तो प्रशासन के पास और न ही राज्य सरकार के पास समय है।
कल तक ‘खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में और शहर का पानी शहर में’ का नारा देनेवाले मुख्यमंत्री रघुवर दास को ये नारा भी अब याद नहीं हैं। योजना बनाओ अभियान के नाम पर जनता को धूल झोंकनेवाले, ये लोग एक बार फिर बजट के पूर्व चर्चा के नाम पर विभिन्न शहरों में शामियाने लगा रहे हैं, पर इसका कितना सुखद परिणाम निकलेगा? यह इसी से पता चल जायेगा कि आप मुख्यमंत्री से पूछ लीजिये कि पिछले साल जब आप बजट पूर्व चर्चा के लिए लोगों से विचार मांगे थे, उन विचारों पर आपने कितना ध्यान दिया? आप तो जनता के हितों पर ध्यान ही नहीं देते, पर कनफूंकवों की बातें खुब सुनते है, उसका प्रमाण है – मोमेंटम झारखण्ड, झारखण्ड माइनिंग शो। नहीं, तो बताइये इस प्रकार के आयोजन का प्रस्ताव, झारखण्ड की किस जनता ने दिया? मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, आपके पास इस सवाल का जवाब नहीं हैं। आपने खुद ‘बदलता झारखण्ड’ का नारा दिया और खुद ही इसे ‘लुढ़कता झारखण्ड’ में तब्दील कर दिया, सच्चाई सबके सामने हैं, झूठ बोलने से क्या फायदा?