ऐसे-ऐसे कई उप सभापति आए और गये, लोग उन्हें जानते तक नहीं, समझे भाई लोग
भाई, एक अखबार में कभी प्रधान संपादक के रुप में काम करनेवाला व्यक्ति राज्यसभा का उपसभापति बनता है तो वह अखबार बिहार और झारखण्ड से निकलनेवाले अपने सभी अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर लिखता है कि ‘प्रभात खबर के हरिवंश बने उपसभापति बिहार व झारखण्ड को गर्व’ और बंगाल में लिखता है ‘प्रभात खबर के हरिवंश बने उपसभापति बिहार झारखण्ड व बंगाल को गर्व’, मेरा कहना है कि जब बिहार, बंगाल और झारखण्ड में आपका ही अखबार है, तो तीनों राज्यों में एक ही प्रकार का वाक्य क्यों नहीं? क्या जगह की कमी थी या बात कुछ और है?
दूसरी बात, अपने यहां पूर्व में कार्यरत प्रधान संपादक के लिए इतना प्रेम क्यों? तीन-तीन पेज, कहीं-कहीं तो चार-चार पृष्ठ दे दिये गये, वह भी विशेष, क्या अखबार बता सकता है कि देश या राज्य के लिए हरिवंश नारायण सिंह का क्या योगदान रहा है, भाई आपके अखबार में काम करते थे, उन्होंने अपना कारोबार फैलाया, अपनी आर्थिक समृद्धि की, राजनीतिक पहुंच बनाई, उसका फायदा उठाया, इससे देश को क्या मिला? आम जनता को क्या फायदा पहुंचा? और जब आम जनता को फायदा पहुंचा ही नहीं, तो फिर पांच रुपये देकर, बिहार-झारखण्ड या बंगाल या किसी अन्य राज्यों की जनता, किसी व्यक्ति विशेष की स्तुति क्यों पढ़े?
हद तो ये भी हो गई है कि जो लोग हरिवंश के नाम से ही नाक-भौं सिकोड़ते थे, उन्हें नाना प्रकार के विशेषणों से विभूषित करते थे, वे फेसबुक पर हरिवंश के साथ पूर्व में खिंचाए गये फोटो के साथ, अपने रिश्तों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे थे, जैसे लगता था कि उन्हें मन की मुराद मिल गई हो, और हरिवंश के उपर नाना प्रकार के आर्टिकल लिखकर उनकी स्तुति कर रहे थे, जो बता रहा था कि ये चमचई के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं था।
कभी प्रभात खबर में ही काम कर चुके ललित मुर्मू ने कहा कि ये चमचई के सिवा दूसरा कुछ है ही नहीं, अभी तो राज्यसभा के ये उपसभापति बने हैं, देखियेगा, जब वे रांची आयेंगे तो उनका तोरणद्वार बनाकर भी स्वागत किया जायेगा, रांची एयरपोर्ट पर भी चमचों की भारी भीड़ लग जायेगी, जो अपने चेहरे चमकाने की कोशिश करेगी, तथा हरिवंश के साथ अपने रिश्तों को, नये सिरे से मजबूत करने की कोशिश करेगी।
आश्चर्य इस बात की है कि फेसबुक और अन्य सोशल साइटों पर हरिवंश की स्तुति गा रहे, चमचई कर रहे पत्रकारों तथा अन्य तथाकथित बुद्धिजीवियों पर ही, प्रभात खबर में काम कर चुके एक संपादक ने फेसबुक पर कड़ी टिप्पणी की, और ऐसे लोगों के लिए ‘बेहयाई’ शब्द का प्रयोग किया, और जब उस पोस्ट पर भारी भड़कम कमेन्ट्स आने लगे, तो उस संपादक ने बड़ी सफाई से उस पोस्ट की हो डिलीट कर दिया, शायद उसे लग गया कि कहीं हरिवंश तक ये बात पहुंची तो कहीं हरिवंश इसे बुरा न मान लें, और जो पूर्व में जो संबंध बना था, उस संबंध में कही ग्रहण न लग जाये, क्योंकि बेवजह संबंध खराब करने और वह भी तब, जब आज वह व्यक्ति ताकतवर बनकर उभरा है, उससे टकराने में अपना नुकसान ही है।
हमारे पास ऐसे बहुत सारे लोगों की सूची है, जो हमसे कई बार, हमारे समक्ष हरिवंश के लिए, आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया, पर परसो से लेकर आज तक, वे जब भी मिले, उनके सुर बदले हुए थे, सभी के होठों पर ‘हरिवंश शरण गच्छामि’ के ही मूल मंत्र थे, तभी किसी ने हमसे कहा – मिश्र जी, अपने यहां उगते सूर्य को सभी नमस्कार करते हैं। मैंने तपाक से उक्त व्यक्ति को कहा कि मैं डूबते सूर्य को सर्वाधिक नमस्कार करता हूं क्योंकि डूबता सूर्य ही हमारे अस्तित्व की पहचान कराता है, गौतम बुद्ध को भी यहीं ज्ञान दिया था, जब उन्होंने वृद्ध, रोगी और मृतक को देखा था। जनाब चुप हो गये।
पत्रकारिता में पढ़ाई कर रहे, एक बच्चे ने कल ही हमसे पूछा था कि सर हरिवंश जी तो राज्यसभा के उपसभापति बन गये, क्या ये एक पत्रकार के लिए गौरव की बात नहीं, और ऐसे भी एक पत्रकार इतने ऊंचे पद पर कहां पहुंचता हैं, सचमुच गौरवान्वित तो मैं भी हूं और दूसरा सवाल कि अगर हरिवंश जी वहां नहीं पहुंचते तो फिर कहां होते?
मैंने उस बच्चे को कहा कि तुमने महात्मा गांधी का नाम सुना है, वो ‘हरिजन’ पत्रिका के संपादक थे, वे भी पत्रकार थे। मैने उससे कहा कि तुमने बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर का नाम सुना है, वो भी ‘मूकनायक’ पत्रिका के संपादक थे, तुमने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सुना है, वे कई अखबारों-पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे। एक महात्मा बन गया, दूसरा दलितोद्धारक बन गया और तीसरा भारत का प्रधानमंत्री बना, और ये तीनों अपने पुरुषार्थ के द्वारा, न कि किसी नेता का सामान ढोकर, उसकी आरती उतारकर, या कलम को गिरवी रखकर।
मैंने उससे कहा कि पत्रकार बनता नहीं और न ही बनाया जाता है, पत्रकार पैदा होता है। तुम्हें वो हर चीज मिलेगा, जो तुम चाहते हो, पर वो चीज कैसे चाहते हो, ये तुम्हें तय करना है, नैतिकता के सहारे या अनैतिकता के सहारे। नैतिकता के सहारे चलोगे तो मरने के बाद भी जिंदा रहोगे और अनैतिकता के सहारे चलोगे तो जिंदा रहने के बावजूद मृत्यु को प्राप्त होगे, ये तय तुम्हें करना है, किसी दूसरे को नहीं, और अंत में, अगर हरिवंश में थोड़ी भी नैतिकता होती, तो वे आज पत्रकारों के गॉडफादर होते, जो उन्होंने खो दिया।
एक बात और ईश्वर तुम्हें सर्वोच्च स्थान देने के लिए तैयार है, यह भी तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि तुम सर्वोच्च स्थान पर जाना चाहते हो या नहीं, क्योंकि तुम्हारी नजर एक खास पद पर टिकी होती है, और ईश्वर की तो कई स्थानों पर टिकी होती है, जो ईश्वर पर विश्वास करता है, नैतिकता को अपनाता है, वह गांधी, अम्बेडकर बन जाता है और जो ऐसा नहीं करता, कालातंराल में जीते जी समाप्त हो जाता हैं, जैसे अब मैं तुमसे सवाल पूछता हूं कि हरिवंश के उपसभापति बनने के पहले, राज्यसभा के उपसभापति कौन थे, उसने तपाक से जवाब दिया – पी जे कूरियन और उसके पहले, वह बच्चा मौन हो गया। तब मैने कहा कि मात्र पी जे कूरियन के पूर्व का उपसभापति का नाम पूछा तो तुम फेल हो गये, ऐसे में तुम हरिवंश का नाम कितने दिनों तक याद रखोगे। बेचारा मौन हो गया?
अंततः मेरे प्यारे बच्चों, जो भी बनो, पुरुषार्थ व नैतिकता के साथ उसे प्राप्त करो, अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें लोग याद रखेंगे, नहीं तो तुम समाप्त हो जाओगे, मैथिली शरण गुप्त की रचना है – नर हो न निराश करो, मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो, पर कैसा काम – अनैतिकता वाली, किसी नेता के आगे अपना जमीर बेच देने की, किसी नेता की आरती उतारने की, अगर ऐसा करते हो, तुम अपने खानदान के नाम पर कलंक हो, अब इससे ज्यादा क्या लिखूं, समझना हैं तो समझो, नहीं तो देश तुम्हारा-हमारा कितना तरक्की कर रहा हैं, वह तो पता चल ही रहा हैं।
करो चमचई, करो चमचागिरी, स्वयं भी रसातल में जाओगे और जिसकी तुम चमचई या चमचागिरी कर रहे हो, वह तो रसातल में उसी दिन चला गया, जब वह तिकड़म का सहारा ले लिया और आज जो जदयू या भाजपा के लोग हरिवंश की सफलता पर कूद रहे हैं, जरा जदयू और भाजपा के लोगों से ही पूछ लो कि जब नीतीश कुमार, लालू के साथ बिहार में सरकार बनाए थे, तब ये दोनों एक दूसरे के लिए कैसी-कैसी भाषा का प्रयोग कर रहे थे और इसकी भी क्या गारंटी कि ये व्यक्ति जदयू से ही राज्यसभा का सांसद बना रहेगा, कल हो सकता है कि दूसरी पार्टी के सहारे राज्यसभा में अपनी कुर्सी बचाने के लिए तैयार रहेगा, क्या तुम्हें पता नहीं कि हरिवंश से भी एक बड़ा पत्रकार एम जे अकबर, जो कभी कांग्रेस के टिकट पर बिहार के किशनगंज से संसदीय चुनाव जीता और आज भाजपा के सहारे विदेश राज्य मंत्री तक बना बैठा है। अरे हम कितना उदाहरण दें, चरित्र पर ध्यान दो, स्वयं चरित्र गढ़ो, देश के लिए जियो, किसी व्यक्ति-विशेष के लिए नहीं।