जनता का बढ़ा दबाव, गोड्डा से निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लड़ सकते हैं फुरकान, महागठबंधन को खतरा
लीजिये, जिस बात की आशंका थी, वहीं बात अब गोड्डा में दिखने जा रही है, कांग्रेस ने जो गोड्डा सीट झाविमो को बतौर गिफ्ट दी थी, उस गिफ्ट का बतौर झाविमो प्रत्याशी प्रदीप यादव फायदा उठा ही लेंगे, इस पर अब तलवार लटकने लगी है। रांची से लेकर गोड्डा तक अल्पसंख्यकों ने फुरकान अंसारी पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है, हालांकि फुरकान अंसारी का साफ कहना है कि वे कांग्रेस के सच्चे सिपाही है, वे कांग्रेस के साथ दगा नहीं कर सकते।
पर जिस प्रकार से जनता का दबाव हैं, उस दबाव के आगे फुरकान का संकल्प जवाब भी दे सकता है। सूत्र बताते हैं कि अल्पसंख्यकों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि वे कब तक महागठबंधन के वोट बैंक या कांग्रेस के वोट बैंक बने रहेंगे, कब तक कोई पार्टी उन्हें इधर से उधर वोट बैंक के रुप में लुढ़काती रहेगी, इसलिए वे इस बार चुनौती देंगे, चाहे उसका परिणाम जो भी हो।
अल्पसंख्यकों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि महागठबंधन में चाहे वह कांग्रेस हो या झामुमो या राजद या झाविमो, किसी ने भी अपनी ओर से एक भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े नहीं किये, पर सभी ने अल्पसंख्यक मुस्लिमों के वोटों पर गिद्धदृष्टि अवश्य रखी, भाजपा तो हमेशा से उसकी विरोधी रही है, पर जो स्वयं को हमारी हितैषी मानते हैं, उन्होंने क्या किया? वे तो जो हमारी जड़ थी, गोड्डा के फुरकान अंसारी के रुप में, उस जड़ को ही काट डाला।
बताया जाता है कि आज फुरकान अंसारी दिल्ली जा रहे हैं, दिल्ली जाने के पूर्व एक बहुत बड़ी टीम उनसे मिली और उनसे गोड्डा से चुनाव लड़ने को कहा हैं, इस टीम ने साफ कह दिया है कि कांग्रेस उन्हें टिकट दे या न दें, पर उन्हें गोड्डा से चुनाव लड़ना ही हैं, चाहे निर्दलीय के रुप में ही चुनाव लड़ना क्यों न पड़ें? फुरकान अंसारी पर बढ़ते दबाव से अब गोड्डा में समीकरण बदलने लगे हैं, अगर अल्पसंख्यकों का दबाव काम आ गया तो गोड्डा से अप्रत्याशित चुनाव परिणाम आयेंगे।
और इसका अगर श्रेय जायेगा तो इस श्रेय के हकदार कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. अजय कुमार ही होंगे, क्योंकि वर्तमान में उनकी अदूरदर्शिता के कारण कांग्रेस जो सात सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं, अगर इसमें तीन सीटे भी वो जीत लें, तो ये बहुत बड़ी बात होगी, क्योंकि हर जगह बगावत की बूं उसके हार की प्रतिबिम्ब को उजागर कर रही हैं। जिसमें खूंटी तो क्लियर ही हैं और गोड्डा तो खुद ही झाविमो को देकर गवां चुकी, आगे जहां अन्य प्रत्याशियों की बात हैं तो जिस प्रकार से इनका चुनाव प्रचार चल रहा हैं, स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती।