राजनीति

मिलिये झामुमो के एक ऐसे विधायक मथुरा महतो से, जो सरल है, सहज है, सहृदय है

नाम मथुरा प्रसाद महतो। तीन बार विधायक। हमेशा टुंडी विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। मंत्री तक बने, पर घमंड आज तक छू नहीं सका। हमेशा सफेद कुर्ता-पायजामा में नजर आये। कोई बुलाएं, चाहे वो झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाला ही क्यों न हो, बड़े आदर के साथ उसके घर पहुंचे, जमीन पर ही बैठ गये और लीजिये अंतररंगता शुरु।

बातचीत का ऐसा सिलसिला शुरु, ऐसी हंसी-ठिठोली शुरु, कि उस झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे परिवार की गम कब-कहां काफूर हो गई, कुछ पता ही नहीं चलता। यहीं नहीं इसी बातचीत के क्रम में उक्त परिवार की समस्या भी पता लग गई और समस्या के निदान में मथुरा महतो लग गये।

मथुरा महतो के चाहनेवाले आज भी कहते है कि वो मंत्री हो या विधायक, कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। वे कल की तरह आज भी जी रहे हैं, उनके रहन-सहन पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा। आप कोई भी हो, कोई एप्वाइंटमेंट की जरुरत ही नहीं, जब चाहे मिलिये, उनके लिए सभी का दरवाजा खुला है। हमारी पहली मुलाकात मथुरा महतो से तब हुई जब मैं दैनिक जागरण धनबाद में कार्यरत था।

उस वक्त दैनिक जागरण में ही कार्यरत संवाददाता दिलीप सिन्हा ने उनसे होटल वसुंधरा में मुलाकात कराई थी, क्योंकि दैनिक जागरण का कार्यालय भी उसी होटल वंसुधरा में था। मेरी पहली मुलाकात जो मथुरा महतो से उस दिन हुई, उसका सिलसिला आज तक रुका नहीं है, उसका मूल कारण उनकी सादगी हमें आज भी खींचती है।

सादगी का सबसे सुंदर उदाहरण उपर दिया गया चित्र है, जिसमें वे साधारण तरीके से एक कुर्सी पर बैठे हैं और उनके दोनो पोते उनके अगल-बगल खड़े हैं, पोती जो रोटी बना रही है, उस पोती को रोटी बनाने में वे सहयोग कर रहे हैं। जहां रोटी बन रही है, उस घर का नजारा भी देख लीजिये, कि मथुरा महतो के जीवन को किस प्रकार पेश कर रहा है।

मथुरा महतो को बाह्याडंबर, अंधविश्वास व धर्म के नाम पर चलनेवाले कारोबार पसन्द नहीं है। वे विनोद बिहारी महतो के पदचिन्हों पर चलनेवाले लोगों में से हैं। जैसे विनोद बिहारी महतो कहा करते थे कि पढ़ो और लड़ो। ये भी इन सिद्धांतों पर विश्वास करते हुए, सभी से पढ़ने को कहते हैं, क्योंकि बिना पढ़े, बिना ज्ञान अर्जन किये न तो आप अपना और न ही समाज/देश का भला कर सकते हैं।

शायद यही कारण रहा कि वे कोयलाचंल के सुदूर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की ज्योत जला दी। जहां एक भी डिग्री कॉलेज नहीं थी, वहां इनके द्वारा पांच-पांच डिग्रियां कॉलेज चल रही है और ये पांचों डिग्री कॉलेज विनोद बिहारी महतो, ए के राय व शिबू सोरेन के नाम पर खोले गये हैं। इन डिग्री कॉलेज खोलने के पीछे एकमात्र उद्देश्य यही है कि इन इलाकों के आदिवासियों-मूलवासियों का समूह स्वयं को शिक्षित कर अपने उद्देश्यों को सफल कर सकें।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सिन्हा कहते है कि मथुरा महतो झारखण्ड आंदोलन में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होने शिवाजी समाज के बैनर तले समाज में फैली भ्रांतियों/बुराइयों को दूर करने में भी मुख्य भूमिका निभाई। दिलीप सिन्हा ये भी कहते है कि ये मथुरा महतो का ही कमाल है कि आज इस इलाके में बीएड कॉलेज, पोलिटेक्निक व माइनिंग इंस्टीट्यूट तक खुल गये है, जहां बच्चे इसका लाभ भी उठा रहे हैं। वे कहते है कि मथुरा महतो आज भी ताम-झाम से उपर है। आम आदमी की तरह उनकी लाइफ-स्टाइल है। आज भी जमीन पर भोजन करेंगे।

आज भी वे खेती करते हैं। आज भी वे हल चलाते हैं, यानी हल को छोड़ा नहीं है, नहीं तो यहां एक बार कोई विधायक बन गया, उसका लाइफ-स्टाइल इस कदर बदल जाता है कि मत पूछिये, लेकिन मथुरा महतो तो मथुरा महतो हैं, उनको सजने-धजने से क्या मतलब? मतलब तो इससे है कि सुबह उठने के साथ ही देर रात होने तक कितने लोगों से मिले और कितने लोगों का काम किया। शायद यही कारण है कि लोगों के दिलों से मथुरा महतो आज तक निकल ही नहीं पाये और न निकल पायेंगे।