शरद संगम में योगदा के संन्यासियों का संदेश, क्रिया योग अपनाइये, स्वयं को सीधे ईश्वर से जोड़िये
शरद संगम में जो स्वर्ग का अनुभव हो रहा है, या जो स्वर्ग का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं, इस स्वर्ग को आप अपने घर में भी महसूस करें और इस ऐहसास को अपने घर तक ले जाये, क्योंकि ये आनन्द, ये ईश्वरानुभूति ही, मनुष्य को परम आनन्द की ओर ले जाती हैं। ये बातें आज शरद संगम के अंतिम दिन समापन समारोह में योगदा सत्संग आश्रम के स्वामी स्मरणानन्द ने कही। उन्होंने मुख्य पंडाल में देश-विदेश से आये भक्तों को संबोधित करते हुए कहा, ये शरद संगम दरअसल भक्तों द्वारा, भक्तों के लिए, भक्तों को समर्पित रहा है, जिसमें गुरुजी परमहंस योगानन्द जी ने अपने स्नेहाशीष की वर्षा की, जिससे लोगों को स्वर्गिक आनन्द प्राप्त हुआ।
उन्होंने सभी से कहा कि आप ध्यान को, सदा के लिए अपने जीवन की दिनचर्या में शामिल कर लें, निरन्तर इसका अभ्यास करते रहे, कभी समस्या आएं तो उन समस्याओं से घबराएं नहीं, उन समस्याओं के बीच भी खुद को एडजस्ट करना सीखें आनन्द को महसूस करते रहे, हो सके तो सामूहिक ध्यान पर विशेष ध्यान दें, इसे विज्यूलाइज्ड करें, ये न भूलें हमारे साथ गुरुजी का आशीर्वाद हैं, जो हमें निरन्तर उर्जान्वित करते रहते हैं, हमेशा याद रखें कि गुरुजी के आगे संपूर्ण समर्पण ही, हमें ईश्वरानुभूति की ओर ले जायेगा, क्योंकि वे ही हमें हर प्रकार से संरक्षित रखते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ ईश्वर ही हमें हर प्रकार से सुरक्षित, संरक्षित और प्रेम आनन्द से भर सकते हैं, और ये तभी संभव है, जब गुरु कृपा हो, गुरु की कृपा आप सब पर हो चुकी है, तभी तो आपने आनन्द को महसूस किया है, इसे आप अपने घर ले जाएं, प्रसन्न रहे, सबको प्रसन्न रखें, ध्यान हमेशा करते रहे, और फिर आप पायेंगे कि आपने वह पा लिया, जिसकी प्रत्येक जीवात्मा को आवश्यकता होती है।
लांस एंजेलिस से स्वामी चिदानन्द ने कहा मन और हृदय का द्वार खोल ईश्वर के असीम प्रेम को समझने की कोशिश करें
शरद संगम के प्रथम दिन बड़ी संख्या में रांची के योगदा सत्संग आश्रम में पधारे, देश-दुनिया के भक्तों पर अपना आशीर्वाद लूटाते, लांस एंजिल्स से स्वामी चिदानन्द ने कहा कि ये बहुत ही सुंदर मौका है, गुरु की कृपा से आप सभी रांची के योगदा सत्संग आश्रम में एकत्रित हैं, ईश्वर और गुरु की आप सब पर बहुत बड़ी कृपा है, इसलिए आप सभी हृदय का द्वार खोलकर इस प्रेम व आनन्द का स्वागत करें, गुरुओं का आशीर्वाद आपके साथ है, इस आशीर्वाद को अपने हृदय में धारण करें, क्योंकि इसी से कल्याण होना है। स्वामी चिदानन्द ने कहा कि इस पवित्र मौके पर वे भी उनके साथ है, ये अलग बात है कि शरीर वहां नहीं है, पर आत्मा की तरंगे वहीं पर हैं, उनका आशीर्वाद ईश्वरीय कृपा से आकाश मार्ग से होता हुआ, आप सभी पर बरस रहा है।
स्वामी चिदानन्द ने कहा कि जब आप मन और हृदय का द्वार खोल देते हैं, तो आपको प्राप्त करने के लिए कुछ भी नहीं बचता। उन्होंने कहा कि फिलहाल आप सबसे पहले संसारिकता और परेशानियों को धो डाले, पवित्र मन से गुरु का ध्यान करें, स्वयं को ग्रहण करने योग्य बना लें, और ग्रहणशीलता को धारण करें, प्रतिज्ञा करें कि आप प्रकाश है और दिव्य प्रकाश से आलोकित है, उस प्रकाश से ही स्वयं को अभिव्यक्त कर, स्वयं तथा दूसरों को भी आलोकित करेंगे। स्वामी चिदानन्द ने कहा कि ऊं के स्पन्दन को, उसकी ध्वनियों को, अनुभवों को महसूस करें, क्योंकि ऊं के तीन पहलू है। एक – सृष्टि, दूसरा – स्थिति और तीसरा – विलय। जब हम ध्यान, प्रेम को ओम् प्रविधि के द्वारा उस परम पिता परमेश्वर, उस दिव्य प्रकाश के साथ स्वयं को एकाकार करते हैं यो यह स्थिति सृष्टि की होती है। इसके द्वारा आप जो चाहे, ईश्वर से प्राप्त कर सकते हैं, आप प्रार्थना के द्वारा अपनी बात ईश्वर तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि ध्यान से उठकर, दैनिक जीवन के कार्यों में भी उक्त प्रकाश का सदुपयोग करें, क्योंकि उक्त प्रकाश से ही सब कुछ संचालित होता है, इसलिए उस प्रकाश को अपने साथ रख, उस प्रकाश से ही स्वयं को आलोकित करने हुए अपने दैनिन्दिनी कार्य को दिव्य बनाएं, तथा अपने अंदर की बुराइयों को, कमियों को, प्रकाश रुपी अग्नि में जलाने के लिए, भस्मीभूत करने के लिए सदैव तैयार रहे।
उन्होंने कहा कि याद रखे, ईश्वर और गुरु में कोई अन्तर नहीं, ध्यान की अवस्था में गुरु ऊं के ही मूर्त्तरुप है, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमें ऐसे गुरु मिले, जिन्होंने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा, हमेशा मेरा साथ दिया। स्वामी चिदानन्द ने कहा कि जब आप शरद संगम में आये और जब आप यहां से जायेंगे, तो जिस प्रकाश का आपने अनुभव किया, स्पन्दन महसूस किया, उस प्रकाश से स्वयं तथा दूसरे के अंधकार को रोशन करें, जो भी हमारे जीवन में आये, उसे उस प्रकाश से भरने की कोशिश करें, कोई अछूता नहीं रह जाये, सब में इसे फैलाएं, उन्होंने कहा कि एक विचार और आशीर्वाद के रुप में वे सबके साथ हैं, ईश्वरीय कृपा रही तो अगले वर्ष शरद संगम में वे सभी के साथ अवश्य उपस्थित होंगे।
ईश्वर से भिक्षुक की तरह नहीं, अपना अधिकार समझकर मांगिये
शरद संगम के दूसरे दिन प्रार्थना – जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में ईश्वर एवं गुरु में विश्वास रखना विषय पर बोलते हुए स्वामी नित्यानन्द ने योगदा से जुड़े भक्तों को कहा, ज्यादातर देखने में आया है कि जब हम अपनी कोशिशों से हार जाते हैं तब प्रार्थना पर ध्यान देते हैं, पहले हम अपने बुद्धिबल, धनबल तथा बाहुबल से उन हर चीजों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, जो पाना चाहते हैं और जब नहीं मिली तो हारे को हरिनाम के आधार पर भगवान के शरण में चले जाते हैं, और ईश्वर ऐसे है कि सब कुछ जानते हुए भी हमें वो हर चीज प्रदान करते हैं, जिसकी हम आशा रखते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान से जो भी कुछ मांगना हो, मांगने के पहले सोच लीजिये, वहीं मांगिये, जो ईश्वर आपको सहर्ष प्रदान कर दें, यही नहीं दुसरों को जिससे नुकसान पहुंचता है, ऐसी मांग कभी भी ईश्वर के समक्ष मत रखिये, क्योंकि ईश्वर को ये पसंद नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर से जब भी मांगे तो अधिकार के साथ मांगे, क्योंकि आप ईश्वर की संतान है, जैसे कोई भी माता-पिता अपनी संतान को दुखी नहीं देख सकता, उसी प्रकार ईश्वर अपनी संतानों को दुखी नहीं देख सकते। कभी भी भिक्षुक की तरह नहीं मांगे, क्योंकि अगर आप भिक्षुक की तरह मांगेगे तो फिर आपको भिक्षुक की तरह ही आपको प्राप्त होगा।
स्वामी नित्यानन्द ने यह भी कहा कि कुछ मांगने से अच्छा है कि ईश्वर को ईश्वर से ही मांग लिया जाये। उन्होंने एक राजा की कहानी सुनाई, जिसने अपनी रानियों से कुछ भी मांगने को कहा, रानियों ने भी राजा से बहुत कुछ मांगा, पर एक रानी ने राजा को राजा से ही मांग लिया, इस प्रकार वह महारानी बन गई, बाकी रानियां साधारण रानियों की तरह रह गई, इसलिए जब आप ईश्वर को ईश्वर से ही मांग लेते हैं, तो फिर आपके पास किसी चीज की कमी नहीं रहती, क्योंकि ईश्वर के आगे कुछ भी नहीं।
स्वामी नित्यानन्द ने कहा कि प्रार्थना हमेशा शांत होकर, गहरा ध्यान कर, जिसमें आप ऊं की ध्वनि सुन सके, आनन्द का अनुभव कर सकें, तभी करें, इसी से आपको लाभ भी होगा, बाकी जैसे-तैसे प्रार्थना करने से कोई लाभ नहीं। यहीं नहीं प्रार्थना करते समय, ईश्वर को भी जिम्मेदार बनाएं ताकि जो कुछ प्राप्त हो, उसमें लाभ सुनिश्चित रहें, क्योंकि जिम्मेदार जब ईश्वर बनेंगे तो वे देखेंगे कि जो भक्त मांग रहा है, वह उसके हित में है या नहीं, तभी प्रदान करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर एक है, पर उनके रुप अनेक है, जिन्हें जो रुप पसंद आता है, उसे ही स्वीकार करते है, इसलिए अगर आपको कुछ भी प्राप्त करना हो, तो आप उन्हीं ईश्वर से प्रार्थना करें, या मांगे, जिन्हें आप सर्वाधिक चाहते हैं, या उनका ध्यान करते हैं। उन्होंने कहा कि स्वयं को कभी पापी नहीं समझे, क्योंकि आप शरीर नहीं, बल्कि आत्मा है, आत्मा परमात्मा की ही एक अंश है, इसलिए आप कभी पापी नहीं हो सकते, अच्छा रहेगा कि जिस कारण से आप स्वयं को पापी समझते है, उस कारण को ही सदा के लिए समाप्त कर दें यानी बुराइयों से खुद को अलग कर लें। स्वामी नित्यानन्द ने यह भी कहा कि एक बात का ध्यान रखें कि ईश्वर के बनाये कानून को जो तोड़ता है, ईश्वर उसे कभी माफ नहीं करते, यम-नियम ईश्वर के बनाये कानून है, उनके कानून को कभी नहीं छेड़ें, ईश्वर के बनाये कानूनों का पालन करेंगे तो ईश्वर आप पर सर्वाधिक ध्यान रखेंगे और बिना मांगे ही वे सब कुछ प्रदान करेंगे, जिसकी आपको जरुरत है। उन्होंने कहा कि एक बात और याद रखें, अपने गुरुओं और ईश्वर को सदैव अपने साथ रखें, तथा अपनी इच्छाशक्ति को कभी कम नहीं होने दें, उसे सदैव मजबूत रखें, क्योंकि इसी से ईश्वर से मांगी गई वस्तु सहज उपलब्ध हो जाती है।
गुरु की कृपा को समझिये, स्वयं को मत भटकाइये
शरद संगम के तीसरे दिन स्वामी नित्यानन्द ने साधना और ध्यान से कैसे हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं, इस संबंध में अपने अनुभवों को भक्तों के साथ साझा किया। उनका कहना था कि ध्यान का मतलब ही है कि भगवान के सिवा दुसरा का ध्यान नहीं करना, और जिसने इस ध्यान को साधना का मार्ग बना दिया, तो समझ लीजिये, उसका कल्याण हो गया, उसे सफलता मिलनी सुनिश्चित है, और भगवान का ध्यान हो ही जाये, ये कोई जरुरी भी नहीं, क्योंकि हमलोग जन्म-जन्मातर से इच्छाओं के वशीभूत होकर, ध्यान नहीं कर पाते, पर आप लोग भाग्यशाली है, जिन पर गुरु की कृपा है, मन को एकाग्र करिये, मन में खुद को मत भटकाइये और जो योगदा से जुड़े गुरु आपका मार्गदर्शन कर रहे हैं, उस पर चलते चले जाइये। उन्होंने कहा कि जिस क्रिया योग का गीता में उल्लेख हुआ है, वहीं क्रिया योग को सरल भाषा में अपने गुरु जी ने हम सबके सामने लाकर पुनः प्रकट कर दिया, इसे समझिये और मोक्ष प्राप्त कर लीजिये, बंधन से मुक्त हो जाइये। उन्होंने कहा कि जिस किसी ने गुरु के साथ अन्तरसम्पर्क बनाये रखा, गुरुजी के बताये पाठ का अनुसरण किया, गुरुओं पर भरोसा रखा, उसे सफलता मिली, क्योंकि सच्चे गुरु हमेशा ईश्वर के समान है और वे अपने भक्तों पर कृपा लूटाते रहते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म अनेक है, पर आध्यात्मिकता सबकी एक है। योगदा की बताई आध्यात्मिकता का कोई जवाब नहीं, क्योंकि यह समयानुरुप है। भगवान को प्राप्त करने का जो सरल तरीका योगदा ने बताया है, वह कही नहीं। उन्होंने कहा कि खुद को हिंसा से अलग ऱखे, सत्य पर चले, ब्रह्मचर्य का पालन करे, चोरी न करें, मन और शरीर दोनों को स्वच्छ रखे, जो ईश्वर ने दिया, उसी पर संतोष करें, फिर देखे, सफलता कैसे नहीं मिलती।
ब्रह्मचारी धैर्यानन्द ने विचारों की परिवर्तनकारी शक्ति पर अपनी बातें रखी, उनका कहना था कि आप यह जान लें कि जीवन का लक्ष्य ईश्वर को पाना है, और मनुष्य शरीर, मन और आत्मा के वशीभूत हैं, हम मन के माध्यम से ही आत्मा को जानते हैं, जो आत्मा आनन्द का स्रोत है। उन्होंने बताया कि हमारी सारी बिमारियों की जड़ मन है, यहीं हमें स्थिर नहीं रहने देता, यहीं हमारे अंदर के परिवर्तनकारी शक्ति को रोकने में मुख्य भूमिका का निर्वहण करता है, जबकि मस्तिष्क में मन और बुद्धि दोनों का वास है, मन कौरवों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बुद्धि पांडवों का। मन बराबर कहेगा, ये नहीं हो सकता, हम कर नहीं सकते, पर बुद्धि हमेशा कहती है कि हम ऐसा कर सकते हैं, हमारे से कुछ भी असंभव नहीं। धैर्यानन्द ने कहा कि आप जान लें कि लहरों को समुद्र बनाती है, समुद्र लहर नहीं हो सकता, ठीक उसी प्रकार हमें ईश्वर ने बनाया पर हम ईश्वर नहीं हो सकते, हमें उन्हें हर हाल में पाना है। हमें हमेशा यह ख्याल रखना है कि हम जैसे भी है, परफेक्ट है, ईश्वर की संतान है, और हम वह सब कर सकते हैं, जो असंभव है। उन्होंने कहा कि अतीत को भूल कर, वर्तमान में जीये, और मन को काबू में रख, ईश्वर को पाने का मन बनायें।
ईश्वर ने हमें असीम ऊर्जा दी है, उसे जानने की जरुरत
शरद संगम के चौथे दिन सही मनोवृत्ति द्वारा मनोदशाओं पर विजय कैसे प्राप्त करें, विषयक पर अपनी बातें रखते हुए ब्रह्मचारी आद्यानन्द ने कहा कि मनोवृत्तियां कार्मिक है और ये पूर्व की इच्छाएं हैं, जो मनोदशा के रुप में सामने आती है और इसे हमने खुद अपने कर्मों द्वारा प्राप्त किया है। ये असुरक्षा की भावना, वातावरण की नकारात्मकता, पसंद-नापसंद, खुश-नाखुश से प्रभावित होती है और जब हमने इस पर काबू पा लिया तो ये स्वतः नियंत्रित हो जाती है। आद्यानन्द ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि ये संसार ड्रामा है और इसे ड्रामा के अलावा कुछ हम अलग न सोचे। उन्होंने कहा कि जैसे ही आपको गलत मनोवृत्तियां काबू में लेने की कोशिश करें, आप खुद को समझाएं कि आप शरीर नहीं आत्मा है, आप दिव्य है और आप प्रभावित नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि खाली मन में मनोवृत्तियां वास करती है, इसलिए मन को ईश्वरीय प्रेम से भरे रहे। ईश्वरीय प्रेम से खुद को निर्भय बनायें रखे, क्योंकि निर्भयता एक ऐसा चट्टान है, जिस पर आप एक बहुत सुंदर किला बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि शक्ति संचार व्यायाम एक ऐसा माध्यम से हैं, जो आपके मनोवृत्तियों को सुंदर बना सकता है। आप हर हाल में खुद को समभाव, समर्पण, कृतज्ञता, आत्मविश्लेषण तथा बुद्धि-विवेक से जोड़ें रहेंगे तो आपको कभी भी मनोवृत्तियां अपने पाश में नहीं लेंगी और आप उन पर हमेशा विजय प्राप्त करेंगे।
स्वामी ईश्वरानन्द ने अन्तर्शक्ति एवं शांतचित्तता के साथ जीवन संग्राम का सामना कैसे करें, विषयक पर बोलते हुए कहा कि जैसा कि विषय में ही निहित है कि अन्तर्शक्ति एवं शांतचित्तता एक ऐसा हथियार है कि आप जीवन संग्राम पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, उन्होंने कहा कि आज के जीवन में दो प्रकार की चुनौतियां है एक बड़ी चुनौतियां हैं तो दूसरी छोटी चुनौतियां। उन्होंने बताया कि बड़ी चुनौतियों में अपने प्रियजनों का शरीर छुटना, परिवार का टूटना, सगे-संबंधियों का बिछुड़ना, जेल हो जाना, आर्थिक संकट और गरीबी को रख सकते हैं, जबकि छोटी चुनौतियों में बीमारी, बच्चों की परीक्षा, पारिवारिक अशांति, ऑफिस में अशांति को रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोग ज्यादातर हताश होकर, कहते है कि ये सारी घटनाएं उन्हीं के साथ क्यों घट रही है, जबकि सच्चाई है कि ऐसी घटनाएं सभी के साथ होती हैं और होनी हैं, कोई इससे बच नही सकता, क्योंकि जीवन में जब तक संघर्ष नहीं हो, तो जीवन का आनन्द भी नहीं लिया जा सकता, क्योंकि ये चुनौतियां हमारे लिए मनोरंजन का काम करती है।
स्वामी ईश्वरानन्द ने कहा कि ईश्वर ने हमें हर चुनौतियों से लड़ने के लिए असीम ताकत दी है, पर हमने उन ताकतों को पहचाना ही नहीं, जब हम डर जाते है तो हार जाते हैं और जब चुनौतियों का सामना करते है, तो उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरी सृष्टि ही अच्छे और बुरे के संघर्षों से बनी हैं और इसकी कई श्रृंखला हैं, जैसे चेतना का जड़ से, आत्मा का शरीर से, जीवन का मृत्यु से, ज्ञान का अज्ञान से, स्वास्थ्य का रोग से, परिवर्तन का क्षणभंगुरता से, आत्मनियंत्रण का प्रलोभन से, विवेक शक्ति का अंधे इन्द्रियों से संघर्ष चलता रहा है। उन्होंने इन सारे संघर्षों को तीन भागों में वर्गीकृत कर बताया कि ये सारी भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक संघर्ष के अलावा कुछ भी नहीं।
उन्होंने कहा कि जिसने भी पांतजलि के यम-नियम को माना, प्राणायाम का अभ्यास किया, इस अहं और आत्मा के युद्ध में धारणा, ध्यान और समाधि का मार्ग अपनाया, वो आनन्द को प्राप्त किया और जिसने ऐसा नहीं किया, वो हमेशा हारा। उनका कहना था कि सभा को मालूम होना चाहिए कि हमारे शत्रु कौन हैं? ये शत्रु है – अविद्या, बुरी आदतें, गलत मानसिकता, क्रोध, घृणा, जल्दी हार मान जाना, ईर्ष्या आदि और इन सारे शत्रुओं पर आप सिर्फ और सिर्फ ध्यान, साधना और समाधि से ही विजय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए परमहंस योगानन्द जी ने कहा था कि हमें भौतिक जगत को सपनों से अधिक कुछ ज्यादा नहीं समझना चाहिए, यह जीवन ठीक एक सपने की तरह हैं, आप चाहते है कि जीवन के संग्राम में विजय पाये, तो योगदा द्वारा बताई गई प्रविधियों से खुद को जोड़ें और ईश्वर को प्राप्त करने में अपना बचा हुआ समय लगा दें।
इधर स्वाध्याय, आध्यात्मिक पठन एवं आत्मविश्लेषण की योग साधना में महत्व को बताते हुए स्वामी हितेषानन्द ने कहा कि एक योग ही है, जिसमें कथनी और करनी में अंतर नहीं चलता, इसलिए धार्मिक ग्रंथों के स्वाध्याय के साथ-साथ, जब तक उसे अपने जीवन में नहीं उतारा, तो उस स्वाध्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता, उन्होंने कहा कि योग अपने आप में एक विज्ञान है, जो ईश्वर से एक सामान्य व्यक्ति का साक्षात्कार करा देता है, उन्होंने कहा कि पंतजलि ने अपने योगसूत्र में इसकी खूब चर्चा की है, जो लोग पतंजलि को पढ़कर, योग साधना में आरुढ़ है, उनका तो कोई जवाब ही नहीं। स्वामी हितेषानन्द ने बताया कि परमहंस योगानन्द जी की शिक्षा पतंजलि के अष्टांग पर आधारित है, यह जिंदगी के सारे उलझनों को ही समाप्त कर देती है, उन्होंने बताया कि याद रखे, शब्द कभी पूर्ण नहीं होते, शब्द वहीं पूर्ण होते है, जिनमें ईश्वरीय चेतना होती है।
स्वामी हितेषानन्द के अनुसार, ईश्वर में रस है, इसलिए ईश्वर से आत्मसाक्षात्कार किया गुरु वहीं आनन्द प्रदान करता है, जो ईश्वर से प्राप्त हो सकता है, उन्होंने बताया कि जो ईश्वरीय ज्ञान को भूल गया, जो अपने विचारों की शुद्धता को खो बैठा, जो अपने हृदय में मलिनता लिए बैठा है, वह स्वाध्याय का आनन्द नहीं उठा सकता, जरुरत है, ईश्वरीय ज्ञान के प्रति ललक को बढ़ाने की तथा अपने विचारों एवं हृदय की शुद्धता को बरकरार रखने की।
क्रिया योग के प्रति देश-विदेश के भक्तों में दिखी ललक
शरद संगम के पांचवे दिन क्रिया योग की दीक्षा लेने के लिए भक्तों में होड़ सी दिखी। सारे भक्तों के हृदय में भक्ति की अविरल धारा बह रही थी, जो उनके चेहरे पर साफ दिख रही थी। ईश्वरानुभूति एवं परमआनन्द का भाव स्पष्ट रुप से प्रवाहित हो रहा था, योगदा सत्संग आश्रम के स्वामी ईश्वरानन्द ने क्रिया दीक्षा देने के पूर्व क्रिया योग के रहस्यों से पर्दा उठाया तथा महायोगी परमहंस योगानन्द जी के बताये क्रिया योग को भक्त कैसे जीवन में लाएं? इसकी विस्तार से चर्चा की। भारत के सभी राज्यों से बड़ी संख्या में जुटे हजारों भक्तों ने इस बार शरद संगम में भाग लिया, बताया जाता है कि इनकी संख्या करीब 3500 से भी ज्यादा थी, यहीं हाल विदेशों से आनेवाले भक्तों की थी, करीब 20 से अभी अधिक देशों के लोगों ने शरद संगम में भाग लेकर, अपना जीवन धन्य किया। सभी ने मिलकर, पूर्व और पश्चिम के भेद को मिटाते हुए, इस शरद संगम का लाभ उठाया तथा अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए, क्रिया योग का रास्ता अपनाया तथा परमहंस योगानन्द के बताये मार्गों पर चलने का संकल्प लिया।