राजनीति

गरीबों को वितरित किये जा रहे कम्बलों की गुणवत्ता को लेकर विधायक सरयू राय ने उठाये सवाल, पूरे मामले की जांच को लेकर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को भेजी चिट्ठी

कम्बल की आपूर्ति और वितरण में में मिल रही शिकायतों को लेकर जमशदेपुर पश्चिम के विधायक सरयू राय ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में बिन्दुवार उन बातों को रखा गया हैं, जिससे पता चलता कि कम्बलों को लेकर क्या-क्या गड़बड़ियां सुनने को मिल रही हैं। सरयू राय ने इस पूरे मामले की जांच कराने को मुख्यमंत्री से अनुरोध किया हैं। सरयू राय का पत्र इस प्रकार है…

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री

झारखण्ड सरकार।

विषय: कम्बल एवं वस्त्र वितरण योजनान्तर्गत वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए कम्बल की आपूर्ति एवं वितरण के बारे में मिल रही शिकायतों की जाँच के बारे में।

महोदय,

आप अवगत हैं कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राज्य के सभी 24 जिलों में कुल मिलाकर 9,20,245 (नौ लाख बीस हजार दो सौ पैंतालीस) कम्बल की आपूर्ति का आदेश ओम शक्ति टेक्सटाईल्स, पानीपत, हरियाणा और बिहारी लाल चौधरी ट्रेडलिंक प्राईवेट लिमिटेड, धनबाद को दिया गया है। विभिन्न जिलों में कम्बल की आपूर्ति की अंतिम तिथि 11 जनवरी, 2025 रखी गई है। आपूर्ति का कार्य प्रारंभ हो गया है, परंतु पूरा नहीं हुआ है। विभिन्न जिलों से जो सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं, उसके अनुसार कम्बलों की गुणवत्ता निविदा की शर्तों के अनुरूप नहीं है। इस संबंध में निम्नांकित बिन्दु विचारणीय है:-

  1. निविदा शर्तों के अनुसार ये सभी कम्बल हैण्डलूम द्वारा निर्मित होने चाहिए, पावरलूम द्वारा नहीं। परन्तु जो कम्बल वितरित किये जा रहे हैं, वे पावरलूम से निर्मित है।
  2. निविदा शर्तों में यह भी है कि कम्बल में 70 प्रतिशत ऊन के धागे होना चाहिए और बाकि 30 प्रतिशत सिन्थेटिक धागा होना चाहिए। इस कसौटी पर भी कम्बल खरा नहीं उतर पा रहे हैं। अधिकांश कम्बलों में ऊन की मात्रा 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच होने की शिकायत मिल रही है। इसके साथ ही शेष सिन्थेटिक धागा पॉलिएस्टर का होना चाहिए और धागा नया होना चाहिए, परंतु वितरित किये जा रहे कम्बलों में पॉलिएस्टर का नहीं बल्कि पुराने कपड़ों का धागा लगाया गया है।
  3. धुलाई के बाद कम्बल का वजन न्यूनतम दो किलोग्राम होना चाहिए, परन्तु इसमें भी कमी दिखाई पड़ रही हैं।
  4. जेम पोर्टल पर प्रकाशित निविदा का मूल्यांकन भी सही तरीके से नहीं हुआ है। आमतौर पर पहले निविदा प्रस्ताव का तकनीकी मूल्यांकन होता है और जो निविदादाता तकनीकी मूल्यांकन की कसौटी पर खरा उतरते हैं, उनके वित्तीय प्रस्ताव का मूल्यांकन होता है, परन्तु प्रासंगिक निविदा निष्पादन के क्रम में पहले निविदादाताओं के वित्तीय प्रस्ताव का ही मूल्यांकन हो गया और बाद में इनकी तकनीकी प्रस्ताव का मूल्यांकन हुआ।
  5. गतवर्ष जिलास्तर पर कम्बलों की खरीद हुई थी। इस बार केन्द्रीयकृत करके इसे राज्यस्तर पर खरीदा गया है और गुणवत्ता में सुधार के लिहाज से एक कम्बल का मूल्य पूर्व वर्ष के मूल्य से 75 से 100 रूपये अधिक रखा गया है। इसके बावजूद निविदा की शर्तों का अनुपालन आपूर्तिकर्ताओं द्वारा नहीं किये जाने के कारण गुणवत्ता से समझौता हुआ है।
  6. ऐसी सूचना मिल रही है कि आपूर्तिकर्ताओं द्वारा दो तरह के कम्बलों की आपूर्ति की जा रही है। करीब 10 प्रतिशत कम्बल ऐसे हैं जो निविदा शर्तों के अनुरूप हैं, बाकि 90 प्रतिशत कम्बल निविदा के शर्तों के अनुरूप नहीं है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि जाँच की प्रक्रिया में इन्हीं 10 प्रतिशत कम्बलों के नमूने के आधार पर जाँच कर ली जाए।

         अनुरोध है कि प्रत्येक जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में वितरित किए जा रहे कम्बलों का नमूना लेकर इनकी जाँच कराई जाए और तदुपरांत विधिसम्मत कार्रवाई की जाय। सधन्यवाद,

भवदीय

(सरयू राय)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *