नाराज सवर्णों को मनाने एवं कांग्रेस को जमीन सुंघाने के लिए मोदी देंगे, सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण
सच पूछिये, तो देश की जो हालात है, वह किसी से छुपा नहीं है, सरकार के पास नौकरियों का अभाव हैं, जो निजी क्षेत्र में नौकरियां हैं, वह भी घटती जा रही हैं, देश में बढ़ती जनसंख्या ने, बेरोजगारी की वो फौज खड़ी कर दी हैं कि ये एक महामारी का रुप ले चुकी है। हमारा मानना है कि जब तक इस बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए, एक जनसंख्या नीति नहीं बनेगी तथा इसमें धार्मिक कट्टरता पर रोक नहीं लगेगी, केन्द्र सरकार कुछ भी आरक्षण की घोषणा कर दें, समस्या का समाधान नहीं होगा, यह ध्रुव सत्य है।
दलितों-आदिवासियों के लिए तो भारत में संविधान लागू होते ही 22.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई, तो क्या जिन बातों के लिए आरक्षण उन्हें दी गई, उनका समाधान हो गया, क्या कोई दलित नेता इस बात को स्वीकार कर सकता है कि उसे सामाजिक न्याय मिल गया? भला किसी जाति-विशेष को नौकरियों में सिर्फ आरक्षण देने से सामाजिक न्याय मिल जाता है, तो अब तक दलितों-आदिवासियों को उनका हक मिल जाना चाहिए।
सच्चाई तो यह है कि कालांतराल में इस आरक्षण की समुचित व्यवस्था होने के बावजूद झारखण्ड में आदिवासियों की संख्या बहुत तेजी से घटी और आनेवाले समय में इनकी स्थिति और विकट हो जायेगी। ठीक उसी प्रकार जिस वीपी सिंह ने पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण प्रदान किया, क्या उनसे देश के सारे पिछड़ों का भला हो गया, या केन्द्र की मोदी सरकार इस प्रकार का दावा कर सकती है कि उसके सवर्णों को दस प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण दे देने से सवर्णों की सारी समस्या हल हो जायेगी, दरअसल सरकारी नौकरियों में आरक्षण कभी समस्या का समाधान न था, न है और न रहेगा।
सच्चाई यह है कि हमारे देश में जितनी भी पार्टियां हैं और उनमें जो नेता भरे-पड़ें हैं, उनको तथा उनके परिवार को कोई दिक्कत ही नहीं हैं, क्योंकि वे जैसे ही मरेंगे, उनके बेटे-बेटियों या बीवी अथवा उनकी प्रेमिकाओं को टिकट मिल जायेगा, फिर वे चुनाव लड़ेंगे और यहां की जनता उन्हें वोट देकर, उनके प्रति सहानुभूति जताकर फिर से संसद या विधानसभा में भेज देगी, और उनकी समस्या का समाधान हो गया।
अगर वे नहीं भी मरेंगे तो वे जब तक जिंदा रहेंगे, सांसद मद में मिलनेवाले राशि में निर्धारित उनके कमीशन उनतक आराम से पहुंचते रहेंगे और पांच साल में ही, वे सात पुश्तों का प्रबंध कर लेंगे, यहीं नहीं उनके लिए आजीवन पेंशन तथा उनके खानदानों के लिए भी पेंशन की भी व्यवस्था, भारत के महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी कर के गये हैं, इसलिए इन नेताओं की तो चिंता ही मत करिये, पर देश में रहनेवाले विभिन्न जाति-संप्रदाय में बंटे लोगों को पता ही नहीं कि जिस नौकरी में उन्हें आरक्षण की बात की जा रही हैं, वो अगर मिल भी गई तो उसकी कोई गारंटी नहीं कि वे उसका लाभ ले ही पायेंगे, क्योंकि उनके नेताओं ने उनके छाती पर ऐसे मूंग दल दिये हैं कि पूछिये मत। उदाहरण के लिए एनपीएस के शिकार अवकाश प्राप्त किसी भी सरकारी कर्मचारी अथवा बार्डर पर तैनात केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों के जवानों और विधवाओं तथा उनके बच्चों से पूछ लीजिये।
सवर्णो को दस प्रतिशत आरक्षण मिलेगा भी या नहीं, इसमें भी अभी बहुत पेंच हैं, क्योंकि अभी जिन दलों के लिए सवर्ण वोट बैंक नहीं हैं, वे निःसंदेह इसमें रोड़ा अटकाने के लिए विवाद खड़े करेंगे, इसकी जानकारी केन्द्र सरकार को भी है, केन्द्र सरकार यह भी जानती है कि उनकी लड़ाई छोटे दलों से कम, बड़े पैमाने पर कांग्रेस से ज्यादा है, इसलिए कांग्रेस को उसकी औकात बताने का इससे बड़ा हथियार दूसरा कुछ था ही नहीं, इसलिए फिलहाल कांग्रेस को न तो उगलते बन रहा हैं और न निगलते बन रहा, क्योंकि कांग्रेस को भी पता है कि जिन राज्यों में उसकी अभी-अभी सरकार बनी है, वह वैशाखियों पर टिकी है, अगर लोकसभा चुनाव जीतनी है तो इस पर अच्छा रहेगा कि चुप्पी साध लिया जाये, पर इनका चुप्पी साधना भी उनके लिए महंगा पड़ेगा।
इसीलिए वर्तमान में जो राजनीतिक पंडित हैं, वे स्पष्ट कहते है कि मोदी को गर कोई हरा सकता है तो सिर्फ मोदी, क्योंकि जो मोदी का दिमाग हैं, वह दिमाग किसी कांग्रेसियों को पास नहीं है, ठीक उसी प्रकार जैसे रफेल पर राहुल ने मोदी को घेरने की जरुर कोशिश की, वे घेर भी चुके थे, पर राहुल ने खुद संसद में कनखी मारकर, इस रफेल पर अपनी भद्द पिटवा ली और जो जनता रफेल पर राहुल की प्रशंसा कर रही थी, वह भी बैकफुट पर आ गई, यह कहकर कि संसद में ऐसी चीप हरकत, राहुल गांधी जैसे नेताओं को शोभा नहीं देता।
लोग बताते है कि नरेन्द्र मोदी ने सवर्णों के आरक्षण पर कांग्रेस को जबरदस्त झटका दिया है। मोदी ने यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15-16 में संशोधन करके आरक्षण देने की बात कही है, संभवत अभी देश में 49.5 प्रतिशत ही आरक्षण हैं पर इसे बढ़ाकर अब 59.5 करने का विचार है, वर्तमान में देश में सवर्णों की कुल आबादी 12-15 प्रतिशत है। बताया जा रहा है कि इस आरक्षण का वे ही सवर्ण लाभ ले सकेंगे, जिनकी आय 8 लाख रुपये वार्षिक से कम आय तथा पांच एकड़ से कम भूमि हो, सरकार जल्द ही इस संबंध में बिल भी लोकसभा में लायेगी।
हालांकि सरकार के इस फैसले का भाजपा नेताओं ने खुलकर स्वागत किया है, पर कांग्रेसियों की ओर से इस पर कोई बयान सुनने को नहीं मिला है और रही बात क्षेत्रीय दलों तथा जातिवादी दलों को, तो उनको देश से थोड़े ही मतलब हैं, उन्हें तो अपने वोट बैंक की चिन्ता हैं। वे खुलकर बयानबाजी करेंगे, फिर से देश में दंगे भड़केंगे, एक का भला होगा और दूसरे का नुकसान और मरेंगे गरीब, चाहे वे दलित हो, या पिछड़े हो या सवर्ण, क्योंकि अब तक जब भी किसी भी प्रकार के दंगे हुए हैं, यहीं तो मरते रहे हैं, नेताजी और उनके बेटे-बेटियों-बहुओँ तथा उनकी प्रेमिकाओं को कभी मरते देखा है।