अपनी बात

कल रांची में आयोजित भाजपा की आक्रोश रैली से ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने बनाई दूरियां, फेसबुक पर अपने ही नेताओं पर दागे सवाल, जिसका जवाब देने में असमर्थ हैं भाजपा के शीर्षस्थ नेता

पूरी भाजपा में प्रदेश से लेकर जिला ही नहीं बल्कि मंडल स्तर तक पेट्रोल छिड़का हुआ है। बस एक माचिस की तीली जलनी बाकी है और फिर देखिये भाजपा का तमाशा, देखते ही देखते धराशायी। हालांकि भाजपा का यह हाल तब से हुआ है। जब से भाजपा ने अपने समर्पित कार्यकर्ताओं से किनारा कर बाहर से आये उन नेताओं को अपने माथे पर बिठाना शुरु किया, जो कभी भाजपा के लिए ही काल बने हुए थे।

आज ये सारे नेता भाजपा संगठन में ही नहीं बल्कि अब तो संसद में भी पहुंचकर, महत्वपूर्ण पद पाकर भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को चिढ़ा रहे हैं, कह रहे हैं, देखो हमारी उपलब्धि और देखो तुम अपना चेहरा, हम कहां और तुम कहां। रह जाओगे, झंडा उठाते और हम वहां पहुंच जायेंगे, जहां कोई नहीं पहुंच सकता, तरमाल खाते।

शायद यही उनके चिढ़ाने का ढंग अब भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा, अब वे भी जहां मन कर रहा, वहां से अपने आक्रोश का बिगुल फूंक रहे हैं, जिसका प्रभाव अब दिखना शुरु हुआ है। भाजपा के खिलाफ धरना-प्रदर्शन ही नहीं बल्कि पुतला दहन तक का कार्यक्रम शुरु हो चुका है।

फिलहाल पुतला दहन की आग से निकला हुआ यह धुआं/आक्रोश धीरे-धीरे  उन सारे जगहों पर पहुंच रहा है, जिसकी ध्वनि शायद भाजपा के कुम्भकर्णी नेताओं को सुनाई नहीं दे रही। अगर किसी को यह धुआं/आक्रोश देखना है तो उसे कहीं जाने की जरुरत नहीं। अगर आप रांची में रहते हैं तो यह धुआं/आक्रोश आपको रांची में भी दिखेगा। धनबाद, दुमका, जामताड़ा, जमशेदपुर आदि में तो यह धुआं/आक्रोश विकराल रुप धारण कर चुका है।

स्थिति यह है कि कल रांची में भाजपा की होनेवाली युवा आक्रोश रैली पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। जो समर्पित कार्यकर्ता हैं, जिनकी अपनी धाक हैं, उन्होंने कल की रैली से दूरियां बना ली है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के प्रदेश नेताओं ने एक लाख लोगों को बुलाने का वादा किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि जहां सभा रखी गई है, वहां अधिकतम भीड़ उपलब्ध होने की संख्या तीस से चालीस हजार तक की ही है।

यहां रैली इसलिए रखी गई है कि अगर भीड़ दस हजार भी पहुंचे, तो भाजपा के प्रदेश के नेता अपने शीर्षस्थ नेताओं को बता सकें कि भीड़ ठीक-ठाक थी। लेकिन कल भीड़ ठीक-ठाक पहुंचेगी, इसकी संभावना कम दिख रही हैं, क्योंकि प्रदेश से लेकर मंडल तक भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस रैली से अपनी दूरी बना ली है। जिन्हें टिकट लेना है, वे थोड़ा कसरत कर रहे हैं, ताकि भीड़ दिखाकर टिकट प्राप्त कर लें। उन्हें भी कसरत करने में ही पसीने छूट रहे हैं।

और इधर क्या हो रहा है? भाजपा का कार्यकर्ता अपने प्रदेश के शीर्षस्थ नेताओं से पूछ रहा है। वो भी सोशल साइट के माध्यम से बाबूलाल मरांडी जी आप यह बता दीजिये कि भाजपा क्यों छोड़े थे और फिर भाजपा में आने का कारण क्या है? तब हमलोगों को ज्ञान दीजिये। यहीं नहीं, वहीं कार्यकर्ता फिर गोला दागता है और कहता है कि दूसरे पार्टी का कचरा भाजपा में आते ही फ्रेश माल हो जाता है और तीसरे गोले में तो वह सभी को नाप लेता है यह कहकर कि हम चले छः महीने के लिए दूसरे पार्टी में भाजपा के बड़ा-बड़ा नेता को उल्टा-पुल्टा बोलेंगे और फिर भाजपा में आयेंगे, जिलाध्यक्ष तो बनिये जायेंगे।

कहने का तात्पर्य है कि हमारी मां-बहनें भात पसाने के पूर्व ही तसले के एक-दो चावल को छूकर पता लगा लेती है कि भात बना या नहीं, ठीक उसी प्रकार भाजपा के एक-दो समर्पित कार्यकर्ता को कही से भी पकड़िये, आपको कुछ करना नहीं हैं, उसके करीब बैठिये और राजनीतिक विमर्श छेड़िये, आपको भाजपा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का आकलन हो जायेगा।

हालांकि भाजपा अपने समर्थक मीडिया बंधुओं को मिलाकर झारखण्ड में माहौल बनाने की तैयारी कर रही हैं, लेकिन विद्रोही24 का मानना है कि ऐसा करने से कुछ नहीं होगा। चाहे किसी मीडिया या विवादास्पद व्यक्ति को झामुमो से चम्पाई सोरेन को तोड़कर भाजपा में मिलाने का ही जिम्मा वो क्यों न दे दें, स्थिति भाजपा के लिए ठीक नहीं, क्योंकि इस बार भाजपा को हराने का जिम्मा खुद भाजपाइयों ने ले लिया है। वो भी यह कहकर कि अब वो किसी का भी झोला नहीं ढोयेगा, पालकी नहीं ढोयेगा, झंडा नहीं ढोयेगा, ईमानदारी से काम करेगा और अपना हक प्राप्त करके रहेगा। शायद यही बात भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को रास नहीं आ रही।