‘जब मैं राजनीति में था मेरा द्वार हमेशा जनता के लिए खुला रहता था, आज भी मेरी जीवनशैली वैसी ही है’, ये बात कुछ हजम नहीं हुई राज्यपाल महोदय
आज झारखण्ड विधानसभा अपना स्थापना दिवस मना रहा था। जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन व राज्यपाल रमेश बैस प्रमुख रुप से मौजूद थे। रमेश बैस ने अपने भाषण में कहा कि ‘जब मैं राजनीति में था मेरा द्वार हमेशा जनता के लिए खुला रहता था। मेरे पास आने वाला व्यक्ति किस दल, जाति और धर्म का है, यह मैंने कभी भी नहीं देखा और न ही जानने की कोशिश की। आज भी मेरी जीवनशैली वैसी ही है। राजनीति का मकसद ही लोगों की सेवा करना तथा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना होना चाहिये।’
यह कथन राजभवन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में भी उल्लेखित है। इस कथन में झारखण्ड के राज्यपाल रमेश बैस ने मुक्तकंठ से अपनी आत्मप्रशंसा की है कि जब वे राजनीति में थे, तो उनका द्वार हमेशा जनता के लिए खुला रहता था। उनके पास आनेवाला व्यक्ति किस दल, जाति और धर्म का है, यह उन्होंने कभी भी नहीं देखा और न ही जानने की कोशिश की। आज भी उनकी जीवनशैली वैसी ही है।
पर ये क्या राजनीतिक भाषण है या सचमुच ऐसा है। दरअसल राजनीतिक भाषण में राजनीति से जुड़ा हुआ व्यक्ति कुछ भी कह देता है, चल जाता है, जनता भी उसी तरह से उसकी बातों को लेती है कि राजनीति से जुड़ा व्यक्ति हैं तो थोड़ा बहुत सच-झूठ तो चलता ही रहता है, पर क्या सचमुच जिस प्रकार से राज्यपाल रमेश बैस दावा कर रहे है कि उनकी जीवनशैली वैसी ही हैं, वे भेदभाव नहीं करते, सही है। विद्रोही24 को तो नहीं लगता।
सबसे पहली बात तो राज भवन में बैठे राज्यपाल से मिलना इतना आसां नहीं, जितना आसां बताया जाता हैं, या राजभवन में रहनेवाले राज्यपाल स्वयं को सहज व सरल बताते हैं। राज्यपाल से मिलने के लिए बहुत सारे पापड़-बेलने पड़ते हैं, अगर आप सामान्य व्यक्ति या सामान्य से भी नीचे हैं तो वहां राजभवन में बैठा अधिकारी, जिस पर दारोमदार होता हैं, कि वो ही आपके लिए राज्यपाल का समय उपलब्ध करायेगा, किसी जिंदगी में आपको राज्यपाल से नहीं मिलायेगा और राज्यपाल कोई साधारण व्यक्ति नहीं होता कि आप उन्हें फोन करें और आपको राज्यपाल कह दें कि आप आइये मिल लीजिये।
हां अगर आप विष्णु अग्रवाल (विष्णु अग्रवाल जानते है न, वहीं पीवीआर वाले, जिनको ईडी भी बुलाई है) जैसे महापुरुष हैं तब तो कहना ही नहीं हैं, राजभवन में तुरन्त समय मिलेगा, फोटो भी खीचेंगा, हो सकता है कि कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म आपके पीवीआर में लगे तो राज्यपाल महोदय अपने लाव-लश्कर के साथ आपके साथ बैठकर फिल्म का रसास्वादन भी कर लें।
अब जरा देखिये न, एक लड़का है – अंकित राजगढ़िया। धनबाद में रहता है। उसके परिवार के कई सदस्यों ने नेत्रदान किये हैं। जहां तक हमें जानकारी हैं, पांच सदस्यों ने नेत्रदान किया हैं। ये बच्चा इतना सामाजिक है कि वो किसी का दुख देख ही नहीं सकता। वो गरीबों के लिए हमेशा मरने को तैयार रहता है। हाल ही में जब कोरोना की बीमारी चरम पर थी और इसके टीके कोवैक्सिन की ट्रायल की बात चल रही थी तो इसने ही पहली बार ट्रायल के लिए झारखण्ड से अपना नाम लिखवाया था।
इसने पहली बार 16 जून 2022 को राजभवन में बैठे एक अधिकारी एडीसी से संपर्क किया। एडीसी ने अंकित को कहा कि आप पत्र लिखकर उन्हें व्हाट्सएप कर दीजिये। हम जल्द ही आपको राज्यपाल का समय दिला देंगे। बाद में फिर एडीसी ने 3 जूलाई 2022 को पीडीएफ फाइल में अंकित से आवेदन मांगा। इसके बाद अंकित कई बार एडीसी से संपर्क किया। बाद में फिर सात अक्टूबर को एडीसी ने कहा कि आप (अंकित) फिर से आवेदन कर दीजिये। अंकित ने फिर भेज दिया। लेकिन आज तक अंकित को राज्यपाल का समय नहीं मिला। अंकित राजगढ़िया बताता है कि उसके पास इसके सारे सबूत मौजूद है।
अब इस घटना के बाद राज्यपाल ही बताये कि, क्या वे अपनी आत्मप्रशंसा के दौरान ये बोल पायेंगे कि उनका जीवनशैली बहुत ही सुंदर और अनुकरणीय है? अब राज्यपाल को भी मालूम होना चाहिए कि अंकित, राज्यपाल से मिलना क्यों चाहता हैं? अंकित ने विद्रोही24 को बताया था कि अंकित थैलेसेमिया नामक गंभीर बीमारी को रोकने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया है, उसी प्रोजेक्ट को लेकर वो राज्यपाल से मिलना चाहता है, क्योंकि वो चाहता है कि पूरा देश थैलेसेमिया से मुक्त हो जाये। अंकित बताता है लोग समझ नहीं पा रहे कि आनेवाले बीस साल बाद यह भारत की सबसे गंभीर बीमारी होने जा रही है। अंकित से आज भी विद्रोही24 ने बातचीत की कि क्या उसे राजभवन से समय मिला। उसने कहा कि – नहीं।
एक और उदाहरण, रांची में ही एक पत्रकार है, उन्होंने राज्यपाल से मिलने के लिए एडीसी से संपर्क किया, 07 अप्रैल 2022 को मेल भी किये, पर कोई जवाब ही उधर से नहीं आया। अरे भाई, आप समय नहीं दे सकते तो यह भी तो कहो कि आपके लिए समय राज्यपाल के पास नहीं हैं, ये उधेड़बून में किसी को क्यों लटका देते हो? हम जानते है कि राज्यपाल के पास देश-सेवा के लिए बहुत सारे काम होते हैं, वे इसी सोच में 24 घंटे डूबे रहते हैं, बेचारे को लोगों से मिलने के लिए समय कहां है? अगर सभी से मिलते रहेंगे तो देश की सेवा कब करेंगे?