ले गई दिल बुढ़िया जापान की…
आपने कभी ये गाना जरुर सुना होगा। “ले गई दिल गुड़िया जापान की, पागल मुझे कर दिया, जापान लव इन टोकियो” अब इसमें गुड़िया की जगह बुढ़िया कर दीजिये और गाइये “ले गई दिल बुढ़िया जापान की, पागल मुझे कर दिया, जापान लव इन टोकियो” क्योंकि एक अखबार ने कल ऐसा समाचार प्रकाशित किया है कि कई युवाओं की नींद उड़ गई हैं, जो लोग जिनका कल सपना जापान की गुड़ियों के बीच रहने को था, आज वे बुढ़े हो चले हैं, इसलिए वे जापान जाने से रहे, पर युवाओं को तो ये मौका, खासकर जापान जाने का जरुर ही मिल जायेगा, पर वे गुड़ियों के साथ नहीं बुढ़ियों के साथ समय बितायेंगे, वह भी उनकी आवभगत कर, क्योंकि माजरा ही कुछ ऐसा है।
दैनिक भास्कर की माने तो जापान सरकार ने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि जापान में रह रहे बुढ़े-बुढ़ियों की सेवा के लिए उसे 2 लाख लोगों की आवश्यकता है। इसमें भारत उसका सहयोग करें। इधर भारत सरकार के कौशल विकास विभाग ने झारखण्ड सरकार के कौशल विकास विभाग को पत्र लिखकर कहा है कि झारखण्ड सरकार इस कार्य में उसे कितना सहयोग कर सकती है। दैनिक भास्कर ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि जापान ने नेशनल स्किल डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन को प्रस्ताव भेजा है, और कॉरपोरेशन ने झारखण्ड से पूछा है कि वह कितने लोग भेज सकते हैं? अखबार का दावा है कि अगर इस पर अमल हुआ तो झारखण्ड के हजारों लोगों को जापान में नौकरी मिल सकती है और उनकी बेरोजगारी दूर हो सकती है। इसके लिए उन्हें वेतन के तौर पर 70 हजार रुपये मिलेंगे। इसके बदले में उन्हें जापान के बुजर्गों की सेवा-सुश्रुषा करनी होगी।
अखबार ने यह भी कहा है कि इसके लिए कौशल विकास विभाग जापान जानेवाले युवाओं को, जापान की भाषा, वहां की संस्कृति और बुजुर्गों की वहां कैसे सेवा करनी है? इसका प्रशिक्षण देगा। कुल मिलाकर देखें तो जापान में “आया” की नौकरी करने को मिलेगी। चूंकि जापान में बुजुर्गों की संख्या 33 फीसदी है और चूंकि वहां की सरकार अपनी आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा, वहां के बुजुर्गों के देखभाल पर खर्च करती है, इसलिए जापान सरकार ने अपने यहां रह रहे बुजुर्गों की देखभाल के लिए भारत सरकार से सहयोग मांगा है। हालांकि यह पूरा मामला केन्द्र से संबंधित है, तो जो भी निर्णय लेना है, वह केन्द्र सरकार को लेना है। इसलिए स्थिति-परिस्थिति क्या बनती है? यह भविष्य के गर्भ में है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय अथवा झारखण्ड के बच्चे जापान जाकर “आया” की नौकरी करेंगे? जो युवा अपने माता-पिता तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने में आना-कानी करते हो, जो अपने संयुक्त परिवार से नाता तोड़कर व्यक्तिगत परिवार में विश्वास रख रहे हो, जहां संयुक्त परिवार का कुनबा तिन-तिन बिखरता जा रहा हैं, वहां के युवा जापान जाकर वहां के बुजुर्गों का ईमानदारी से सेवा कर पायेंगे? या यह भी हो सकता है कि एक ओर बेरोजगारी की मार और दुसरा जापान में रहने की ललक, उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दें, पर क्या इससे भारत का सम्मान बढ़ेगा? दूसरे देश के लोग क्या कहेंगे कि अब भारतीयो की हालत ये हो गयी कि वे अब “आया” की नौकरी के लिए भी विदेश जाने को तैयार है।
आश्चर्य की बात यह हैं कि कुछ पश्चिमी देश, अपने यहां इस प्रकार की वीजा नीति बना रहे हैं, जिससे भारतीयों को उन देशों में आना और रहना दोनों मुश्किल सा होता जा रहा है। ऐसे समय में जापान का भारतीयों पर पूर्ण विश्वास और अपने बुजुर्गों की सेवा-सुश्रुषा के लिए भारतीयों को चुनना अपने आप में गौरव प्रदान कर रहा हैं। इससे जाहिर होता है कि भारतीयों ने अपने कार्यों में अपनी विश्वसनीयता उच्च कोटि की बनाई है।
हमारे विचार से काम, सिर्फ काम होता है, वह किस प्रकार का काम है? ये मायने नहीं रखता। हां ये बात याद रखनी चाहिए कि वह काम अनैतिक न हो, उससे समाज, परिवार और देश की बदनामी नहीं होती हो, जापान ने अपने बुजुर्गों की सेवा-सुश्रुषा के लिए भारत को चुना है, तो भारत को भी इस कार्य में आगे बढ़कर हिस्सा लेना चाहिए, क्योंकि हमारे यहां कहा भी गया है – ।।सेवा परमोधर्मः।।