कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के नाम पर कम से कम ईमानदारी बरतना जरुरी
अगर आज का प्रभात खबर आप देखें तो आपको प्रथम पृष्ठ देखते ही लगेगा कि प्रभात खबर ने क्रांति कर दी है, इस क्रांति में महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज्य की अवधारणा और डा. राम मनोहर लोहिया के अंतिम वंचित तबके को गांव में ही विकास की अवधारणा में परिभाषित करने के विचार को प्रवेश करा दिया गया हैं। बात सीएसआर इनिशिएटिव की हो रही है, सीएसआर इनिशिएटिव मतलब – कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की पहल।
प्रभात खबर की माने तो उसने आठ गांव गोद लिये, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजलापूर्ति, पर्यावरण, सफाई आदि के क्षेत्र में हालात बदलने की उसने सकारात्मक पहल की। इस क्रम में जहां स्वरोजगार के अवसर से उन्हें परिचित कराया गया, वहीं दशकों से लंबित सरकारी ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के लाभ से उन्हें जोड़ने की पहल भी हुई।
प्रभात खबर ने पांच जुलाई 2017 को झारखण्ड और बिहार के आठ गावों को गोद लिया था, संकल्प था कि छोटे-छोटे प्रयासों के जरिये, इन गांवों के हालात बदलने का एक सचेत व ईमानदार प्रयास किया जाये। हमने भी सोचा कि आठ गांवों को लेकर प्रभात खबर ने जो लंबे-चौड़े दावे किये हैं, उसकी हकीकत क्या है? इसलिए हमने एक टीम इन्हीं आठ गांवों में से एक रांची के सीताडीह गांव भेजी, और जो परिणाम देखे, वह परिणाम बताता है कि प्रभात खबर की रिपोर्ट और सच्चाई में आकाश और जमीन का अंतर है। जरा देखिये, प्रभात खबर बताता है कि सीताडीह के लोग शुद्ध पानी पी रहे हैं और सोलर लाइट में पढ़ाई कर रहे है। सच्चाई यह है कि वहीं के रहनेवाले नारायण महतो हंसते हुए कहते है कि अरे भाई पानी ही नहीं हैं तो शुद्ध पानी क्या पीयेंगे। सोलर लाइट कुछ लोगों को दी गई हैं, पर उसकी ऐसी प्रकाश है कि प्रभात खबर में काम करनेवाले घरों की महिलाएं सब्जी तक नहीं काट सकती, पढ़ाई तो बहुत अलग बात है।
प्रभात खबर ने दावा किया है कि बच्चे दिन में कंधे पर बैग लटका कर स्कूल जाते हैं, सच्चाई यह है कि हमारी टीम ने किसी भी बच्चे के कंधे पर बैग नहीं देखा। प्रभात खबर का दावा है कि ग्रामीणों की जीवन शैली में बदलाव आया हैं, सच्चाई है कोई बदलाव नहीं आया है, आज भी लोग उसी तरह जी रहे हैं, जैसे जी रहे थे, आज भी उन्हें खेती करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं है, आज भी वहां रहनेवाले युवा बेरोजगार है, उनके लिए रोजगार का कोई प्रबंध नहीं है, यहां के लोग अपने सांसद राम टहल चौधरी से ज्यादा गुस्से में हैं, उनका कहना है कि उनके सांसद उनके गांव पर ध्यान नहीं देते। प्रभात खबर का दावा है कि 500 बच्चों के नेत्र की जांच निशुल्क की गई, सच्चाई यह है कि उक्त गांव में 500 बच्चे है ही नहीं, तो फिर इतने की जांच कैसे हो गई? प्रभात खबर का दावा है कि अब हर टोले में डीप बोरिंग हो रही हैं, सच्चाई यह है कि एक दो इलाकों में डीप बोरिंग हुई है। प्रभात खबर यह भी दावा करता है कि यहां महिलाएं शराब के खिलाफ मुहिम शुरु कर दी हैं, अब सवाल उठता है कि इसमें प्रभात खबर की क्या भूमिका है? यह तो यहां की महिलाओं की जागरुकता का प्रतिफल है कि उस गांव में शराब के खिलाफ मुहिम शुरु हुई, इसमें प्रभात खबर कहां से आ गया, यानी गांव की महिलाओं द्वारा किये गये कार्य को भी इनलोगों ने अपने में दिखा दिया और इसकी झूठी श्रेय़ ले ली।
कमाल है जो काम हुआ ही नहीं, नेताओं की तरह डायलॉग लिख दिये गये हैं, जैसे खादी ग्रामोद्योग बोर्ड सिलाई, लाह व चरखा ट्रेनिंग सेंटर खोलेगा, हमारा मानना है कि पहले करो, उसके बाद लिखो। सांसद परिमल नथवाणी ने तीसरे सांसद आदर्श ग्राम के रुप में इसे चुना हैं, जो परिमल नथवाणी अन्य दो गांवों को गोद लिये हैं, उस गांव का क्या हाल है? इसकी जांच करा ली जाये।
अंततः आखिर सीताडीह को क्या चाहिए? सीताडीह के लोगों को चीनी सामग्रियां नहीं चाहिए, अगर देना है तो भारतीय सामग्री वह भी ब्रांडेड थमाइये, ताकि सही मायने में गांव के बच्चे सोलर लाइट में पढ़ सके।
ऐसी व्यवस्था कराइये ताकि बच्चों की जान जोखिम में न पड़े, आज भी बच्चों का स्कूल रेलवे ट्रेक के काफी नजदीक हैं, बच्चे जान पर खेलकर रेलवे ट्रैक पारकर स्कूल आते-जाते हैं, वहां ऐसी व्यवस्था कराइये ताकि बच्चों की जान न जाये, नहीं तो जो स्थिति हैं, यहां कोई भयानक हादसा हो सकता हैं और बच्चों की जान जा सकती हैं।
पीने की पानी का व्यवस्था कराइये, अगर आपने फिल्टर उन्हें उपलब्ध कराया हैं, तो इसकी जांच कराइये कि वह फिल्टर काम कर रहा हैं या नहीं, या शो पीस बनकर रह गया। केवल आप ही गांवों में नेत्र या स्वास्थ्य शिविर नहीं लगाते, और भी बहुत सारे लोग ऐसा स्वास्थ्य शिविर लगाते हैं, और इन स्वास्थ्य शिविरों से कुछ नहीं होता, (ये स्वास्थ्य शिविर कैसे लगते हैं, हमें पता है, कैसे एक दूसरे को फायदा पहुंचाया जाता हैं, हम जानते हैं) कम से कम यहां एक प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्र हो सकें तो बनवाइये, आप ऐसा कर सकते हैं, आपके इशारे पर, आपके समाचार पर सरकार हिल जाती हैं, विधानसभा हिलने लगता है तो ये सीताडीह गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य उप केन्द्र क्यों नहीं बन सकता।
बच्चों के एकमात्र स्कूल में जहां आठवीं तक कक्षा चलती हैं, वहां मात्र एक ही शिक्षक है, आप कोशिश करिये कि वहां शिक्षकों की संख्या बढ़ें, ये हो सकता हैं, आप करा सकते हैं, पर आप स्वयं को एक सूई चुभाकर, लोगों को थोड़ा सा रक्त निकला दिखाकर कह रहे हैं कि आपने रक्त दान कर दिया, ऐसा ढोंग बंद करिये, तथा ये सब करके कम से कम महात्मा गांधी और राम मनोहर लोहिया की जगहंसाई मत कराइये। आपको लग रहा है कि आपने कमाल कर दिया है, सच्चाई सारी जनता जान रही है, आप भी सरकार की आंखों में धूल झोंक कर, अपने कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की इतिश्री कर रहे है।
अगर आप सही मायने में सीताडीह गांव को गोद लिया हैं तो सचमुच उन्हें अपनी छाया प्रदान करिये और ईमानदारी से उनकी सेवा में लग जाइये, कुछ काम ऐसे हैं, जो आप चाहेंगे और हो जायेगा, पर आप उसमें दिलचस्पी नहीं ले रहे, आप वे काम कर रहे हैं, जो हर कोई करना चाहता हैं और अखबारों तथा चैनलों में उसे छपा/दिखाकर खुद को महान समाजसेवक बनने का दावा करता हैं, आप अगर इस लोकोक्ति पर चलें तो हमें खुशी होगी, वह लोकोक्ति हैं – नेकी कर दरिया में डाल, अगर आप ये भी नहीं कर सकते तो कम से कम ये करिये कि जो करे, वहीं दिखाये।
सच का एक अन्य दृष्टिकोण अच्छा लगा।
सर को प्रणाम