जो दुसरों को आनन्द दें, वही नन्द बाबा और जो दुसरों को यश प्रदान करें वही मां यशोदा
ईश्वर के पास पहुंचने का नाम उत्सव है। ईश्वर के उत्सव में मजा नहीं होता, क्योंकि जहां मजा होता है, वहां सजा का भी प्रावधान है, पर ईश्वर के उत्सव में सिर्फ आनन्द ही आनन्द है। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव एवं उनके बाललीलाओं की चर्चा करते हुए श्रीमद्भागवत कथा के आज पांचवे दिन रांची के चुटिया अयोध्यापुरी में निर्मित वृंदावनधाम में महाराष्ट्र से पधारे भागवताचार्य संत मणीष भाईजी महाराज ने कहा कि जीवात्मा नन्दबाबा है, और परमपिता परमेश्वर श्रीकृष्ण है। उन्होंने नन्दबाबा को परिभाषित करते हुए कहा कि जो दूसरों को अपने वाणी, अपने व्यवहारों और अपने कार्यों से आनन्द दे, दरअसल वहीं नन्द बाबा है और जो दूसरों को अपने बुद्धि, विवेक और व्यवहार से सर्वदा यश प्रदान करे, दरअसल वहीं यशोदा मैया है।
मणीष भाई जी महाराज ने सभी से कहा कि आप यश बांटना सीखिये, आनन्द देना सीखिये, जब आप दूसरों को यश देना प्रदान करेंगे, आनन्द प्रदान करना सीखेंगे निश्चय ही आप जीवात्मा को परम आनन्द देने के लिए कन्हैया को आपके पास आना होगा, जैसे नन्द बाबा और यशोदा के यहां भगवान कृष्ण पधारे। उन्होंने कहा कि जैसे ही कन्हैया यशोदा के पास पहुंचते हैं, मां यशोदा यहीं कहती है कि कन्हैंया सब का हैं, यानी जब आपके पास परम आनन्द की वस्तु पहुंचे तो उसे यशोदा की तरह बांटना सीखिये, जब आप दूसरों को आनन्द देंगे तो निश्चय ही आपको आनन्द की प्राप्ति होगी। जैसे यशोदा और नन्द बाबा को मिला।
उन्होंने कहा कि प्रेम को सीखना है तो आप गोपियों से सीखिये, वह अपने कृष्ण को अपने प्रेम पाश में बांधी है कि कृष्ण चाह भी लें कि वे उन प्रेमपाश से मुक्त हो जाये, तो वे मुक्त नहीं हो सकते। आप भी अपने हृदय में ऐसा डोर उत्पन्न करें कि उस डोर से सदा के लिए भगवान कृष्ण आपके होकर रह जाये, और ये सिर्फ आपकी विकाररहित भक्ति से ही संभव है, आप यह भी याद रखिये कि जब सारा जग सोया रहता है तो संयमित पुरुष, भगवान का भक्त उस परमात्मा को पाने के लिए जाग जाता है, ब्रह्म मुहूर्त में वह जीवात्मा परमात्मा से प्रेम करने के लिए निकल पड़ता है।
उन्होंने भगवान कृष्ण के बाल स्वरुप, पूतना वध, शकटासुर, तृणावर्त के उद्धार की भी कथा सुनाई, पर श्रद्धालु सर्वाधिक पुलकित हुए भगवान शंकर के यशोदा के घर पहुंचने तथा बाल कृष्ण के अद्भुत छवि निहारने के प्रसंग में। इस दौरान भक्ति की अविरल धारा ऐसी बही कि इस धारा में सभी श्रद्धालुओं ने डूबकी लगाई। मणीषभाई जी महाराज ने सभी से कहा अगर आप चाहते है कि जन्म-जन्म के अज्ञान, अविद्या को नष्ट करना है तो इसके लिए बढ़िया रहेगा कि आप भक्ति रुपी गंगा सत्संग में अपने समय बिताएं, निश्चय ही आपका कल्याण होगा। उन्होंने कहा कि जीवात्मा अहंकार से भरकर भगवान को नहीं पा सकता, पर भक्ति रुपी पाश से भगवान को जीवन भर के लिए बांध सकता है।
मणीषभाई जी महाराज ने भगवान कृष्ण के माखनचोरी का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान कृष्ण के जीवन में माखनचोरी की घटना कोई सामान्य घटना नहीं थी, दरअसल ये मथुरा में क्रांति का संकेत था। ये संकेत था कंस को कि उसके अत्याचार से मुक्त होने के लिए सारा ब्रजमंडल अब धीरे-धीरे एकताबद्ध होकर, उसके खिलाफ श्रीकृष्ण के नेतृत्व में आगे बढ़ने को तैयार है। उन्होंने बाल कृष्ण के मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड को समाने की घटना तथा यशोदा का यह दृश्य देखकर अभिभूत होने की घटना की सुंदर व्याख्या की, जिसे सुन सभी आश्चर्यचकित हो गये।