धर्म

नवरात्र एक ऐसा अवसर जिसमें आप घर पर ही रहकर ध्यान व क्रिया योग का गहराइयों के साथ अभ्यास कर सारे चक्रों को खोल, स्वयं को दिव्य प्रकाश से आलोकित कर सकते हैं : स्वामी अमरानन्द

कौन कहता तू है काली, हे मां जगदम्बे, लाखों रवि चंद्र तेरी काया से हैं चमकते, हे मां जगदम्बे … । नवरात्र चल रहा है। आज चौथा दिन मां कुष्माण्डा का है। मां कुष्माण्डा के हाथों में ऐसे तो कई अस्त्र-शस्त्र विद्यमान है। लेकिन उनके एक हाथ में दिव्य प्रकाश भी होता है। जिन दिव्य प्रकाशों से वे अपने भक्तों के अंदर रहनेवाली सारी अविद्याओं को नष्ट कर, उनमें प्रकाश ही प्रकाश भर देती है।

दरअसल नवरात्र एक ऐसा अवसर है, जिसमें अगर आप घर पर ही रहकर ध्यान या क्रिया योग का गहराइयों के साथ निरन्तर प्रयास करते हैं तो आपके सारे शरीर के अंदर विद्यमान सारे चक्र खुल जाते हैं और आप डिवाइन मदर के दिव्य प्रकाश से स्वयं को आलोकित कर लेते हैं। ये बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए योगदा संन्यासी स्वामी अमरानन्द गिरि ने योगदा भक्तों से कही।

उन्होंने कहा कि नवरात्र सारे अहंकारों और बुरी आदतों पर विजय पाने का सुंदर अवसर है। इन दिनों किया जानेवाला उपवास भी हमारे शरीर के अंदर की सारी गंदगियों को दूर करने में सहायक होता है। इससे आप प्रतिदिन एक नई दिव्य चेतना से युक्त होते हैं। ये दिव्य चेतना हमें निरन्तर उस दिव्य प्रकाश की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध होती है। जिस दिव्य प्रकाश को पाने के लिए योगियो का समूह निरन्तर लगा रहता है।

स्वामी अमरानन्द गिरि ने यह भी कहा कि हमेशा याद रखें कि माया के प्रलोभन से हमें हमेशा बचने की आवश्यकता है। आत्म संयम पर ध्यान देना है। गुरुजी यानी प्रेमावतार परमहंस योगानन्द जी के बताये मार्गों, उनके द्वारा दिये गये विशेष तकनीकों का हमेशा ध्यान करना है, क्रिया योग को अपनाकर अपने आपको दिव्य रास्ते पर ले चलना है। यह हम सबके लिए जरुरी है। उन्होंने कहा कि माया हमेशा अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगी। लेकिन हमें इससे बचने की जरुरत है।

उन्होंने कहा कि हमारे गुरुओं ने हमें अपने शत्रुओं से भी प्रेम करना सिखाया है। उनसे घृणा करना नहीं सिखाया। काम, क्रोध, मद, लोभ हमारे अंदर रहनेवाले शत्रु है। जिस पर निरन्तर विजय पाने की आवश्यकता है। अपने हृदय में हमेशा शांति, सद्भाव, करुणा, दयालुता को स्थान दीजिये। हमेशा मुस्कुराते रहिये। तब और ज्यादा मुस्कुराइये, जब आप संकट या विपरीत परिस्थितियों में हो। हमेशा रचनात्मक कार्यों में खुद को लगाइये। आपके द्वारा किये जा रहे प्रेम में समानता का भाव होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आपका व्यवहार भी काफी मायने रखता है और उस व्यवहार में आपका प्रेम काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रेम से आप दुनिया को बदल सकते हैं। प्रेम से दुनिया को जीत सकते हैं। गुरुजी परमहंस योगानन्द ने तो यहां तक कह दिया कि सिर्फ प्रेम ही उनका स्थान ले सकता है। इसलिए उक्त प्रेम को समझने की जरुरत है।

उन्होंने बड़े ही सुंदर ढंग से परमहंस योगानन्द जी के द्वारा बताई गई हं-सः तकनीक को गहराइयों में बताया और उसके प्रभावों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आत्म-नियंत्रण से सारी बुराइयों को भष्मीभूत किया जा सकता है। इससे सभी प्रकार को दोषों पर नियंत्रण किया जा सकता है। आप अपनी इच्छाशक्ति को अच्छाइयों से बढ़ाएं तथा बुराइयों को दूर भगाएं।

उन्होंने अंत में कहा कि ईश्वर के दिव्य प्रेम, दिव्य शांति और दिव्य आनन्द को ध्यान व क्रिया योग की गहराइयों से बहुत ही आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। प्राणायाम के निरन्तर अभ्यास से आप पायेंगे कि आप दिव्यता की ओर बढ़ रहे हैं और क्रिया योग इसमें आपकी महत्वपूर्ण सहायता कर रहा है। इसलिए नवरात्र के इस महत्वपूर्ण अवसर का लाभ उठाने में विलम्ब न करें। आप देखेंगे कि आपके निरन्तर प्राणायाम के अभ्यास ने आपको आपके अंदर की सारी बुराइयों पर विजय प्राप्त करवा दी।