अपनी बात

न प्रदेश में ढंग के नेता, न कार्यकर्ता, न संगठन, दलबदलुओं को लेकर टीम बनायेंगे और चलेंगे आभार समागम करने, अगर हेमन्त व कल्पना की यहां कृपा नहीं बरसी होती तो ये कांग्रेस पता नहीं, कब के तेलहंडा में चली गई होती

न प्रदेश में ढंग के नेता, न कार्यकर्ता और न ही संगठन और चले हैं आभार समागम करने, दलबदलुओं को लेकर टीम बनायेंगे और चलेंगे आभार समागम करने, सच्चाई तो यही है कि अगर हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन का आशीर्वाद इन्हें नहीं मिला होता तो इनकी पूरी पार्टी पता नहीं कबके, तेलहंडा में चली गई होती।

सच्चाई यही है कि जो स्वयं को कांग्रेस के बड़े नेता खुद को गिनवा रहे हैं, उनके पांव कब के कब्र में जा चुके हैं। स्थिति यह हैं कि इनके नाम पर दस लोग भी न जुटे। लेकिन बोली ऐसा बोलेंगे, जैसा लगता है कि ये पहाड़ तोड़ रहे हो। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो 2019 हो या 2024, आज जो कांग्रेस के लोग बोलनेलायक प्रदेश में बने हैं। उसके पीछे सिर्फ और सिर्फ हेमन्त सोरेन और उनकी टीम है।

नहीं तो कांग्रेसियों से ही पूछिये कि उनके बड़े नेता मल्लिकार्जुन खरगे, जब रांची के ही कांके में सभा करने चले थे, तो उनकी सभा में कितने लोग पहुंचे थे? याद है या फोटो दिखा दें। मतलब केवल कांग्रेस कार्यालय में भीड़ लगाना, मटरगश्ती करना और बिना काम-काज के मजमा लगाना और खुद को बहुत बड़ा कांग्रेसी सिद्ध करना बस इनका यही रोज का धंधा रह गया है।

वर्तमान में जो कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर है। अभी तक झारखण्ड को ठीक से समझ नहीं पाये हैं। विधानसभा चुनाव में तो इनका एक भाषण पूरे महागठबंधन के लिए भारी पड़ रहा था। खासकर घुसपैठियों को भी सुविधायें देंगे वाला बयान। वो तो जैसे-तैसे महागठबंधन का इस बयान से पिंड छुटा, नहीं तो इंडिया गठबंधन को सत्यानाश करने के लिए तो ये बयान ही काफी था।

लेकिन भाजपा के घटियास्तर की रणनीति के आगे इनका बयान कोई बवंडर धारण नहीं कर सका, नहीं तो आभार समागम की जगह ये अब तक पार्टी का यहां श्राद्ध कर रहे होते। राजनीतिक पंडित यहां की कांग्रेस के बारे में गलत नहीं कहते। वे साफ कहते हैं कि झारखण्ड में कांग्रेस हैं कहां?

क्या सुबोधकांत सहाय की इतनी हिम्मत है कि वे अकेले चुनाव लड़ लें और जीत जाये या हाल ही में दलबदल का इतिहास बनाकर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतनेवाले राधाकृष्ण किशोर जो आज मंत्री तक बन गये। इतने ही दावे के साथ कह सकते हैं कि उनकी जीत कांग्रेस की जीत है।

अगर झामुमो ने उन्हें समर्थन नहीं दिया होता तो क्या उनकी जीत हो जाती या पोड़ेयाहाट से जीत दर्ज करनेवाले और कांग्रेस विधायक दल के नेता बने प्रदीप यादव डंके की चोट पर ये बयान दे सकते है कि केवल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने से उनके भाग्य खुल गये। सच्चाई यह है कि झामुमो की वैशाखी पर चुनावी नैया पार करनेवाले इन कांग्रेसियों को इस प्रकार की नौटंकी करने से ज्यादा पार्टी धरातल पर कैसे मजबूत हो, इस पर ध्यान देना चाहिए।

जो आज प्रदेश अध्यक्ष हैं – केशव महतो, कमलेश। वे जिस जाति से आते हैं। क्या वे अपनी ही जाति के वोटों को कांग्रेस को दिलवाने में कामयाब हुए हैं? जरा छाती पर हाथ धरकर कहें। विद्रोही24 को मालूम हैं कि जो भी कांग्रेस को विजय मिली हैं। वो राहुल गांधी के करिश्मे से नहीं, बल्कि हेमन्त और कल्पना की मेहनत के बदौलत मिली है।

सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस झारखण्ड में अंतिम सांस गिन रही हैं। नहीं तो जीते हुए कांग्रेसी विधायक ही छाती पर हाथ धर कर रहे कि वे अपनी या अपने पार्टी के नेताओं के बल पर चुनाव जीते हैं। यहां तो सब को पता है कि कौन-कौन कांग्रेस का प्रत्याशी झामुमो की बड़ी नेता कल्पना सोरेन व राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की सभा उनके इलाके में हो, इसके लिए नाक रगड़ा करता था और आज जीत गये तो आभार समागम की नौटंकी हो रही है। बड़ा माला मंगवाकर उसमें खुद को ढुकाने की कोशिश हो रही हैं। अरे भाई थोड़ा शर्म करो कांग्रेसियों। लोग देख रहे हैं। जनता देख रही हैं। हंस रही हैं।

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