न पंचांग देखिये और न ही किसी पंडित जी से संपर्क करिये जो दैनिक भास्कर झूठ व सच लिखे, उसे ही सत्य मान लीजिये
न पंचांग देखिये और न ही किसी पंडित जी से संपर्क करिये जो दैनिक भास्कर झूठ व सच लिखे, उसे ही सत्य मान लीजिये, अगर वो कहे कि फलां तारीख से फलां तारीख तक खरमास हैं तो हैं, और अगर वो कह दें कि फलां तारीख से लेकर फलां तारीख तक मलमास हैं तो मलमास मान लीजिये, भले ही उस वर्ष मलमास लगे या न लगे, क्योंकि आजकल दैनिक भास्कर में विद्वान पत्रकारों की एक लंबी लाइन लग चुकी हैं।
जिन्होंने संकल्प कर लिया है कि हिन्दूओं के पर्व-त्यौहारों व उनके संस्कारों से संबंधित कोई भी कार्य क्यों न हो, उसका मजाक बना दिया जाये, क्योंकि ये समाज बोलनेवाला तो हैं नहीं, चुपचाप पढ़कर मौन साध लेता है। झारखण्ड के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र विद्रोही24 से बातचीत करते हुए कहते है कि खरमास और मलमास में आकाश जमीन का अंतर हैं।
जहां मलमास में एक मास की वृद्धि हो जाती हैं, वहीं खरमास में वैसा नहीं होता। खरमास में बहुत सारे शुभ कार्य निषिद्ध हो जाते हैं, जबकि मलमास में सारे कार्य निषिद्ध हो जायेंगे, ऐसा नहीं होता, बल्कि मलमास में तो हरिस्मरण से पुण्य अंश में भारी वृद्धि हो जाती है, कहा भी गया है कि मलमास भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र के अनुसार, चूंकि आजकल हर गली-मुहल्ले में महान पत्रकार पैदा ले लिये हैं और इसी तरह महान विद्वानों की फौज उत्पन्न हो गई हैं, जिससे ये सब भ्रांतियां फैलने लगी हैं, चूंकि सम्पादकों को इससे कोई मतलब नहीं होता, जो उनके संवाददाता या संवाद सूत्र या न्यूज सप्लायर्स उनके अखबारों तक समाचार पहुंचाते हैं, डेस्क पर बैठी मंडली जनता को बिना जांच पड़ताल किये परोस देती हैं, जिससे समाज का बंटाधार हो जाता है।
संपादकों को चाहिए कि वे इस ओर ध्यान दें, धर्म समाज से संबंधित चीजों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, धर्म-समाज का जानकार भी होना चाहिए, अगर आप जानकार नहीं रखेंगें तो लबर-धोधो की तरह समाचारें आयेंगी और लोग लबर-धोधो होते चले जायेंगे।