न तुम हो यार आलू (भाजपा), न हम है यार गोभी(झाविमो), तुम भी हो यार धोबी, और हम भी यार धोबी
रांची में 17 फरवरी की धूम है। भाजपा और झाविमो की ओर से तैयारी बड़े जोर-शोर से चल रही है। रांची के धुर्वा स्थित प्रभात तारा मैदान में सुना है कि बड़े-बड़े पंडाल बनाये जा रहे हैं। जहां भाजपा और झाविमो के कार्यकर्ता जुटेंगे और इसी दौरान झाविमो का भाजपा में विलय हो जायेगा। भाजपा के लोग इसे बाबू लाल मरांडी की घर वापसी बता रहे हैं।
पर राजनीतिक पंडितों की मानें तो दोनों (झाविमो-भाजपा) को एक दूसरे की तलाश है, जो एक दूसरे की मदद कर सकें, एक को झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनने की चाहत है तो दूसरे को झारखण्ड में हेमन्त सोरेन को कड़ी टक्कर देनेवाला ऐसा नेता चाहिए जो फिर से भाजपा को झारखण्ड में मजबूत कर दें और उसमें उसे बाबूलाल मरांडी छोड़कर दूसरा फिलहाल कोई नेता नहीं दिख रहा।
ऐसी स्थिति में, झाविमो और भाजपा के इस विलय की नौटंकी देख, हमें 1976 में बनी सुपरहिट फिल्म ‘दस नम्बरी’ की याद आ गई, जिसमें फिल्म जब क्लाइमेक्स पर पहुंचता है तो मनोज कुमार और प्राण मिलकर एक गाना गा रहे होते हैं, वो गाना है – ‘न तुम हो यार आलू, न हम है यार गोभी, तुम भी हो यार धोबी और हम भी यार धोबी, न तुम हो यार आलू…’ कहने का मतलब है कि दोनों को अपनी-अपनी औकात का पता चल गया है कि दोनों क्या हैं?
इसलिए दोनों स्वीकार कर रहे हैं कि न तो तुम आलू हो और न हम गोभी है, दरअसल हम दोनों धोबी ही हैं, यहां पर भी भाजपा-झाविमो के लोगों को पता चल गया है कि न तो तुम तीस मारखां हो और न ही हम तीस मारखां है, लेकिन अगर हम दोनों जो एक ही जाति (राजनीतिज्ञ) के है, अगर मिल जाये तो दोनों का भला हो सकता है, और यही एक दूसरे को मलाई खिलाने के चक्कर में एक बार फिर नौटंकी जनता के सामने परोसी और दिखाई जा रही है, यह कहकर कि बाबूलाल मरांडी की घर वापसी हो रही है।
राजनीतिक पंडितों की माने तो जब झारखण्ड में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तभी भाजपा के दिग्गज नेताओं से बाबू लाल मरांडी ने संपर्क किया था, तथा महागठबंधन को कमजोर करने के लिए राजनीतिक दांव-पेंच शुरु किये थे, जिसमें महागठबंधन से बेहतर संबंध रखते हुए भी महागठबंधन को हानि पहुंचाने के लिए तथा भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए झाविमो ने पूरे राज्य में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी, लेकिन इससे महागठबंधन को तो नुकसान नहीं हुआ, उलटे भाजपा और झाविमो को जो नुकसान हुआ, उसे पूरे झारखण्ड ने देख लिया।
हालांकि अपनी ओर से हेमन्त सोरेन ने बाबू लाल मरांडी को मनाने का, उन्हें सम्मान देने का भरपूर प्रयास किया, पर बाबू लाल मरांडी को तो अपना लक्ष्य दिखाई पड़ रहा हैं, उन्हें एक तीर से कई शिकार करने थे, ऐसे में वे हेमन्त सोरेन की बात क्यों मानते? इधर चुनाव खत्म हुआ और नौटंकी शुरु कि कैसे भाजपा में विलय का बहाना ढुंढा जाये? कहा जाता है कि जहां चाह वहां राह, बाबू लाल मरांडी को जल्दी ही बहाना मिल गया। जब बंधु तिर्की और झाविमो में ही यौन शोषण के आरोपी प्रदीप यादव दिल्ली जाकर सोनिया और राहुल के संग फोटो खिंचा लिये। इस फोटो के आधार पर ही बाबू लाल मरांडी ने हेमन्त सरकार से समर्थन वापस ले लिया और फिर वे खुलकर भाजपा के गीत गाने लगे।
भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं को भी लगा कि बाबू लाल मरांडी आ जायेंगे तो उनका कद बढ़ जायेगा, पर ये कद बढ़ेगा कि घटेगा, ये तो समय बतायेगा, पर इतना जरुर तय है कि बाबू लाल मरांडी ने भाजपा में शामिल होकर एक तीर से कई शिकार किये हैं। वे अर्जुन मुंडा और रघुवर दास जैसे नेताओं को बतायेंगे कि राजनीति क्या चीज होती है? क्योंकि जो अपमान के घूंट अर्जुन मुंडा ने उन्हें दिये हैं, हमें नहीं लगता है कि बाबू लाल मरांडी कभी उसे भूल पायेंगे।
बाबू लाल मरांडी इतने भी मूर्ख नहीं है कि वे बिना शर्त भाजपा में जा रहे होंगे, उन्होंने निश्चय ही सौदेबाजी की होगी, जिसमें पार्टी को पुनः शिखर पर लाने तथा राज्य का बागडोर उन्हें सौंपने की बात पर मुहर लगी हो, ऐसे में निश्चय ही भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को उनके आने से मनोबल बढ़ेगा, साथ ही उनलोगों की पूछ घटेगी, जिन्होंने भाजपा के नाम पर खुद को प्रतिष्ठित किया और भाजपा को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
अब राज्य में एक बात तो तय है कि बहुत वर्षों के बाद फिर से सत्ता और विपक्ष में आदिवासी नेताओं के बीच वाक् युद्ध देखने को मिलेगा, राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ेंगी। बाबू लाल मरांडी के भाजपा में जाने से हेमन्त सोरेन को अपनी राजनीति को नये ढंग से ले जाने की कोशिश करनी होगी, और इसमें हेमन्त सोरेन को एक ही व्यक्ति मजबूती प्रदान कर सकता हैं, और वह कौन हो सकता है, हेमन्त सोरेन को अच्छी तरह मालूम है।