एनजीटी अदालत ने माना कि झारखण्ड विधानसभा भवन सहित कई निर्माणों में पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अवहेलना हुई
एनजीटी अदालत ने 23 सितम्बर 2019 को अपने नये आदेश में उल्लेखित किया है कि इन्वारमेन्टल क्लियरेंस के बिना झारखण्ड में बनाये गये विभिन्न भवनों को लेकर जो कमेटी बनाई गई थी, उसने अपनी रिपोर्ट अदालत को दे दी हैं, और उस रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि झारखण्ड विधानसभा भवन ही नहीं, बल्कि अन्य स्थानों पर के निर्माण में एनजीटी के कई निर्देशों की अनदेखी की गई। अदालत का कहना है कि इन सारे मामलों को पर्यावरण के दृष्टिकोण से नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत का मानना है कि इसमें इन्वारमेन्टल क्लियरेंस की अवहेलना की गई और इस मामले में पर्यावरण को क्षति पहुंचाने को लेकर संबंधित पक्ष के खिलाफ समुचित कार्रवाई करने का पूरा मामला बनता है और इन्वारमेन्टल क्लियरेंस का अवहेलना करनेवालों से हर्जाना भी वसूला जायेगा।
ज्ञातव्य है कि सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् डा. आर. के. सिंह द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, प्रिंसिपल बेंच, नई दिल्ली में लगाये गये गुहार कि झारखण्ड में भवन निर्माण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर इन्वारमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट नोटिफिकेशन 2006 की अवहेलना हो रही है, उस पर दो सितम्बर 2019 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक आदेश जारी किया था। आदेश में एमओआइएफ और क्लाइमेंट एक्सचेंज भुवनेश्वर को एक कमेटी बनाकर इस संबंध में जल्द रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था, साथ ही झारखण्ड की स्टेट लेवल इनवारमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट ऑथोरिटी के नोडल एजेंसी को इसमें सहयोग करने को भी कहा गया था।
अदालत का कहना था कि आर के सिंह द्वारा सूचित किया गया है कि झारखण्ड के रांची, जमशेदपुर, बोकारो और देवघर में बिना इनवार्मेंटल क्लियरेंस के ही कई भवनों का निर्माण कर दिया गया तथा कुछ की जारी है। आर के सिंह का कहना था कि झारखण्ड हाई कोर्ट भवन, झारखण्ड विधानसभा भवन, पीएंडएम, हाई–टेक सिटी सेन्टर मॉल जमेशदपुर, विजय गार्डेन होम्स और आस्था ट्विन सिटी भी इसमें शामिल है।
अदालत का कहना था कि आर के सिंह द्वारा सूचना मिली है कि आरटीआइ एप्लीकेशन के द्वारा पता चला है कि मात्र 20 लोगों ने इन्वारमेंट क्लीयरेंस के लिए आवेदन संबंधित विभाग को दिया है, जबकि इआइए नोटिफिकेशन के अनुसार 20,000 स्क्वायर मीटर से अधिक के निर्माण में इन्वारमेंटल क्लियरेंस लेना जरुरी है। आवेदक का कहना था कि ऐसा नहीं होने से हवा की गुणवत्ता, भूगर्भ जल स्तर, भूमि की उर्वरा शक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।