नीतीश कुमार यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि उन्होंने बेंचमार्क बना रखा हैं…
आप यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कि…
- जिन पर आरोप लगा हैं, उन्हें तथ्यों के आधार पर प्रमाणिक जवाब देना चाहिए।
- भ्रष्टाचार के मामलों में हम लोगों ने बेंचमार्क बना रखा है, अब उनको कॉल लेना चाहिए।
- उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव (लालू प्रसाद के होनहार बेटे) पर सीबीआइ के मुकदमे के मामले में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की अपनी नीति से उनकी पार्टी कोई समझौता नहीं करेगा।
नीतीश कुमार की नैतिकता की अग्नि परीक्षा
क्योंकि इस बार आपकी भी अग्नि परीक्षा है कि आप इस मामले पर क्या निर्णय लेते है? क्योंकि राजद ने क्लियर कर दिया है कि उनके नेता तेजस्वी प्रसाद यादव इस्तीफा नहीं देंगे। अभी तक जो स्थिति है, उससे भी यहीं स्पष्ट हो रहा है कि तेजस्वी प्रसाद यादव ने अपनी ओर से कुछ भी ऐसा संकेत नहीं दिया कि वे इस्तीफा दे ही देंगे। ऐसे भी इस्तीफा भी वहीं देता है, जिसके पास नैतिकता होती है, जिसने नैतिकता बेचकर ही धमाल मचा रखा है, अंधाधुंध धन इकट्ठा किया वह भी दान का नाम लेकर, उससे यह कामना कि वह इस्तीफा देगा, तब तो हो गई बात। स्थिति तो ऐसी हो रही है कि देश के भीखमंगे भी अब शरमा गये है कि जिस दान लेने शब्द पर उनका हक था, उस पर भी राजनीतिज्ञों ने कब्जा जमा लिया। अब तो उनकी रोजी-रोटी भी छीनने को लालू प्रसाद जैसे लोग आगे आ चुके है। यह कैसा बिहार है? यह कैसा नेता है? यह कैसा चरित्र है?
नैतिकता के कारण ही बिहार में लोकप्रिय हैं नीतीश
हालांकि बिहार की जनता चाहे वह किसी वर्ग की क्यों न हो, आपको प्यार देती है, आपका सम्मान करती है, वह स्वीकार करती है कि आपमे नैतिकता है, आपने बिहार को एक नई पहचान दी है, कल तक जो बिहार लालू प्रसाद के कारण सम्मान खो चुका था, आपने उस खोये सम्मान को बहुत हद तक लौटाया है, पर एक बार फिर आप की परीक्षा हो रही है, इसमें पास करना या फेल करना, आपके मर्जी पर निर्भर करता है। ऐसे आपने पूर्व में एक मिसाल कायम किया है, जो मिसाल किसी ने नहीं पेश किया, यहां तक कि भाजपा ने भी नहीं। जैसे – आपकी पार्टी की सरकार 2005 में बनी, इसी दौरान जीतन राम मांझी का मामला हो या रामाधार सिंह का। आपने जबर्दस्त उदाहरण पेश किया। हमें याद है कि जब हम लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के कुछ इलाकों में पत्रकारिता कार्य हेतु निकले, तो बिहार की जनता का स्पष्ट रुप से कहना था कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और बिहार के लिए नीतीश कुमार फीट है। इसलिए चाहे जो हो, लोकसभा में वे कमल खिलायेंगे और विधानसभा में नीतीश के लिए बटन दबायेंगे, और यहीं हुआ भी।
लालू प्रसाद की पकड़ ढीली
जिस महागठबंधन में आप है, वहां के नेता है – लालू प्रसाद यादव। जो आजकल सीबीआइ को बार-बार कोसते है, वे बार-बार कहते है कि केन्द्र के इशारे पर सीबीआइ लालू प्रसाद और उनके परिवार को परेशान कर रहा है। कमाल है – तीन साल पहले नरेन्द्र मोदी की सरकार केन्द्र में आयी और आप उसके पहले अपने यूपीए के चहेते थे, फिर भी आप चारा घोटाला को मैनेज नहीं कर सके, आपने अपने उपर लगे आरोपों को मिटा नहीं सकें, जब आपके कथनानुसार केन्द्र की सरकार सीबीआइ को इस्तेमाल करती है, तो आपने इस्तेमाल क्यों नहीं किया? हमें याद है कि आप यूपीए 1 में गृह मंत्री का पद लेने के लिए बेकरार थे, पर आपकी योग्यता को भांप कर सोनिया गांधी ने आपको रेल थमा दिया था और आपने रेल को कितना भट्ठा बैठाया। वह इसी से पता चला जब ममता बनर्जी ने रेल मंत्रालय संभाला। वह तो आपको संसद में ही चेता दी थी, कि आप चुप रहे, नहीं तो वह आपके कारनामों पर श्वेतपत्र जारी करेगी, तब आपने चुप्पी लगा दी थी। यूपीए 1 के दौरान, जो आप कहा करते थे कि आपने रेल को लाभ पर पहुंचाया, उस तिकड़म को सभी लोग जान लिये थे, जिस पर आज के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस समय चुटकी लेते हुए कहा था कि जो लालू प्रसाद के बाद रेल मंत्रालय संभालेगा, उसको पता चलेगा कि रेल में क्या फर्जीवाड़ा चल रहा है?
काफी असमानताएं हैं लालू और नीतीश में
लालू और नीतीश में कुछ समानताएं है, तो कुछ असमानताएं भी है। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों 1974 छात्र आंदोलन के उपज है, दोनों जयप्रकाश नारायण के शिष्य, दोनों सामाजिक न्याय के पक्षधर, पर जहां लालू प्रसाद ने परिवार से ज्यादा किसी को तवज्जों नहीं दिया, जातीयता फैलाई, सामाजिक वैमनस्यता का बीज बोया, ठीक इसके दूसरी ओर नीतीश कुमार को कोई कह नही सकता कि उन्होंने अपने परिवार को लाभ पहुंचाया या जातीयता फैलाई या सामाजिक वैमनस्यता फैलाकर अपना चेहरा चमकाया, पर इस बार फिर नीतीश कुमार की अग्नि परीक्षा हो रही है, बिहार की जनता को विश्वास है कि नीतीश कुमार एक बार फिर बड़ा फैसला लेंगे, जो बिहार के हित में होगा।