अपनी बात

कितना भी जोर लगा लें गवर्नर, भाजपाई नेता व रांची से प्रकाशित अखबारों का समूह, हेमन्त का नुकसान नहीं कर पायेंगे, सरकार चलती रहेंगी

कितना भी जोर गवर्नर लगा लें, कितना भी सट के वे देश के प्रधानमंत्री व गृह मंत्री के साथ फोटो खिंचवा लें और उस फोटो का अखबारों के माध्यम से प्रदर्शन करवा लें, भाजपा के नेता और झारखण्ड के सारे CM हेमन्त विरोधी अखबार छाती पीट लें, वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते, क्योंकि हेमन्त सरकार की स्थिति इतनी मजबूत है कि कोई इस सरकार की अभी नींव तक नहीं हिला सकता। इस सच्चाई को कोई झूठला भी नहीं सकता।

इधर कुछ दिनों से देख रहा हूं कि राज्य के कई अखबार एक साथ सीएम हेमन्त के खिलाफ मुखर होने लगे हैं, अखबारों में विरोध के स्वर गूंजने लगे हैं, शायद इन्होंने मान लिया कि अब हेमन्त का जाना तय हैं, पर राजनीतिक पंडितों की मानें तो हेमन्त का बाल बांका करने की ताकत फिलहाल किसी में नहीं, क्योंकि अभी सारे के सारे ग्रह-गोचर हेमन्त की सत्ता को मजबूत करने में लगे हैं, भले ही हेमन्त पर कितने भी भ्रष्टाचार के आरोप क्यों न लग रहे हो या उसमें सच्चाई ही क्यों न हो?

राजनीतिक पंडित बताते हैं कि कुछ दिनों से रांची से प्रकाशित कई अखबार खोद-खोदकर ऐसे-ऐसे समाचार को प्रथम पृष्ठ पर इस प्रकार से छाप रहे हैं, जैसे लगता हो कि इन सबको पता चल गया हो कि अब हेमन्त सरकार का गिरना तय हैं और राज्य में भाजपा की सरकार बननी तय है। इसीलिये कुछ दिनों पहले तक भाजपा नेताओं के जो बयान अंदर के पृष्ठों पर एक कॉलम तक सिमटे रहते थे, वे अचानक प्रथम पृष्ठ पर दिखाई देने लगे, यही नहीं भाजपा का सीएम कौन होगा? ये भी प्रोजेक्ट होने लगा?

अचानक जनता के सामने रघुवर दास को हीरो बनाकर पेश किया जाने लगा और बाबू लाल मरांडी को दूसरे दर्जे का नेता इन्होंने स्वीकार कर लिया, जबकि राजनीतिक पंडितों की मानें तो जैसे ही भाजपा रघुवर को प्रोजेक्ट करेगी, ठीक उसका फायदा हेमन्त सोरेन को मिलेगा, क्योंकि रघुवर पर जितने दाग हैं, उतने दाग तो राज्य में किसी दल के नेताओं पर नहीं हैं, तभी तो कभी 2019 विधानसभा चुनाव के समय रघुवर को धूल चटाने वाले सरयू राय ने इन्हें रघुवर दाग के नाम से पुकारा था।

राजनीतिक पंडित कहते है कि गवर्नर का दिल्ली जाना, भाजपा नेताओं का कुछ दिन पहले दिल्ली परिक्रमा करना, अचानक खनन संबंधी पट्टा का मुद्दा उछालना, एक नेता द्वारा रांची में प्रेस कांफ्रेस कर ड्रामा करना कोई ऐसे ही नहीं हुआ हैं, ये एक साजिश की तरह चल रहा हैं, जो राज्य के मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवों-परिक्रमाधारियों को पता ही नहीं हैं, क्योंकि फिलहाल ये अपने उपर हो रहे आक्रमण से ही पस्त हैं।

इन्हें पता ही नहीं कि इस समय क्या किया जाय, और जो इस प्रकार की राजनीति के चाणक्य हैं, इन कनफूंकवों-परिक्रमाधारियों यहां तक की मुख्यमंत्री तक को हिम्मत नहीं कि कैसे इससे निकला जाये, जानने के लिए उस चाणक्य तक पहुंच सके। राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि उस चाणक्य ने भी ऐसे लोगों को दंडित करने का मन बना लिया हैं, फिर भी हेमन्त पर उसकी कृपा सदैव बनी रही हैं।

राजनीतिक बाजारों में तो जो भाजपाई हैं, जो गवर्नर से नजदीक के लोग हैं, वे तो अभी से ही लड्डू के साइज तैयार कराने में लगे हैं, पर वे लडडू धरे के धरे रह जायेंगे, ये भी सत्य है, क्योंकि न तो झारखण्ड, मध्यप्रदेश हैं, न गोवा हैं और न कर्नाटक, जहां भाजपा सत्ता के बिल्कुल करीब थी और कुछ लोगों को लेकर सरकार बनाने की स्थिति में थी। झारखण्ड में स्थिति बिल्कुल अलग हैं और अभी तो बिल्कुल ही नहीं।

लेकिन ग्रह-गोचर की मानें तो 2023 के प्रारम्भ में स्थितियां बदलेंगी, हेमन्त के ग्रह-गोचर दगा देंगे, विधायकों में भारी नाराजगी दिखेंगी, हेमन्त चाहकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे, कांग्रेस और झामुमो के विधायकों में भगदड़ मचेंगी, वे खुद हेमन्त को कटघरे में खड़ी करेंगे और फिर सरकार बदलने से कोई रोक नहीं सकता।

अभी जो नये-नये नमूने राजनीति में पैदा हो रहे हैं, वे कहां फेंकायेंगे, उनको पता ही नहीं चलेगा। सत्ता में 60 प्रतिशत चेहरे नये नजर आयेंगे, सत्ता परिवर्तन अवश्यम्भावी होगा। हेमन्त के लिए पाने के लिए तो कुछ नहीं बचेगा, पर खोने के लिए बहुत कुछ होगा। घर के ही भेदिये, इनकी लंका ढाहेंगे और झारखण्ड पर दूसरे दलों का कब्जा हो जायेगा।