रघुवर सरकार का कारनामा – धनबाद प्रशासन ने एक गरीब के शव को कचड़े वाहन से ढुलवा दिया
सवाल राज्य सरकार से, सवाल धनबाद प्रशासन से, सवाल धनबाद के भाजपा सांसद और भाजपा विधायक से, सवाल धनबाद के नगर निगम प्रशासक से भी और सवाल धनबाद के कट्टर भाजपा समर्थक मेयर से भी, कि वे ये बतायें कि क्या किसी का शव ऐसे ढोया जाता है? जैसा कि धनबाद में एक गरीब महिला के शव को ढोया गया।
सवाल सामान्य जनता से भी कि क्या किसी के घर में कोई मर जाता है? तो क्या उसका शव नगर निगम के कूड़ा उठानेवाली गाड़ी मंगवाकर, जैसे कूड़ा फेंका जाता है, वैसे उस शव को कूड़ा माफिक फेंक कर उसकी अंतिम क्रिया कराई जाती है? या उसके लिए शव-वाहन बुलवाया जाता है, शव की शिनाख्त की जाती है और फिर उस शव का मानवीय मूल्यों के आधार पर उसकी अंतिम क्रिया कराई जाती है।
यह सवाल मैं इसलिए कर रहा हूं कि जिस प्रकार की घटना धनबाद में घटी है, वह इतनी शर्मनाक है, कि इसकी जितनी आलोचना की जाय कम है। क्या यह माना जाये कि धनबाद ने मानवीय मूल्यों को तिलांजली दे दी है? क्या यह माना जाये कि धनबाद का जिला प्रशासन लोक सेवक न होकर लोकस्वामी बन बैठा है, जो कि अधिकारी बनने के क्रम में इनके पाठ्यक्रम लोक प्रशासन में इन्हें सिखाया जाता है कि आप लोक सेवक बने, न कि लोकस्वामी, पर यहां तो सरकार तो सरकार, अधिकारी भी जनता के स्वामी बन बैठे है। धिक्कार है, ऐसे जनप्रतिनिधि को और धिक्कार है ऐसे लोक सेवक को।
घटना धनबाद के भूली की है। घटना छठ के पहले अर्घ्य के दिन की है। एक महिला जो भीख मांगकर अपना गुजारा करती थी। उसकी मौत हो जाती है। उसके शव को कचरा ढोनेवाली धनबाद नगर निगम के वाहन में जैसे-तैसे फेंककर श्मशान ले जाया जाता है और उसकी अंतिम क्रिया करा दी जाती है। फिर सवाल उन महान अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से, क्या उस गरीब महिला के शव को श्मशान ले जाने के लिए आपको कचड़ा ढोनेवाला वाहन ही मिला था? क्या एक सभ्य समाज में शवों को नगर निगम के कचड़ा ढोनेवाले वाहन को बुलाकर, उसमें शवों को जैसे-तैसे फेंककर रफा-दफा किया जाता है, अगर नहीं तो फिर ऐसी अमानवीय हरकत, उक्त गरीब महिला के शव के साथ क्यों किया गया? जनता को जवाब चाहिए, क्योंकि उसी की कर से तो आपके घर के चिराग रोशन होते हैं।