सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, एससी-एसटी ऐक्ट के खिलाफ नहीं, पर निर्दोषों को बचाना जरुरी
सर्वोच्च न्यायालय ने आज स्पष्ट कहा कि वह एससी-एसटी ऐक्ट के खिलाफ नहीं हैं, पर निर्दोष लोगों को बचाना भी जरुरी हैं। केन्द्र सरकार द्वारा स्टे की मांग को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दिन में सभी पक्षों से लिखित जवाब मांगा है। न्यायालय ने कहा है कि उसने ऐक्ट को कमजोर नहीं किया, पर गिरफ्तारी के सीआरपीसी के प्रावधान को परिभाषित अवश्य किया है।
एससी-एसटी ऐक्ट से जुड़े फैसले की पुनर्विचार याचिका पर केन्द्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से आज निराशा हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्टे से इनकार करते हुए, दस दिन बाद अगली सुनवाई की बात कही। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा कि वह इस ऐक्ट के खिलाफ नहीं है, लेकिन निर्दोषों को सजा नहीं मिलनी चाहिए, इसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के बाहर क्या हो रहा है? इससे उसे लेना-देना नहीं, उनका काम कानूनी पहलूओं पर ध्यान देना और उस संबंध में बाते करना और संविधान के तहत कानून का आकलन करना है।न्यायालय ने यह भी कहा कि एससी-एसटी ऐक्ट से पीड़ित को मुआवजा देने में देरी नहीं होगी, उसके लिए प्राथमिकी की इंतजार की भी आवश्यकता नहीं।
केन्द्र सरकार द्वारा 20 मार्च को इस पर दिये गये फैसले पर स्टे लगाने के आदेश को न्यायालय ने नहीं माना। न्यायालय ने इस मुद्दे पर आंदोलनकारियों द्वारा सड़कों पर प्रदर्शन करनेवालों पर तंज कसते हुए कहा कि जो प्रदर्शन कर रहे हैं, दरअसल उन्होंने जजमेंट पढ़ा ही नहीं हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे उन निर्दोष लोगों की चिंता हैं, जो बेवजह जेलों में बंद है।