कहां दीनदयाल-अटल बिहारी एवं कहां नरेन्द्र मोदी-रघुवर दास, एक ने जोड़ा तो एक तोड़ने चल दिया
“अनैतिक कार्यों, भ्रष्ट आचरण एवं जातिवादी सोच के कारण भाजपा जल्द ही मिट्टी में मिल जायेगी, भाजपा को मिट्टी में मिलाने के लिए किसी को भी कुछ करने की अब जरुरत नहीं।” ये बातें में इसलिए लिख रहा हूं कि जो लोग भाजपा को “पार्टी विद् द डिफरेंस” मानते है, या जिन्होंने कभी भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी-लाल कृष्ण आडवाणी वाली होर्डिंग्स में ये पढ़ा हो कि “राम राज्य की ओर चलें, भाजपा के साथ चलें।” वे अब मुगालते में न रहे, भाजपा भी अन्य पार्टियों की तरह अनैतिक कार्यों, भ्रष्ट आचरण एवं जातिवादी सोच में उसी प्रकार डूबी है, जैसे कि भारत की अन्य पार्टियां, इसलिए दूसरे दलों को गाली देने की जो भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं की प्रवृत्ति है, वे उसमें सुधार कर लें।
याद करिये प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के 13 दिनों का शासन काल। लोकसभा में वे सदन को संबोधित कर रहे हैं, संबोधन के क्रम में, उन्होंने सदन में ताल ठोंककर उस दौरान कहा था कि “पार्टी तोड़ के, सत्ता के लिए नया गठबंधन करना, और इस प्रकार से, अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से छूना पसन्द नहीं करता” क्या वर्तमान में भाजपा में कोई ऐसा नेता है, जो ये बात साहस के साथ कह सकें? पर आज झारखण्ड में मुख्यमंत्री रघुवर दास को देखिये, बहुमत प्राप्त करने के लिए झारखण्ड विकास मोर्चा को तोड़कर, उसके छः विधायकों को पद का लालच देकर अपनी पार्टी में मिला लेता है और जब इस दल-बदल का केस विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव की अदालत में चल रहा होता है, तब दिनेश उरांव इस पर निर्णय लेने में, फैसले देने में जान-बूझकर देर लगा रहे हैं ताकि रघुवर सरकार के शासनकाल के पूरे पांच साल आराम से निकल जाये, क्या भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतनेवालों की यहीं नैतिकता है,
कल के भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को देखिये, जो सत्ता को बचाने के लिए अनैतिक तरीके नहीं अपनाते, सदन में वोटिंग भी नहीं कराते और कहते हैं, अध्यक्ष जी, मैं जा रहा हूं, माननीय राष्ट्रपति जी को अपना इस्तीफा सौंपने और आज का भाजपा का नेता सत्ता को बचाने के लिए, अपनी शक्ति को बढाने के लिए दूसरे दलों को तोड़ देता है।
अब अनैतिकता का दूसरा उदाहरण देखिये, जरा देखिये, कल तक जब भी मौका मिलता था, भाजपाइयो को, तो वे दूसरे दलों में व्याप्त जातिवाद और उसकी जातिवादी राजनीति पर कड़ा प्रहार करते थे, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार में हो रही जातिवादी राजनीति पर कड़ा प्रहार किया था, पर आज उनके ही नेता रघुवर दास जैसे लोग दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में तेली समाज की रैली में यह कहते हुए गर्व महसूस करते है कि हमारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तेली है।
याद करिये, ये वही पार्टी है, जहां कभी पं. दीन दयाल उपाध्याय हुआ करते थे, जब जौनपुर सीट से चुनाव लड़ने की बात आई और उन्हें ब्राह्मण जाति का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने को कहा गया तो उन्होंने इसका कड़ा प्रतिवाद ही नहीं, बल्कि उन्होंने चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया था, ऐसा ही वाकया अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुआ था, जब उन्होंने ब्राह्मणों की जातीय सभा में आमंत्रित किया गया था, तब उन्होंने ऐसी सभा में भाग लेने से इनकार कर दिया था, पर आज के भाजपाइयों को देखिये, वह तेली होने पर गर्व ही नहीं करता, वह पीएम मोदी की जाति को भी लोगों के समक्ष रखता है और कहता है कि गर्व करिये, मोदी जी तेली है।
कमाल है, ये जातिवादी राजनीति करें तो सही, राष्ट्रीय जनता दल या दूसरी पार्टियां जातिवादी राजनीति करें तो गलत, ये अपने पार्टी में परिवारवाद लायें, जैसे राजनाथ सिंह अपने बेटे को चुनाव लड़वाये, वसुंधरा राजे सिंधिया अपने बेटे को चुनाव लड़वाये तो सहीं और दूसरे दलों के नेता अगर अपने बेटे को चुनाव लड़वायें, पार्टी का अध्यक्ष बनवायें तो गलत, ये दोगली नीति कब तक चलेगी भाई? अरे ये दोहरा चरित्र कब तक? जनता को उल्लू बनाने का काम कब तक?
धारा 370 को ताखा पर रखकर पीडीपी के साथ शासन कब तक? राम जन्म भूमि आंदोलन के नाम पर अपनी ताकत बढ़ानेवाली पार्टी श्रीराम मंदिर बनायेगी या भी नहीं? समान नागरिक कानून कब तक? एक समान शिक्षा नीति कब तक? अरे पहले तो कहा करते थे कि बहुमत नहीं हैं, अब तो लोकसभा में भी बहुमत, राज्य सभा में भी बहुमत, कई राज्यों में भी बहुमत, फिर भी आप कमजोर, अपने वायदे पूरे नहीं कर सकते, तो फिर दूसरे पर अंगूलियां उठाने का मतलब, वाह रे प्रधानमंत्री मोदी और वाह रे मुख्यमंत्री रघुवर दास, किसी ने ठीक ही कहा, कि “कहां दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी और कहां मोदी और दास, यानी कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली”।