राज्यपाल का संदेश नहीं मिलना मतलब भाजपा के इशारे पर महत्वपूर्ण विधयेकों पर रोड़ा अटकाने का काम राजभवन व वहां के लोग कर रहे हैं, जो खुद को संविधान से उपर मान रहे हैं – JMM
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज झारखण्ड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन व राजभवन के अधिकारियों को खुब खरी-खोटी सुनाई, साथ ही उन पर गंभीर आरोप भी लगाये। सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि झारखण्ड के राज्यपाल चाहे वो रमेश बैस रहे हो या वर्तमान राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन या राजभवन में कार्यरत अधिकारी सभी ने संविधान की मर्यादाओं का ध्यान नहीं रखा। उन्होंने राज्यपाल पर यह भी आरोप लगाये कि वे भाजपा के इशारे पर महत्वपूर्ण विधेयकों के विरोध में रोड़े अटकाने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राजभवन को मालूम होना चाहिए कि विधानसभा जनआकांक्षाओ की पूर्ति के लिए एक ऐसा पंचायत है, जिसकी सर्वोच्चता यहां की शासन व्यवस्था पर सबसे ज्यादा है, जो विधायी कार्य वहां पर होते हैं, उसका अनुपालन राज्य सरकार द्वारा अर्थात् कार्यपालिका द्वारा होता है। हमें मालूम है कि झारखंड विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्यसंचालन के नियम 98 (1) के तहत जो भी विधेयक विधानसभा से पारित होता है, वो विधेयक विधानसभा का प्रोपर्टी होता है और वो राज्यपाल की अनुशंसा/सहमति के लिए, विधानसभा सचिवालय द्वारा भेजा जाता है।
सुप्रियो ने कहा कि ये पूरे देश के लिए हैं। भारत का संविधान अनुच्छेद 200 कहता है कि जो विधायी कार्य होंगे, उसकी अनुमति /सहमति वो राष्ट्रपति या राज्यपाल के द्वारा लिया जाता है। वो राज्यपाल चार स्थितियों में उस पर काम करते हैं, पहला या तो विधेयक को सहमति देते हैं या उनको जहां त्रुटियां लगती है, तो उससे विधानसभा को अवगत कराते हैं, या विधयेक पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों की राय लेते हैं, या अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति भवन या कार्यालय तक भेज देते हैं।
उन्होंने कहा कि इसके पहले भी यह परम्परा रही हैं, कि जो भी विधेयक यदि गवर्नर के द्वारा स्वीकृति में कही भी दिक्कतें आ रही थी, तो राज्यपाल का सचिवालय, राज्यपाल का संदेश भेजते हैं, अभी की जो राष्ट्रपति है, द्रौपदी मुर्मु। कभी सीएनटी/एसपीटी एक्ट पर जब संशोधन हुआ तो उन्होंने मैसेज भेजा था कि वे क्यों इस विधेयक को वो लौटा रही हैं, जो यहां छह साल तक राज्यपाल रही। जो अभी आज राष्ट्रपति पद को शोभायमान कर रही है।
सुप्रियो ने कहा कि विगत जो राज्यपाल थे, जब राज्य सरकार ने विधानसभा से स्थानीय व्यक्ति को झारखण्ड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्ति को परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभ प्रदान करने के लिए विधेयक 2022, भीड़ हिंसा एवं मॉब लीचिंग निवारण विधेयक 2021 तथा पिछड़े वर्ग ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत करने के लिए विधेयक 2022 को जब राजभवन भेजा। तब ऐसा मैसेज विधानसभा को प्राप्त नहीं हुआ।
सुप्रियो ने कहा कि हो सकता है कि वो केन्द्र में मंत्री भी थें, भाजपा के नेता थें, वर्तमान राज्यपाल भी भाजपा के नेता व सांसद रहे हैं, तो ऐसा कर रहे हैं फिर भी उन्हें विधेयक संबंधी संदेश विधानसभा को बताना ही पड़ेगा, क्योंकि विधेयक विधानसभा की परिसम्पति, और उसके अभिरक्षक विधानसभाध्यक्ष होते हैं। सुप्रियो ने कहा कि अपना पक्ष विधानसभा को नहीं संप्रेषित करने का मतलब ये तो सीधा टकराव है। राज्यपाल के सचिवालय में कौन लोग बैठे हैं? कौन लोग इस रास्ते में ले जा रहे हैं? मॉब लींचिंग की जब बातें आती है, तो राज्यपाल को घुसपैठिये याद आने लगते हैं, ओबीसी की आरक्षण की बात आती हैं तो उनके पेट में दर्द हो जाता है।
उन्होंने कहा कि सरकारी की दृढ़ इच्छा है कि जो जनता की आकांक्षा भी हैं, उसे इस मानसून सत्र में फिर से प्रस्तुत करें और इस संकल्प के लिए जरुरी हैं कि विधानसभा तक राज्यपाल का इन विधेयकों पर संदेश पहुंचे, नहीं तो ये सीधा तौर पर समझा जायेगा कि भाजपा के इशारे पर ये तीनों महत्वपूर्ण विधयेक पर रोड़ा अटकाने का काम राजभवन और वहां बैठे व्यक्ति कर रहे हैं, ये संविधान से उपर हो गये हैं।
सुप्रियो ने कहा कि जब आज की राष्ट्रपति और पूर्व में झारखण्ड की राज्यपाल रह चुकी द्रौपदी मुर्मु जो को यह परम्परा याद थी तो आज के राज्यपाल को भी यह परम्परा याद रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल जिला/टोला घुम रहे हैं, पर संवैधानिक कर्तव्यों को वे भूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये आरोप नहीं बल्कि यह सत्य है। राज्यपाल सरकार को अस्थिर करने की ओर ले जा रहे हैं। वे चाहते है कि जनता का काम नहीं हो। हर रोज अपना कार्य योजना तय करते हैं और उसे क्रियान्वित करते हैं।
सुप्रियो ने कहा कि राज्यपाल को नहीं भूलना चाहिए कि यहां के लोगों ने बड़ी-बड़ी ताकतों से टकराने का काम किया है। इसका इतिहास आज का नहीं, 1855 संताल हूल से रहा है, उसके पहले भी तमाड़ विद्रोह, कोल विद्रोह, तमाम ऐसे विद्रोह हुए हैं। सुप्रियो ने कहा कि उनका मानना है कि यदि राजभवन सीरियस हैं, अगर नहीं तो सीरियस होकर तत्काल विधेयक को लेकर अपना संदेश विधानसभाध्यक्ष को भेंजे। ताकि विधानसभाध्यक्ष राज्यपाल के संदेश पर चर्चा कराकर, अगर संशोधन की बात हो, तो संशोधन कराकर फिर से उस विधेयक को राज्यपाल तक भेंजे। सुप्रियो ने यह भी कहा कि अगर ये संभव नहीं हुआ तो ये दुर्भाग्य जनता का होगा और ये सारे काम राज्यपाल के द्वारा हो रहा है।