गेरुआ वस्त्र पहनने से कुछ नहीं होगा, हो सके तो योगी आदित्य नाथ के चरित्र को भी अपनाइये, तभी झारखण्ड की जनता और आप सभी का कल्याण होगा, वरना ये नौटंकी ही कहलायेगा…
जी हां, गेरुआ वस्त्र पहनने से कुछ नहीं होगा, हो सके तो योगी आदित्यनाथ के चरित्र को भी अपनाइये, तभी झारखण्ड की जनता और आप सभी का कल्याण होगा, वरना ये नौटंकी ही कहलायेगा। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि ताकि आपको समझ में आये, और हेमन्त सरकार के बचे ढाई साल का सही-सही आप लाभ उठा सकें और जिस प्रकार योगी के शासनकाल से उत्तर प्रदेश की जनता लाभान्वित हैं, उसी प्रकार यहां की जनता लाभान्वित हो।
उत्तर प्रदेश की जनता तो वहां किसी विधायक को जानती ही नहीं थी, वो तो सिर्फ मोदी और योगी को ही जानती थी, वह कहती थी कि मोदी-योगी ने चावल दिये, गेहूं दिये, चने दिये, नमक दिये, तेल दिये, गैस दिये तो उसको वोट न करुं तो किसको करुं? मतलब मोदी और योगी ने दिन-रात एक कर कोरोना की महामारी में यूपी की जनता का मनोबल बढ़ाया, उनकी सेवा की, हालांकि उनके विरोधी, उनकी सरकार को नाक में दम करने का कोई कसर नहीं उठा रखा था, पर सभी का हंसकर मुकाबला योगी ने किया और वो काम कर दिखाया जो संभव नहीं था।
हर प्रकार के अंधविश्वास पर विराम लगा दिया। लोग कहते थे कि जो सीएम नोएडा चला जाता है, वो दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बनता, लीजिये इस अंधविश्वास पर भी सदा के लिए विराम लगा दिया। अब सवाल उठता है कि झारखण्ड में कितने विधायक है, जो योगी के आस-पास भी दिखाई पड़ते हैं। हां, एक बात मैं ताल ठोककर कहूंगा कि अब तक इस राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री हुए, चाह वे किसी भी दल के क्यों न हो, जो जनता के दिलों में जगह बाबू लाल मरांडी ने बनाई है, वो आज तक कोई नहीं बना सका। ये ध्रुव सत्य हैं।
इसे कोई नकार नहीं सकता और ये भी सच्चाई है कि इस राज्य में कितने भी विधानसभाध्यक्ष क्यों न बन गये हो, जो नाम इस पद पर रहते हुए इंदर सिंह नामधारी ने कमाया, वो किसी ने नहीं कमाया और ये तभी होता हैं जब आप जनता के प्रति संवेदनशील होते हैं। इसलिए अगर आपने एक दिन ही सही गेरुआ धारण किया हैं, तो उसका इज्जत करना सीखिये, संवेदनशील बनिये, याद रखिये गेरुआ के बिना, केसरिया के बिना तो तिरंगा भी अधूरा है, ये साहस व वीरता व स्वाभिमान का प्रतीक हैं और साहस, वीरता व स्वाभिमान चरित्रवानों को शोभा देता हैं, इसलिए खुद को टटोलिए कि क्या आप योगी आदित्यनाथ के आस-पास भी ठहर पाते हैं, नहीं तो ये नौटंकी क्यों?