अब बस करिये, कही ऐसा न हो कि किसी महिला की हाय आपको ले डूबे, अत्याचार उतना ही जितना आदमी सह सके
चाहे कोई सरकार में हो या न हो, चाहे वह बहुत बड़ा प्रशासनिक अधिकारी हो या पुलिस पदाधिकारी, वो जान ले कि अगर उसने किसी के इशारे पर, किसी के भी सम्मान के साथ खेलने की कोशिश की, तो उसका हश्र कैसा होगा? वो यह जान लें कि उसे उसके किये की ऐसी सजा मिलेगी कि उसकी कल्पना उसने नहीं की होगी, क्योंकि श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मफल के सिद्धांत से वो बच ही नहीं सकता, इसे वो गिरह पार लें।
आज वो जिसके कहने पर अत्याचार की सारी सीढ़ी लांघ रहा है, जब उसे उसके किये के कर्मफल मिलने लगेंगे, तो उसे कोई बचा भी नहीं पायेगा, ऐसे कई लोगों को मैंने इसी झारखण्ड में देखा है कि पहले अपने पावर का इस्तेमाल कर खुब कूदा करते थे, पर जब ईश्वर ने उन्हें किये कि सजा देनी शुरु की, तो बिलबिलाने लगे। जिनके लिए वे कूदा करते थे, छल-प्रपंच किया करते थे, वे ही नालायक हो गये।
यह बात मैं आज इसलिए लिख रहा हूं कि रांची की एक अदालत में रांची नगर निगम की वार्ड 19 की पार्षद रोशनी खलखो आत्मसमर्पण की और वहीं से वो जेल भी चली गई। उनके उपर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के काफिले पर हमले का आरोप है, तथा उन पर विभिन्न प्रकार की धाराएं लगा दी गई है। इधर जैसे ही उनके घर पर जब पुलिस ने इश्तेहार चिपकाया, उनके पास आत्मसमर्पण के अलावे कोई विकल्प नहीं था, रोशनी खलखो ने आत्मसमर्पण कर कानून का सम्मान किया।
जिस आरोप में पुलिस ने उन पर विभिन्न प्रकार की धाराएं लगाई है, हमें नहीं लगता कि रोशनी खलखो जैसी भद्र महिला ऐसा की भी होंगी, क्योंकि जो रोशनी खलखो को जानता है, वह यह भी जानता है कि वो हंसमुख, जनता की सेवा के प्रति ईमानदार व संघर्षशील महिला है। उनकी सेवा का ही प्रतिफल है कि वो लगातार दो बार पार्षद रही, और इस बार तो वो निर्विरोध चुनाव जीती। रोशनी खलखो का दुबारा वह भी निर्विरोध जीतना, वो भी सामान्य महिला सीट पर, आदिवासी होते हुए कोई सामान्य बात नहीं।
हो सकता है कि जहां की घटना हो, वो वहां पर मौजूद हो, लेकिन केवल मौजूद होने से ही उन पर विभिन्न प्रकार की धाराएं लगाकर, उनके कैरियर को ही चौपट कर देना, अच्छी बात नहीं। जहां तक राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का सवाल है, मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं कि वो किसी के भी सम्मान से खेलने में रुचि नही रखते, हाल ही में जब पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उनके खिलाफ चुनाव के समय आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, उन्होंने प्राथमिकी दर्ज कराने के बावजूद, उसे वापस लिया।
हाल ही में जब जनसंघर्ष से जुड़ी कई महिलाओं/पुरुषों को रघुवर शासन में विभिन्न मुकदमों में फंसाया गया, तब उन्होंने उन सारे लोगो से मुकदमे वापस लिए। ऐसे में रोशनी खलखो जैसी महिला के खिलाफ केस होना, उन्हें जेल के अंदर भेज दिया जाना, कैसे हो रहा है, समझ से परे हैं।
रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय का इस मामले में कहना है कि एक जनप्रतिनिधि को किसी भी आंदोलन में जाना ही पड़ता है, उसकी मजबूरी होती है, पर केवल आंदोलन में भाग लेने से प्राथमिकी का होना, घर इश्तेहार चिपका दिया जाना ठीक नहीं है, ऐसे में तो कोई आंदोलन में ही नहीं जायेगा, फिर तो कल कोई भी विपक्ष में रहेगा, उसके लिए दिक्कतें आयेंगी, उनका कहना था कि कि राज्य सरकार को खासकर महिलाओं के बारे में उदारता बरतनी चाहिए।
राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के अनुसार, एक महिला के सम्मान के लिए लड़नेवाली आदिवासी महिला पार्षद रोशनी खलखो को मुकदमे में फंसाकर अगर सरकार समझती है कि उसने जंग जीत ली, तो ये हेमन्त सोरेन सरकार की भूल है। अपनी नाकामियां छिपाने के लिए कितने भी षडयंत्र रच लो, जनता सब देख रही है।
विवेक नहीं होगा,तो नाश होना ही है..कोई भी क्यों न हो।