अब RSS के लोग बनायेंगे राज्य के विकास के लिए कार्य योजना, झारखण्डियों पर CM रघुवर को विश्वास नहीं
जिन्होंने 28 दिसम्बर 2014 को सत्ता संभाली, उनको 4 अक्टूबर 2018 को महात्मा बुद्ध की तरह परम ज्ञान की प्राप्ति हुई कि इस राज्य का एडवांस प्लानिंग नहीं होने की वजह से जितना विकास होना था, उतना नहीं हुआ। राज्य में राइट टू सर्विस एक्ट अब तक सही तरीके से लागू नहीं हो पाया, इसलिए राज्य के विकास के लिए तीन वर्ष की कार्य योजना बनाने के लिए RSS से जुड़े पद्मश्री अशोक भगत व RSS की आनुषांगिक संगठन प्रज्ञा प्रवाह से जुड़े सेवानिवृत्त आइएएस टी नंद कुमार को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई।
अब सवाल यह भी उठता है कि अब राज्य का एडवांस प्लानिंग बनानेवाले भी, अन्य योजनाओं की तरह बाहर से, उत्तर प्रदेश और केरल से आयात होंगे, तो क्या झारखण्ड में एक भी ऐसा आदमी नहीं जो अपने राज्य को शिखर पर ले जाने के लिए तीन वर्षों का एडवांस प्लानिंग तैयार कर सकें? अगर ऐसा ही हैं तो इससे बड़ी विडम्बना दूसरा कोई हो ही नहीं सकता, क्योंकि दुनिया का कोई भी व्यक्ति या संस्था या संगठन, दूसरे राज्य या देश का विकास कर ही नहीं सकता, उसके लिए उसे मिट्टी से जुड़ा रहना बहुत ही जरुरी है, क्योंकि उसे ही पता होता है कि उसके यहां किस चीज की कमी है, क्या किया जाये तो उसका राज्य या उसके राज्य के लोग प्रगति करेंगे, कोई भी अन्य राज्यों का व्यक्ति, कभी भी दूसरे राज्यों के लिए बेहतर एडवांस प्लानिंग नहीं बना सकता।
जरा देखिये, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, जिसने सत्ता संभालते ही राज्य विकास परिषद का गठन किया और अब वे अपने शासन के चार साल पूरे करने जा रहे है और इन चार सालों में मात्र दो ही बार राज्य विकास परिषद का बैठक बुलाये हैं, अब जहां हर पांच साल में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है, वहां चार साल ऐसे ही बीता दिये जाते हो तथा एडवांस प्लानिंग पर ध्यान ही नहीं दिया जाता हो, वहां विकास क्या होगा – खाक।
सच्चाई यह है कि झारखण्ड का गठन ही इसलिए हुआ था, ताकि यहां जो असंतुलन है, उस असंतुलन को ठीक किया जा सकें, पर वस्तुस्थिति क्या है? राज्य में जितने भी भाजपाई मुख्यमंत्री बने, चाहे वे आदिवासी मुख्यमंत्री हो या गैर-आदिवासी, सभी ने अपनी असंतुलन की ठीक करने में ज्यादा दिमाग लगाया, अपने बच्चे, परिवार तथा अपने मित्रों व आनेवाले भविष्य को ठीक करने में ही रुचि दिखाई। राज्य के आज भी 24 जिलों में 19 जिलों की स्थिति नारकीय है।
… और इस नारकीय स्थिति के लिए, अगर कोई दोषी है, तो वह है यहां का शासक वर्ग, जिसके पास विकास का विजन ही नहीं है, जिसका लाभ इनके आगे-पीछे रहनेवाले कनफूंकवे उठाते है। ये कनफूंकवें इतने चालाक होते है कि, वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए, अपना काम निकालने के लिए, वो हर काम करते हैं, जिनकी इजाजत जमीर भी नहीं देता, फिर भी इनका काम है, जैसे – सीएम की आरती उतारकर अपना उल्लू सीधा करना, पैसे कमाना, विदेश की टूर करना, अपने परिवार के लोगों को सत्ता सुख दिलवाना, उन्हें अच्छे जगहों पर पोस्टिंग कराना, तथा अपनी पत्नी ही नहीं बल्कि अपने ससुर को भी एक अच्छे जगह प्रतिस्थापित कर देना, जिसमें वे सफल भी हैं।
झारखण्ड के मुख्यमंत्री शायद पहले मुख्यमंत्री है, जिन्हें खुद पता नहीं रहता कि उन्होंने कब और कहां, कौन सी बाते कही थी। 19 सितम्बर 2016 को इन्होंने राज्य के उपायुक्तों और प्रखण्ड विकास पदाधिकारियों के साथ एक बैठक की थी बैठकोपरांत इन्होंने खुद कहा था कि अगले तीन सालों के लिए गांवों के विकास के लिए योजनाएं बनेगी, विकास योजनाओं की क्रियान्वयन में बीडीओ और डीडीसी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे, अब सवाल उठता है कि जब योजनाएं ही नहीं बनी तो दो साल तक सरकार क्या करती रही और उनके अधिकारी क्या करते रहे?
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खुद ही कहा था कि राज्य के समग्र विकास के लिए, राज्य सरकार ने पन्द्रह साल का दीर्घकालिक परिकल्पना, सात साल के लिए स्ट्रेटजी प्लान और तीन साल के लिए एक्शन प्लान बनाने पर कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है, जबकि सच्चाई यह है कि जब तीन साल के लिए सरकार के पास प्लान नहीं है, तो पन्द्रह और सात साल के प्लान को तो भूल ही जाइये, मतलब बिना प्लानिंग के ही सरकार चार साल तक चल दी।