अपनी बात

ए सुप्रिया दा, अपना धर्मज्ञान बढ़ाइये, बाबा वैद्यनाथधाम चारधाम में नहीं, द्वादश ज्योर्तिंलिंगों में आता है, ठीक है

ए सुप्रिया भट्टाचार्य भाई, हर बात में दिमाग लगाना छोड़िये, नहीं तो जो जिस क्षेत्र में मर्मज्ञ व विशेषज्ञ हैं, वो आपको छोड़ेगा नहीं, आपको कटघरे में खड़े कर देगा। जैसे आज ही आपने रांची में आयोजित प्रेस कांफ्रेस में कह दिया कि देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम चार धाम में आता हैं, अरे भाई ये बोलने और कहने के पहले कम से कम मेरे जैसे पंडितों से तो सलाह ले लीजिये, कम से कम इस मुद्दे पर तो आपको सही बात बता देते।

दरअसल बाबा वैद्यनाथ धाम, चार धाम में आते ही नहीं हैं। चार धाम तो निम्नलिखित है – बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम्। बाबा वैद्यनाथ धाम तो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में समाहित है। संताल परगना की यह भूमि जहां देवघर में बाबा वैद्यनाथ विराजमान है, ये योगी के रुप में हैं और चित्ताभूमि में विराजमान हैं। इसलिए जब कभी भाजपा को हिन्दू राजनीति में परास्त करनी हो, तो कम से कम कुछ धार्मिक पुस्तकें जरुर पलट लीजिये।

चलिए, इस बार भाजपाइयों ने एक काम तो आप झामुमो के लोगों से करा लिया, जो काम खुद भाजपा करना चाहती थी कि देवघर स्थित एयरपोर्ट बाबा वैद्यनाथ के नाम से जाना जाये, आपने खुद इसे कहकर भाजपा के मनोबल को बढ़ा दिया, मतलब भाजपा से आपलोग कितने भय खाते हैं, वो आज का प्रेस कांफ्रेस बता दिया, जिसमें आपने कह दिया कि श्रावण के प्रथम सोमवारी को देवघर एयरपोर्ट का उद्घाटन हो।

इसका नाम बाबा वैद्यनाथ एयरपोर्ट हो, ताकि सभी लोगों को इस कोरोना काल में बाबा का आशीर्वाद प्राप्त हो, चलिए भाजपा के लोगों को तो उनकी मुंहमांगी मुराद मिल गई, अब क्या है? ओंकार हर-हर-हर बम बम बोलते रहिये। बोल बम कहते रहिये, लेकिन अब कांग्रेसवाले क्या करेंगे, उनकी धर्मनिरपेक्षता की पोटली का क्या होगा? बेचारे मुसलमान न कही बिदक जाये।

आज सुप्रियो भट्टाचार्य ने एक बात और ईमानदारी से स्वीकारी कि देवघर स्थित एम्स का प्रस्ताव यूपीए 2 ने 2013 में लाया, लेकिन इसका निर्माण भाजपा वालों ने 2016 में शुरु किया, अब ये बनकर तैयार हो गया, तो सुप्रियो भाई प्रस्ताव लानेवाले से बनानेवाला ज्यादा महान हुआ न। यूपीए वाले तो यही करते हैं, घोषणाएं करते हैं, पर करते कुछ नहीं।

अगर ज्यादा दिमाग पर जोर डालियेगा तो पता लग जायेगा कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में पटना में एक रेलपुल बनना था, इसी बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार समाप्त हो गई। दस वर्षों तक मनमोहन बाबा सोनिया गांधी की मुरली पर नृत्य करते रहे, लेकिन रेल पुल तैयार नहीं हुआ।

बाद में जैसे ही फिर 2014 में पीएम मोदी बनें, लीजिये रेल पुल बना ही नहीं, ट्रेनें उस पर दौड़ने लगी, वह भी तब जब बिहार में भाजपा की सरकार नहीं थी। कहने का तात्पर्य है कि बोलना और करना दोनों अलग-अलग बाते हैं। हाल ही में आपको ज्ञात होगा कि केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने झारखण्ड के पथों को लेकर क्या कहा और कितने रुपये निर्गत किये, तो ये दोष लगाना कि भाजपा वाले ऐसा काम कर रहे है, केन्द्र सरकार ऐसा कर रही हैं, जिससे आपात काल का आभास हो रहा हो, ये बातें कुछ जमी नहीं।

आप इस बात को स्वीकार करिये कि डा. निशिकांत दूबे के प्रयासों का प्रतिफल है। देवघर का एयरपोर्ट और एम्स, जिसका फायदा सभी को मिलेगा। आप कितना भी उन्हें कोसेंगे, उन्हें कुछ नहीं होनेवाला, जनता जानती है कि किसके शासनकाल में कहां क्या हो रहा हैं? कहने को तो आपके ही नेता ने कहा था कि एक साल में पांच लाख लोगों को नौकरी दे देंगे, नहीं देंगे तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे, क्या हुआ?

अतः आपसे अनुरोध है कि प्रेस कांफ्रेस जब भी करें तो अपना इतिहास-भूगोल सभी ठीक-ठाक कर बैठे, क्योंकि हर पत्रकार झक-झूमर नहीं गाता और न ही सुनता है, कोई-कोई समय-समय पर कुछ और भी गा बैठता है। फिलहाल स्वीकारिये कि देवघर एम्स को लेकर जो कुछ हुआ, उसमें राज्य सरकार की ही बदनामी हुई है।