RSS से जुड़े आनुषांगिक संगठनों के अधिकारियों ने एक स्वर में कहा, चुपेचाप, चचा (रघुवर) साफ
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से केवल झारखण्ड की जनता ही नहीं नाराज हैं, बल्कि नाराज तो वे भी हैं जो इन्हें पिछले पांच साल से अपने माथे पर ढोए चल रहे हैं, जिसकी जानकारी रांची भाया दिल्ली, नागपुर तक हैं, पर करे क्या? स्थिति भयावह हैं, भाजपा के कार्यकर्ता, संघ के स्वयंसेवक और संघ के आनुषांगिक संगठनों के लोगों ने ताल ठोककर कह दिया कि चुपेचाप, चचा(रघुवर) साफ, मतलब अब कुछ बोलना नहीं हैं, चुपचाप काम करना हैं, रघुवर दास को सत्ता से साफ कर देना हैं।
ज्ञातव्य है कि जैसे ही झारखण्ड विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई, संघ और संघ के सभी आनुषांगिक संगठनों के लोगों की विशेष बैठक गत् पांच नवम्बर को रांची के धुर्वा स्थित मे-फेयर हॉल में आयोजित हुई, इस बैठक में दो सत्र होने थे, पहले सत्र में राम मंदिर पर आनेवाले फैसले पर विचार करना था तथा दूसरे सत्र में राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव पर निर्णय लेना था।
पहले सत्र में सभी ने एक स्वर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट से जो भी फैसले आये, उसे सभी मानेंगे और कोई उन्माद वाली बातें नहीं कहेंगे, पर जैसे ही दूसरे सत्र में विधानसभा चुनाव की बात पर चर्चा होने लगी, सभी ने एक स्वर से कहा, चुपेचाप, चचा साफ यानी चुपेचाप रघुवर साफ। जैसे ही संघ के शीर्षस्थ लोगों के कानों में ये बात सुनाई पड़ी, सभी के होश उड़ गये, क्योंकि उन्होंने कल्पना नहीं की थी, रघुवर दास के खिलाफ संघ के भीतर ही और आनुषांगिक संगठनों में इतनी भारी नाराजगी हैं।
हालांकि सीएम रघुवर दास के प्रति अथाह प्रेम लूटानेवाले, सीएम रघुवर दास का बराबर हृदय से जप करनेवाले, सीएम रघुवर दास के प्रति एक भी अप्रिय शब्द नहीं सुनने के लिए जाने जानेवाले संघ के क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर रघुवर दास के खिलाफ एक भी शब्द सुनने को तैयार नहीं थे। वे पांच नवम्बर को संघ के क्षेत्रीय प्रचारक कम और भाजपा के प्रवक्ता ज्यादा दिख रहे थे। सूत्र बताते हैं कि उस दिन कई स्वयंसेवकों तथा आनुषांगिक संगठन के लोगों ने रामदत्त चक्रधर के इस हरकत पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि रामदत्त चक्रधर को बिना देर किये संघ का परित्याग कर भाजपा का प्रवक्ता बन जाना चाहिए।
सूत्र बताते है कि भाजपा की ओर से इस दिन चतरा के सांसद सुनील कुमार सिंह और उधर भाजपा का एक बार फिर टिकट पाने को लालायित अनन्त ओझा भी शामिल थे, जो आनुषांगिक संगठनों के लोगों का जवाब देने के लिए अधिकृत थे, पर उस दिन सभी आनुषांगिक संगठन राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का एक झलक पाना चाहते थे, ताकि वे पूछ सकें कि वे बताएं कि उनके शासन में झारखण्ड को क्या मिला? आनुषांगिक संगठनों को क्या मिला, क्योंकि सच्चाई यह है कि इनके शासनकाल में सर्वाधिक मार संघ के स्वयंसेवकों और आनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोगों को ही झेलने को मिली। जबकि भाजपा से जुड़े ठेकेदारों, मौकापरस्तों, जमीन कारोबारियों, भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले रही।
सूत्र बताते है कि उस दिन क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर भाजपा प्रवक्ता की तरह बता रहे थे कि रघुवर सरकार ने एक रुपये में महिलाओं की रजिस्ट्री कराने का काम किया, यानी महिलाओं को सशक्त किया, जिसका जबर्दस्त प्रतिवाद स्वयंसेवकों ने किया और कहा कि आपको पता ही नहीं कि एक रुपये में महिलाओं की रजिस्ट्री का फायदा किसने उठाया? सही जानकारी मालूम होगा तो आपकी हालत पस्त हो जायेगी। कई स्वयंसेवकों ने तो यहां तक कह दिया कि बाराती आई हैं और दूल्हा ही गायब है, यानी संघ और संघ के आनुषांगिक संगठनो की बैठक हैं और जिसको लेकर बातचीत चल रही हैं, वो मुख्यमंत्री रघुवर दास यहां से गायब है।
सूत्र बताते है कि सभी ने संघ के क्षेत्रीय प्रचारक को भी नहीं बख्शा और पूछ डाला कि भाजपा में कब से व्यक्तिवाद पनपने लगा, ये घर-घर रघुवर क्या है? क्या अब भाजपा के लोग, संघ के लोग व्यक्तिवाद को बढ़ावा देंगे। सर्वाधिक गुस्से में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, मजदूर संघ और उद्योग भारती के लोग थे, जिनका कहना था कि सर्वाधिक नुकसान अगर राज्य में भाजपा का किसी ने किया तो वह राज्य का मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं, इन्हें माफ नहीं किया जा सकता और इन्हें चुपेचाप साफ करने में ही, हम सब की भलाई है।
सभी ने एक स्वर से कहा कि धर्मान्तरण का बिल लाने का ढोंग करनेवाले मुख्यमंत्री से पूछिये कि उससे लाभ किसको हुआ? सभी ने यह भी रामदत्त चक्रधर से पूछ डाला कि आप जो सीएम रघुवर का मंत्रजाप कर रहे हैं, आप खुद बताइये कि क्या यह सही नहीं एक रुपये की रजिस्ट्री का नाटक करवाकर, मुख्यमंत्री ने बांगलादेशी घुसपैठियों को ही यहां मजबूत कर दिया, नहीं तो यहां के गरीब, आम लोगों के पास पैसा कहां हैं कि वे जमीन खरीदे और रजिस्ट्री कराये, ऐसे मुख्यमंत्री को कभी भी माफ नहीं किया जा सकता।
कई लोगों ने कहा कि जिन-जिन थानेदारों ने अपने लोगों को ही जेल में भेजने का काम किया, जिन लोगों ने अपने ही लोगों को जीना दुश्वार कर दिया, उन कितने थानेदार को निलम्बित किया गया, है इसका जवाब आपके पास, रामदत्त चक्रधर की बोलती बंद हो गई, यानी कुल मिलाकर संघ की इस विशेष बैठक को ले रहे संघ के पदाधिकारी की हालत पस्त हो गई।
संघ की ओर से आयोजित यह बैठक उस दिन तीन बजे अपराह्न तक चलना था, पर संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों से आये लोगों की नाराजगी के कारण यह समय से पूर्व ही यानी एक बजे ही खत्म कर दिया गया, यह पहली बैठक रही, जो समय के पहले ही खत्म कर दी गई, नहीं तो आम तौर पर संघ की बैठक समयानुसार आयोजित और समय पर खत्म होती है। कुल मिलाकर देखा जाये, तो निवारणपुर स्थिति संघ मुख्यालय में बैठे संघ के अधिकारी भी आजकल चुनावी विषयों पर ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं, पूर्व में आम तौर पर संघ इन सभी कार्यक्रमों से स्वयं को दूर रखता था।
पर इन दिनों संघ की राजनीति में ली जा रही दिलचस्पी से लोगों का संघ के पदाधिकारियों से भी नाराजगी हो रही हैं, सभी एक स्वर से बोल रहे हैं, संघ में ये बिमारी कब से हो गई? सूत्र तो ये भी बता रहे है कि खूंटी में संघ का एक विशेष अधिकारी आजकल खूंटी से करिया मुंडा को चुनाव लड़ाने की बात कर रहा हैं, वह भी तब जब करिया मुंडा चुनाव लड़ने की सोचे, अब सवाल उठता है कि करिया मुंडा को क्या जरुरत हैं, विधानसभा चुनाव लड़ने की, जो लोकसभा सीट का त्याग कर सकता हैं, उसे विधानसभा की लालच कब से होने लगी?
इधर पूरे झारखण्ड के आरएसएस के अधिकारियों को अपने पॉकेट में लेकर चलनेवाला एक व्यापारी आजकल अपने बेटे को रांची से चुनाव लड़ाने की ठान ली हैं, हो सकता है उसे टिकट भी मिल जाये, क्योंकि उसका मानना है कि भाजपा में संघ की ही चलती हैं और फिलहाल संघ में रांची से लेकर दिल्ली ही नहीं नागपुर तक उसकी चलती हैं, ऐसे में उसके बेटे को टिकट नहीं मिलेगा तो और किसे मिलेगा?
यानी इस प्रकार की घटना बता रही है कि आजकल संघ में क्या हो रहा हैं? संघ के प्रचारक, कब से भाजपा के प्रचारक होने लगे, अगर ये हाल रहा, तो कांग्रेस तो कम से कम सवा सौ साल स्वयं को देख भी ली, भाजपा तो पचास भी नहीं देख पायेगी, इधर बैठक खत्म हुई और सभी ने चुपेचाप चचा साफ कहकर अपने-अपने गंतव्य की ओर चल दिये। इस बैठक मे संघ के सभी आनुषांगिक संगठनों के वरीय अधिकारी शामिल थे।