हरियाणा विधानसभा चुनाव की तिथि बदले जाने पर बोले सुप्रियो, चुनाव आयोग के नस-नस से वे वाकिफ, भाजपा के इशारों पर काम करनेवाले अपने तर्कों के कारण लाफ्टर चैनल के कैरेक्टर बन गये
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उन्होंने गत 24 अगस्त को ही इस बात की संभावना व्यक्त कर दी थी कि चुनाव आयोग हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनाव की तिथि में बदलाव करेगा और कल इसकी पुष्टि भी हो गई। उन्होंने कहा कि हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पं. मदन लाल बरौली ने 22 अगस्त को चुनाव आयोग से मांग की थी कि जो एक अक्टूबर को हरियाणा में चुनाव होने हैं, उस तिथि में बदलाव किया जाये।
सुप्रियो ने कहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव की तिथि में जो बदलाव के लिए जो तर्क दिये गये थे। वो यह था कि अगर एक अक्टूबर को चुनाव होगा। तो ऐसे में 30 सितम्बर को यहां के सरकारी/निजी संस्थाओं में काम करनेवाले लोग एक दिन की छुट्टी ले लेंगे और इस प्रकार उनका पांच दिन का छुट्टी हो जायेगा और फिर वे सभी लंबी अवकाश पर चले जायेंगे। इससे मतदान प्रभावित हो जायेगा।
भाजपा नेता का तर्क था कि चूंकि 28 शनिवार और 29 रविवार पड़ता हैं और शनिवार तथा रविवार के दिन सभी प्रतिष्ठानें बंद रहती है। बचता है 30 सितम्बर जिसमें वे छुट्टी ले लेंगे। एक को चुनाव ही रहेगा, उसकी अलग से छुट्टी हो जायेगी और फिर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती की ऐसे भी छुट्टी रहती है। सुप्रियो का कहना था कि पं. बरौली की इसमें पांडित्य झलक रहा था और उससे भी बड़ा पांडित्य चुनाव आयोग ने दिखा दिया। भाजपा नेता के पांडित्य से प्रभावित होकर चुनाव आयोग ने चुनाव की तिथि बढ़ाकर एक से पांच अक्टूबर कर दी।
सुप्रियो का कहना कि अब चुनाव आयोग की पांडित्य देखिये। दो अक्टूबर को गांधी जयंती की छुट्टी, 3 अक्टूबर को अग्रसेन जयंती की छुट्टी, चार अक्टूबर एक दिन बचा, 5 अक्टूबर को चुनाव की छुट्टी रहनी ही हैं और 6 अक्टूबर को रविवार की छुट्टी, ऐसे में तो यहां भी एक दिन कोई चार अक्टूबर को छुट्टी ले लेगा तो उसे पांच दिन की छुट्टी मिल जायेगी। तो ऐसे में तो फिर पांच दिन का लंबा अवकाश पर लोग चले जायेंगे।
सुप्रियो ने चुनाव आयोग की इस हरकत पर कड़ी टिप्पणी करते हुए संवाददाताओं से कहा कि क्या आपने स्टैंड अप कमेटी देखी है। ये चुनाव आयोग वाले अपने तर्कों के कारण लाफ्टर चैनल के कैरेक्टर बन गये है। जब हरियाणा विधानसभा चुनाव के तिथि की पहली बार घोषणा हुई थी। उसके पूर्व ये चुनाव आयोग के लोग हरियाणा में दो दिनों का प्रवास किया था। उसके बाद ये जम्मू-कश्मीर गये। फिर वहां से दिल्ली गये। दिल्ली में केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सचिव और फिर वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों से बात की। तब जाकर 16 अगस्त को चुनाव के तिथियों की घोषणा की।
सुप्रियो ने कहा कि चूंकि जैसे ही हरियाणा विधानसभा चुनाव के तिथि की घोषणा हुई। भाजपा असहज थी। स्थिति ऐसी हो गई थी कि भाजपावाले कहेंगे कि पापा-पापा इग्जाम की तैयारी अभी नहीं हुई हैं, इग्जाम की तिथि बढ़ा दो, पापा को बेटा प्यारा हो गया। इस पूरी घटना से चुनाव आयोग की निष्पक्षता व संवैधानिकता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। भाजपा जो डिक्टेशन करायेगी, चुनाव आयोग उसे मानेगा। चाहे लोकसभा का चुनाव हो या राज्यसभा का या विधानसभा का चुनाव हो।
सुप्रियो ने कहा कि हाल ही में भाजपा की ओर से झारखण्ड विधानसभा चुनाव के सह प्रभारी बनाये गये हिमंता बिश्वा सरमा ने कहा था कि 23 सितम्बर को झारखण्ड में आचार संहिता लग जायेगा। जबकि हमारे यहां चुनाव का डेट दिसम्बर का है। ये सारी बातें तय हो जा रही है। इससे क्या फर्क पड़ेगा। 100 घंटे का फर्क। क्या इतनी फर्क से जनमत बदल जायेगा। दरअसल भाजपाइयों को टेम्परिंग करना है। चुनाव को अपने माल प्रैक्टिस से करप्ट करना है। ये गंभीर समस्या है।
उन्होंने कहा कि मैं जानता था कि ऐसा ही होगा, क्योंकि चुनाव आयोग के नस-नस से वे वाकिफ है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के दौरान झारखण्ड का दौरा तक नहीं किया और भीषण गर्मी में यहां चार चरणों में चुनाव करा दिया। उसके बाद माफी मांगते हैं। एडीआर ने कहा कि पोल वोट से ज्यादा काउंट वोट हैं। आप जांच करायें। लेकिन आपने चुप्पी साध ली।
सुप्रियो ने कहा कि ऐसे में तो वे चुनाव आयोग को एक सुझाव देंगे कि भाजपा सरकार बनाने के लिए हरियाणा की सभी 90 सीटों में से 89 सीटें भाजपा को एवार्ड कर दीजिये और एक सीट खाली रख दीजिये, ताकि दिल्ली जब किसी को सीएम बनाने के लिए भेजे तो वो वहां से सीएम बनने के बाद चुनाव लड़ सके। ऐसा ही स्थिति जम्मूकश्मीर, महाराष्ट्र और यहां झारखण्ड में भी कर दीजिये। यहां भी 80 सीट भाजपा को दे दीजिये, एक सीट जो बचेगा, बाद में जो भाजपा में शामिल होगा, वो वहां से चुनाव बाद में लड़ लेगा। चुनाव आयोग का दायित्व अब बस इतना ही रह गया है।
उन्होंने कहा कि यह प्रहसन है। लोग नाम के आगे पंडित लिखते हैं। पंडित का मतलब शास्त्र, वेद, उपनिषदों का ज्ञाता। लेकिन यहां तो विरले पंडित निकल गये, जो एक दिन को पांच दिन गिना दिये और चुनाव आयोग तो उससे भी बड़ा पंडित निकल गया, जो एक दिन को पांच दिन बना दिया, ये पंडितों की लड़ाई लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं हैं।