अपनी बात

10 जून को रांची दंगे में पुलिसिया एक्शन को लेकर रांची की एक बहुत बड़ी आबादी रांची पुलिस के साथ

दस जून को रांची के एकरा मस्जिद से लेकर डेली मार्केट तक की सड़कों पर एक समुदाय के दंगाइयों द्वारा की गई गुंडागर्दी व दंगे पर, दंगाई, दंगाई समर्थक, दंगाई समर्थक पत्रकारों का समूह, वामपंथी संगठन, सत्ता पक्ष व अर्बन नक्सलियों का समूह कितना भी रांची पुलिस को बदनाम करने के लिए भारी से भारी हथकंडे अपना लें, पर वो रांची पुलिस को बदनाम करने में सफल नहीं हो सकती।

क्योंकि सच्चाई यह भी है कि रांची की एक बहुत बड़ी आबादी, उस दिन की घटनाओं पर जो रांची पुलिस ने एक्शन लिया, उस एक्शन के वो साथ है। रांची की एक बहुत बड़ी आबादी इस बात को मानती है कि अगर रांची पुलिस उस दिन इतना बड़ा एक्शन नहीं लेती, तो इससे भी स्थिति और भयावह होती, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, क्योंकि इस बार दंगाइयों ने एक बहुत बड़ी चाल चली थी।

दंगों को मूर्त रुप देने में स्वयं को छुपाने की कोशिश में, छोटे-छोटे बच्चों को आगे कर दिया गया, जिससे स्थानीय पुलिस कोई भी बड़ा कदम उठाने से चूकें, साथ ही इसके पीछे के लोग आराम से बचकर निकल जाये, और अगर फिर भी कुछ घटनाएं घटती हैं तो दंगाई व दंगाई समर्थक रांची पुलिस को यह कहकर बदनाम करना शुरु कर दें, कि रांची पुलिस ने तो बच्चों पर जूल्म ढा दिये।

अब सवाल उठता है कि जो जूल्म करेगा, उस जूल्म का परिणाम भी उसे ही उठाना पड़ेगा, तो ऐसे में जिस वर्ग ने दंगा फैलाने की कोशिश की, उस वर्ग के ही अमन पसन्द लोगों को आगे आना होगा, और रांची पुलिस को बताना होगा कि वो कौन लोग थे? जो नुपूर शर्मा की आड़ में रांची की अति प्रतिष्ठित काली मंदिर ही नहीं, बल्कि हनुमान मंदिर को भी अपना निशाना बनाया, यहीं नही सूर्य मंदिर पर पेट्रोल बम तक चला दिया, मंदिरों के आस-पास नारियल, फूल व प्रसाद बेचनेवालों के ठेले तक उलट दिये गये, क्या ये जायज है?

स्थानीय पुलिस पर पत्थर फेंकना, उन पर गोलियां चलाना, उन्हें सहयोग करने के बजाय, उन्हीं को अपना निशाना बनाना, क्या ये जायज है? ऐसे में तो कोई भी वहां रहेगा, उसकी पहली प्राथमिकता होगी, अपनी जान बचाना, चाहे परिस्थितियां कुछ भी हो, उसके बाद उसकी दूसरी प्राथमिकता होगी कि वो इस अवस्था में उन धर्मस्थलों की पवित्रता बनाये रखें, जिनकी पवित्रता को नष्ट करने में दंगाई लगे हुए थे।

रांची से प्रकाशित एक अखबार दैनिक भास्कर ने तो अपने प्रमुख पृष्ठ पर दंगाइयों के चरित्र का ही बखूबी बखान कर दिया हैं। उस अखबार के प्रथम पृष्ठ को देखकर दंगाइयों, दंगाई समर्थक, दंगाई समर्थक पत्रकारों का समूह, वामपंथी संगठन, सत्ता पक्ष व अर्बन नक्सलियों के समूह को अपना चेहरा स्वयं देख लेना चाहिए। मैं भी उस अखबार के कतरन को फिलहाल आपके समक्ष रख रहा हूं, देख लीजिये, शायद उसमें इन सभी का चेहरा नजर आये।

कमाल तो तब हो गया जब रांची पुलिस हरकत में आई, एक्शन लेना शुरु किया और जैसे ही रांची पुलिस एक्शन में आई दंगाइयों, दंगाई समर्थक, दंगाई समर्थक पत्रकारों का समूह, वामपंथी संगठन, सत्ता पक्ष व अर्बन नक्सलियों के समूह अचानक सक्रिय हो गये, सोशल साइट में तरह-तरह की झूठी अफवाहें फैलानी शुरु कर दी गई, सबूत सभी के सामने हैं, एक ने तो यह अफवाह फैला दी कि मंदिर से गोलियां चलाई गई, जो सफेद झूठ थी, वहां एक ऐसे व्यक्ति को इन लोगों ने प्रवेश करा दिया, जो उस दिन वहां था ही नहीं, जिसकी पुलिस ने जांच रिपोर्ट भी सम्मिट कर दी है। ऐसे-ऐसे लोग भला दंगे पर रोक लगायेंगे या दंगाइयों का मनोबल बढ़ायेंगे, यही समझने की जरुरत है।

कमाल है एक ओर रांची पुलिस रांची में दंगा को प्रायोजित करनेवालों पर अंकुश लगाने में लगी हैं, होना तो ये चाहिए कि लोग ऐसे वक्त में रांची पुलिस का अभिनन्दन करते, उनका मनोबल बढ़ाते, पर हो क्या रहा है? सत्तापक्ष ही रांची पुलिस पर सवाल कर रहा है, पूछ रहा है कि आपने दंगाइयों को फोटो क्यों सार्वजनिक किये? विभागीय अधिकारी दो दिनों के अंदर सवाल का जवाब मांगने के लिये कारण बताओ नोटिस जारी कर रहे है? सत्तापक्ष को सहयोग करनेवाले दल दंगाइयों का मनोबल बढ़ा रहे हैं।

सरकार में शामिल और उसे समर्थन दे रहे लोग रांची पुलिस को कह रहे है कि उनके द्वारा लिया गया एक्शन टारगेट किलिंग था, इस घटना के शिकार लोगों को पचास लाख रुपये का मुआवजा दिया जाये। एक दंगा समर्थक तो अपने सोशल साइट में बड़े गर्व से लिखता है कि रघुवर दास के शासनकाल में भी ऐसी घटनाएं घटी, पर लोग नहीं मरे, पर उसने यह लिखने की कोशिश नहीं की, उसी रघुवर शासनकाल में भी पुलिस को दंगाइयों ने जूते से पीटा और वो घटनास्थल भी डेली मार्केट ही था, प्राथमिकी भी हुए, पर उस केस का क्या हुआ, भगवान मालिक है।

कमाल की जगह है, ये रांची, आप किसी दल पर विश्वास नहीं कर सकते कि ये संविधान का सम्मान करेंगे, सभी अपने-अपने ढंग से संविधान की व्याख्या कर, स्वयं को सिद्धपुरुष और दूसरे को संविधान विरोधी मानकर जो चाहे, वो बक देते हैं, जरा पूछिये इन दंगाइयों और दंगा समर्थकों से अगर मान भी लिया जाये कि नुपूर शर्मा ने गलतियां कर दी तो नुपूर शर्मा को सजा कौन देगा, भारतीय कानून या दंगाई?

क्या नुपूर शर्मा को आपके समक्ष, सजा देने के लिए पेश कर दिया जाय और आप इस्लामी कानून के तहत सजा देंगे, तो लगे हाथों ये भी बता दीजिये कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है या इस्लामी राष्ट्र? साथ ही ये भी बता दीजिये कि नुपूर शर्मा के बयान के आधार पर आपको लाइसेंस मिल गया कि आप किसी भी हिन्दू मंदिर या वहां रह रहे लोगों या आजीविका चलानेवालों पर पत्थरबाजी करेंगे और कहेंगे कि आपका आंदोलन शांतिपूर्ण था, पुलिस ने नाहक ही गोलियां चला दी।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो दरअसल राज्य सरकार में शामिल नेताओं और रांची पुलिस को भी पता था, कि दस जून को रांची में क्या होनेवाला है? क्योंकि दंगा करनेवालों ने तो इन दोनों को विश्वास में लेकर अपना काम करने की योजना बना ली थी, पर सत्ता में शामिल नेताओं व रांची पुलिस को दंगाइयों के मन में चल रही बातों का अंदाजा ही नहीं था, जो उन्होंने करके दिखा दिया था, ऐसे में रांची पुलिस ने भी अपनी प्राथमिकता दिखा दी, दो लोगों की जान चली गई। फिर शुरु हुई राजनीति, जैसा कि होता है।

जैसे ही इतनी बड़ी घटना घटी। मंदिरों पर हमले होने शुरु हुए, हिन्दू संगठनों ने दूसरे दिन बंद बुलाया। हिन्दू संगठनों के बंद बुलाने से सत्ता पक्ष के लोग और दंगाई समर्थकों के कान खड़े हुए। उधर राजभवन ने रांची के वरीय पुलिस अधिकारियों को बुलाया और सवाल खड़े कर दिये, उधर राजभवन के इशारों पर जब रांची पुलिस ने काम करना शुरु किया तो इधर सत्तापक्ष को लगा कि कही उनकी जमीन न खिसक जाये।

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ऐसे-ऐसे बयान अपने तरकस से निकालें, जिससे लगे कि हिन्दू और मुसलमान दोनों खुश हो जाये, पर जैसे-जैसे समय निकलता गया, सत्ता पक्ष का इरादा लोगों को समझ में आने लगा। हेमन्त के बयान से शांतिप्रिय लोगों को लग गया कि हेमन्त के मन में तुष्टिकरण की नीति जगी है, उन्हें समझ आ गया कि शायद हेमन्त सोरेन को लगता है कि हिन्दू का वोट तो जाति में बंटता है, पर मुस्लिमों का वोट तो थोक में मिलता है, इसलिए रांची पुलिस का कान ऐंठो, जिससे दंगाई भी खुश और दंगाई समर्थक भी खुश, पर नुकसान किसका हो गया।

जाहिर है कि देश, देश के संविधान और कानून का, जिसकी कद्र न तो कल किसी राजनीतिज्ञ ने की थी, और न आज के राजनीतिज्ञ करते हैं, पर जनता तो जनता है, वो तो आज भी गर्व से कह रही है कि हेमन्त सोरेन और दंगाई समर्थकों का झूंड जो भी कुछ कर लें, पर रांची की जनता, दस जून के मुद्दे पर रांची पुलिस के साथ ही रहेगी, दस जून को रांची पुलिस ने जो भी एक्शन लिया वो समय की मांग थी।