अपनी बात

इधर कृष्णा अग्रवाल ने धनबाद में गिरती विधि-व्यवस्था को लेकर सत्याग्रह का बिगुल क्या फूंका, उधर भाजपा की नींद उड़ गई, जनाक्रोश रैली निकाल कर जनता की सहानुभूति लेने की कोशिश में लगी भाजपा

इधर धनबाद में एक सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा अग्रवाल ने कोयलांचल में बढ़ते अपराध के खिलाफ बिगुल क्या फूंक दिया। वह धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर स्थित गांधी सेवा सदन में गांधी प्रतिमा के समक्ष 30 नवम्बर से सत्याग्रह क्या शुरु कर दिया (हालांकि कृष्णा अग्रवाल ने कल यानी एक दिसम्बर को राज्य के पूर्व मंत्री व वर्तमान में जमशेदपुर पूर्व के निर्दलीय विधायक सरयू राय व राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह, कारा अविनाश कुमार के बीच मोबाइल पर हुई बातचीत तथा दस दिनों के अंदर ठोस कार्रवाई का आश्वासन मिलने के बाद अपने सत्याग्रह पर कल विराम लगा दिया) उसके बाद आज धनबाद के कुछ भाजपाइयों की नींद खुली। आज धनबाद के भाजपा विधायक राज सिन्हा ने धनबाद में बढ़ते अपराध के खिलाफ जनाक्रोश रैली निकाली। जिसमें धनबाद के भाजपा सांसद पशुपति नाथ सिंह व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने भी भाग लिया।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस जनाक्रोश रैली के माध्यम से राज्य सरकार को ही निशाने पर लिया और इसके मूल में हेमन्त सरकार को ही दोषी ठहराया तथा कहा कि जब तक राज्य से हेमन्त सरकार का विदाई नहीं हो जाता, धनबाद ही क्या, पूरे प्रदेश में विधि-व्यवस्था ठीक नहीं हो सकती। आश्चर्य इस बात की है कि धनबाद में खराब होती विधि-व्यवस्था को लेकर जो भाजपा आज जनाक्रोश रैली निकाली। जिसमें बाबूलाल मरांडी ने भाग लिया।

एक महीने पहले इसी धनबाद में बाबूलाल मरांडी ने संकल्प यात्रा के दौरान सभा की थी। जिस संकल्प यात्रा के दौरान सत्याग्रही कृष्णा अग्रवाल ने व्यापारियों के प्रति हो रही हिंसा, मांगी जा रही रंगदारी तथा गिरती कानून व्यवस्था को लेकर एक ज्ञापन भी उन्हें सौंपा था, तथा उनसे इस संबंध में कुछ करने को कहा था, पर हुआ क्या? बात आई और चली गई। किसी भाजपा नेता ने उस वक्त कृष्णा अग्रवाल की बात नहीं सुनी। अंत में कृष्णा अग्रवाल जो कभी भाजपा से ही जुड़े थे, उन्होंने खुद भाजपा से अपने आप को अलग कर लिया और वे आज स्वतंत्र रुप से धनबाद में गिरती कानून-व्यवस्था को ठीक करने के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। जिसे समाज के हर तबके का सहयोग मिल रहा है।

दो दिन चले सत्याग्रह में भाजपा को छोड़कर कई राजनीतिक दलों ने जिसमें कांग्रेस जो खुद ही राज्य की सत्ता में भागीदार है, कृष्णा अग्रवाल के सत्याग्रह को समर्थन दिया। लेकिन भाजपा को समर्थन देने में दिक्कतें आ रही थी। शायद उसने सोचा होगा कि उसका तो सिक्का धनबाद में चलता है, ऐसे में वो सामान्य सत्याग्रही के पीछे-पीछे क्यों चलें। लेकिन भाजपा को शायद पता नहीं कि समय कब पलटी मार दें और कौन कब कहां गुल खिला दें।

इधर अब भाजपा कुछ भी कर लें, लेकिन कृष्णा अग्रवाल के सत्याग्रह ने जो कानून-व्यवस्था को ठीक करने के लिये रास्ता चुना है। उसे अब हर तबका का नैतिक समर्थन मिल चुका है। जो अब भाजपा को मिलने से रहा। अब देखना यह है कि राज्य के गृह सचिव ने जो कृष्णा अग्रवाल को भरोसा दिलाया है, उसमें वे कहां तक सफल होते हैं। अगर सफलता नहीं मिली तो हमें लगता है कि कृष्णा अग्रवाल फिर से कही सत्याग्रह पर न बैठ जाये। अब तो गेंद सीधे प्रशासनिक अधिकारियों के पाले में हैं कि वे अब चाहते क्या है? – सत्याग्रह आंदोलन या कोयलांचल में कानून के राज की स्थापना।