अपनी बात

इधर मुख्य सचिव पद से सुखदेव सिंह को हटाने की अधिसूचना जारी हुई और उधर पूरे राज्य में ईमानदार अधिकारियों व नागरिकों के चेहरे पर उदासी छाई

राज्य सरकार के एक फैसले ने झारखण्ड में गिने-चुने ईमानदार अधिकारियों और संभ्रांत नागरिकों को हैरान करके रख दिया है। वो फैसला है, राज्य सरकार द्वारा जारी की गई वो अधिसूचना, जिसमें यह बताया गया है कि राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को हटाकर उनकी जगह एल खियांग्ते को बैठा दिया गया है, सुखदेव सिंह को श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान में महानिदेशक के पद पर स्थानान्तरित कर दिया गया है।

सुखदेव सिंह अगले साल मार्च में अवकाश प्राप्त करनेवाले थे, पर उन्हें अचानक एकाएक हटा दिया जाना, किसी भी ईमानदारी व संभ्रांत नागरिकों के गले नहीं उतर रही। हालांकि जिस दिन से वे मुख्य सचिव पद पर आये थे, कई लोगों के मन में वे खटक रहे थे, पर सच्चाई यह भी है कि वे जितने दिन इस पद पर रहे, उन्होंने इस पद की गरिमा रखी, जो विरले ही देखने को मिलते हैं।

याद करिये कोरोना का काल,  उस वक्त के झारखण्ड, झारखण्ड के बाहर रहनेवाले झारखण्डियों की स्थिति, उस दरम्यान इन्होंने सरकार के निर्णयों को इस प्रकार से जामा पहनवाया कि देखते ही देखते झारखण्ड और झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की ख्याति पूरे देश में फैल गई थी। उनका कार्यकाल अद्वितीय व शानदार रहा, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं।

ऐसे तो उन्हें जो भी पद मिला, उसके साथ उन्होंने न्याय किया। ईमानदारी और कार्यकुशलता में तो अगर विद्रोही24 से कोई पूछे तो आज भी मैं डंके की चोट पर बोलूंगा कि होंगे झारखण्ड में कई आईएएस पर मैं तो सिर्फ दो ही को जानता हूं। एक सुखदेव सिंह और दूसरे नितिन मदन कुलकर्णी। मेरे 40 साल की पत्रकारिता में तो कई आईएएस मेरे सामने से गुजरे, लेकिन जो सुखदेव सिंह में हमने देखा, वो बहुत कम देखने को मिलता है। इसलिए आज भी कोई प्रशासनिक अधिकारी मुझे मिलता है तो मैं उसे यही कहता हूं कि बनना है तो सुखदेव सिंह बनो।

समय पर कार्यालय पहुंचना। कार्यालय पहुंचकर अपने कार्यों को निबटाना। किसी भी कार्य को कल पर नहीं टालना। छपास की बीमारी से दूर रहना। जब भी कोई मीडिया में उनकी बात करनी चाही और उन्हें पता लगा कि कोई उनके पक्ष या गुणगान में लिखने जा रहा हैं तो तुरन्त उसे हटाने को कहना, ये गुण सिर्फ सुखदेव सिंह में मैंने देखें ( पर, माफ करें सुखदेव सिंह जी, आज तो आप हमें ये सब लिखने से नहीं रोक सकतें, आज मैं लिखूंगा, ताकि भविष्य में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी बनें, तो वो आप जैसा हो।)।

हमसे जब भी इनकी मुलाकात हुई, वो यही कहते कि अखबार में मेरी बातें नहीं छपनी चाहिए, मेरा काम सरकार की बातों व उनके द्वारा लिये गये फैसलों को जमीन पर उतरवाना है, इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं, इसलिए उसका श्रेय हम क्यों लें, जिसे लेना चाहिए वो ले, मुझे श्रेय कोई दें, यह मुझे पसन्द नहीं।

लेकिन पूर्व में यही क्या होता था। मुझे याद है कि राजीव गौबा जब मुख्य सचिव बने तो वहां प्रोजेक्ट बिल्डिंग में एक पीआरओ रखने की व्यवस्था हुई। उस पीआरओ का काम सिर्फ यह था कि वो मुख्य सचिव की आरती उतारनेवाली खबरों को मीडिया तक पहुंचवाने का काम करता। मीडिया के लोग भी खुब जी भरकर उनकी आरती उतारनेवाली खबरों को प्राथमिकता देते और उसके बदले मीडिया हाउसों की गोद भराई हो जाती, जिसका फायदा बाद में कई मुख्य सचिवों ने जमकर उठाया, उठा भी रहे हैं, केन्द्र में जाकर मजे भी ले रहे हैं।

इसी परम्परा को उनके बाद जो भी मुख्य सचिव बने, ये परम्परा चलती रही। इसका सर्वाधिक रिकार्डतोड़ फायदा राजबाला वर्मा ने उठाया जब वो मुख्य सचिव बनी। इस समय तो राज्य के मुख्यमंत्री भी अखबारों में कम दिखते, लेकिन राजबाला वर्मा खुब दिखती। लेकिन जैसे ही सुखदेव सिंह मुख्य सचिव बने। ये पीआरओ पद ही मुख्य सचिव के कार्यालय से हटा दिया गया, क्योंकि मैंने पहले ही कहा कि सुखदेव सिंह को कभी भी छपास की बीमारी नहीं लगी। वे हमेशा छपास, पद-प्रतिष्ठा के अहं की बीमारी से दूर रहे। आज भी जैसे ही उन्हें सूचना मिली कि उन्हें मुख्य सचिव पद से हटा दिया गया। उन्होंने तनिक देर नहीं की। कुर्सी से उठे और चलते बने। भला सुखदेव सिंह को पद से क्या मतलब?

एक और घटना, जो हमारे सामने घटित हुई। यहां जिक्र करना चाहता हूं। संयोग से कुछ समय के लिए मैं आईपीआरडी में सेवा दे रहा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास उस वक्त जनसंवाद कार्यक्रम चलवाया करते थे। जिसमें सारे के सारे प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहा करते थे। सुखदेव सिंह उस कार्यक्रम में पहुंचे। जनसंवाद से जुड़े एक युवा ने सुखदेव सिंह को नहीं पहंचाना और कहा कि आप यहां न बैठे, यह सीट अधिकारियों के लिए हैं।

सुखदेव सिंह आराम से दूसरी पंक्ति में बैठ गये। जब उनके संग कार्य करनेवाले कई आईएएस अधिकारियों ने जब सुखदेव सिंह को दूसरी पंक्ति में बैठे देखा तो वे भड़क गये और उन्हें पहली पंक्ति में बैठाने की कोशिश की, साथ ही जिसने ऐसा किया उस युवा को कड़ी डांट पिलानी शुरु कर दी।

लेकिन सुखदेव सिंह ने वहीं पर उन भड़के अधिकारियों से कहा कि भाई इतना गुस्सा क्यों, भला उसे क्या पता कि मैं क्या हूं? हमेशा सरल, सहज व सहृदय रहनेवाले सुखदेव सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और न ही किसी की कृपा की उन्हें चाहत रही है। आज जो उनका इतना सम्मान है, वो उनके कार्यों व व्यवहारों की ही देन है। बातें तो बहुत कुछ लिखनी है। लिख भी सकता हूं। सुखदेव सिंह पर किताब भी लिखी जा सकती है।

आज की घटना ने एक बात तो सिद्ध कर दिया कि ईश्वर अच्छे लोगों को ही सर्वाधिक कष्ट व अपमान देता है। आज बहुत सारे लोगों ने हमारे व्हाट्सएप्प पर यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या ये समाचार सही है? उनको हमसे ये आशा थी कि मैं कह दूं कि ये समाचार झूठ है, पर समाचार तो सही थे। मैंने सही में प्रत्युत्तर दिया और जब उसके बाद उधर से जो जवाब आया, वो जवाब देखकर मैं हैरान रह गया।

लोग दुखी थे। हैरान थे। परेशान थे। आम लोगों की हैरानी व परेशानी के कारण को मैं समझ सकता हूं। कई लोग, कई तरह की बातें, पर सबके दिलों से निकलनेवाली आवाजों का सार एक – यह सरकार ने ठीक नहीं किया। लेकिन, मनस्वी पुरुषों को इससे क्या फर्क पड़ता है? वे तो कही भी रहेंगे, प्रकाश फैलायेंगे, उन्हें स्वार्थ या लालच भला कभी छू पाया हैं क्या?