अपनी बात

स्वामी दयानन्द सरस्वती के जन्मदिन पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करने या पुष्प अर्पित करने या कोई कार्यक्रम आयोजित करने से उनके नाम पर वोट थोड़े न मिलता है कि उन्हें उनकी जयंती पर याद किया जाये?

आज प्रदेश भाजपा कार्यालय में संत शिरोमणि रविदासजी की जयंती मनाई गई। इस दौरान प्रदेश के संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह ने रविदास जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किये। उसके बाद कई भाजपा कार्यकर्ता भी संत शिरोमणि रविदास जी के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित करते नजर आये। अब सवाल उठता है कि जब संत शिरोमणि रविदास जी के जयंती के अवसर पर उनके चित्र पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने पुष्प अर्पित किये, प्रदेश कार्यालय में उन्हें याद किया।

तो आज तो गुजरात के टंकारा में जन्मे, महान समाज सुधारक, ओजस्वी संत व आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती की भी जयंती थी। भाजपाइयों ने उन्हें अपने प्रदेश कार्यालय में क्यों नहीं याद किया? उनके चित्र पर माल्यार्पण क्यों नहीं किया? क्या स्वामी दयानन्द सरस्वती की बाजार में चित्र नहीं मिली या बात कुछ और हैं?

कल ही अंत्योदय व एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीन दयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि थी, इस अवसर पर प्रदेश कार्यालय में कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रवीन्द्र कुमार राय, विधायक सीपी सिंह व एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष किशुन कुमार दास ने पं. दीन दयाल उपाध्याय के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। यही नहीं ये लोग रांची के दीन दयाल नगर में भी दिखे, जहां ये सभी पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के साथ दीन दयाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते भी दिखे, क्योंकि पं. दीन दयाल उपाध्याय का मामला पार्टी से जुड़ा था।

विद्रोही24 इन्हीं सभी से यह सवाल पूछता है कि जिन्होंने कल इतने सुंदर ढंग से पं. दीन दयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि मनाई और आज संत रविदास जी की जयंती मनाई। उनके चित्रों व प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित किये। वे स्वामी दयानन्द सरस्वती को उनकी जयंती पर उन्हें भूल कैसे गये? दरअसल ये चालाक लोग हैं। ये संत रविदास जी की आज की राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनकी राजनीतिक वैल्यू को खूब समझते हैं और स्वामी दयानन्द सरस्वती के राजनीतिक वैल्यू को भी खूब समझते हैं।

वे जानते है कि अगर संत रविदास को आज के दिन में याद नहीं करेंगे तो उनका दलित वोट उनके हाथों से खिसक सकता है, जो संत रविदास को अपना सर्वस्व मानता है। जबकि स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ ऐसा नहीं हैं। ये भाजपा के लोग यह भी जानते है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्राह्मण कुल में जन्म लिये थे और ब्राह्मण वर्ग चाहे हंस के उन्हें वोट दें या रो के दें। वोट उन्हें भाजपा को ही देना हैं। इसलिए स्वामी दयानन्द सरस्वती को उनके जन्मदिन पर याद करो या न करो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

ऐसे भी स्वामी दयानन्द सरस्वती को कभी भाजपावालों ने याद नहीं किया। ऐसे तो याद भाजपावालों ने बहुत सारे नेताओं को भी याद नहीं किया, लेकिन अब उन्हें वे सारे नेता याद आ रहे हैं, जो किसी खास वर्ग में ज्यादा लोकप्रिय हैं, जिनके याद करने से वो वर्ग उनकी ओर आ सकता है। इसलिए ये मजबूरी में उन्हें याद कर, उन्हें भरमाने की कोशिश करते हैं तथा ऐसा करने से कभी-कभी कामयाब हो जाते हैं।

ये हालात केवल भाजपा की ही नहीं, बल्कि उन सारे राजनीतिक दलों की हैं, जो जातिवाद की खेती पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते हैं या राजनीति का बीज बोकर अपनी राजनीतिक फसल तैयार करते हैं। ऐसे में स्वामी दयानन्द सरस्वती को जब भाजपावालों ने आज के दिन याद नहीं किया तो इसमें हाय तौबा कैसा? स्वामी दयानन्द सरस्वती के जन्मदिन पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करने या पुष्प अर्पित करने या कोई कार्यक्रम आयोजित करने से वोट थोड़े न मिलता है कि उन्हें उनकी जयंती पर याद किया जाये?

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