रांची स्थित योगदा सत्संग मठ से गुरु पूर्णिमा के सुअवसर पर पूरे वायुमंडल में गूंजा “गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम् … … …”
आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा के सुअवसर पर हम सपरिवार रांची स्थित योगदा सत्संग मठ पहुंचे। ऐसे भी गुरु पूर्णिमा का अवसर हो और हम रांची में होकर, योगदा सत्संग मठ नहीं पहुंचे, ये कदापि नहीं हो सकता। गुरुदेव परमहंस योगानन्द ऐसा दिन हमारे सामने कभी नहीं लाये कि हम रांची में हो और उनके आश्रम/स्थल जहां उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य पल बिताएं हो, वो आश्रम/स्थल हमसे और हमारे परिवार से दूर रहे।
मैं तो स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं कि मैं और मेरा पूरा परिवार रांची से जुड़ा हैं और इस रांची से जुड़ने के कारण मेरा आवागमन योगदा सत्संग मठ से होता रहा है, नहीं तो निश्चय ही अपना जीवन ऐसे ही बेकार में बीत जाता, जीवन का कोई अर्थ नहीं होता, पर आज जीवन का अर्थ है, मैं इसे समझता हूं और हर पल महसूस करता हूं।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर योगदा सत्संग मठ देखनेलायक होता है। इस दिन इस मठ का प्रत्येक स्थल व पेड़-पौधे आपसे कुछ कहने को होते हैं, अगर आप उनकी भाषा को समझ सकते हैं तो समझिये, अगर आप इनकी भाषा को समझने की कोशिश करेंगे तो आपको लगेगा कि वे भी स्वयं में ये भजन गाते रहते हैं और अपने जीवन को धन्य करते हैं। “गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम् … …”
यहां होनेवाली आरती “ओम् जय जगदीश हरे” तो मैंने कई जगह सुना है, सुनता रहा हूं पर जो आनन्द की अनुभूति मठ स्थित शिव मंदिर में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सुनने को मिलती हैं, वैसी अनुभूति मुझे कभी और अन्य स्थानों पर नहीं मिली। सारा वातावरण के साथ-साथ मेरा मन भी आह्लादित हो उठता है, जैसा कि आज भी हुआ। ब्रह्मचारियों-संन्यासियों के मुख से निकलता “ओम् जय जगदीश हरे” हमारे कानों में इस प्रकार अमृत घोलता है कि ये आरती के शब्द हमारे कानों से होते हुए सम्पूर्ण मन-मस्तिष्क और अपने हृदय को झंकृत कर देता है।
मेरी तो स्थिति ऐसी हो गई है कि मैं जब कभी योगदा सत्संग मठ के पास से गुजरता हूं, मुझे एक विशेष प्रकार के आनन्द का बोध हो जाता है और मन में कुछ और बाते चल भी रही होती है, तो वो मन भी परमहंस योगानन्द की ओर चला जाता है। यह कृपा मेरे उपर बनी रहे। इससे ज्यादा हमें कुछ भी नहीं चाहिए। आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जब मैं योगदा सत्संग मठ पहुंचा, तो हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि स्वयं स्वर्ग से इन्द्र भी इस सुंदर पल को देखने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हो।
सारा वातावरण मनोहारि था। मैंने सोचा कि अपने पाठकों के लिए इन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लूं, पर जैसे ही कैमरे निकाला, वहां ड्यूटी पर तैनात लोगों ने ऐसा करने से मना कर दिया। अफसोस कि मैं उन दृश्यों को जिस प्रकार महसूस किया, आपको नहीं करा पा रहा हूं, नहीं तो आप उन दृश्यों को मेरी आंखों से देखते, तो निश्चय ही आपको पता लगता कि यह स्थल रांची ही नहीं, बल्कि इस पूरे ब्रह्मांड के लिए कितना विशेष है।
गुरु पूजा के उपरांत मैं फिर उसी जगह पहुंचा। जहां भंडारा था। ये वहीं जगह है। जहां से मेरा हृदय परिवर्तन हुआ था। परमहंस योगानन्द जी की वहीं फोटो सामने लगी थी, जिस फोटो को 2016 में मैं एकटक निहार रहा था, और प्रसाद ग्रहण कर रहा था। मैं उस वक्त ऐसी बीमारी से पीड़ित था, जिसका कोई ईलाज ही नहीं था। यहां के डाक्टर भी समझ नहीं पा रहे थे। कोई वेल्लोर तो कोई एम्स दिल्ली जाने की सलाह दे रहा था। यह बीमारी मुझे जयपुर में 2014 में लगी थी, जिससे मैं करीब तीन साल परेशान रहा।
पर जब 2016 की गुरु पूर्णिमा के दिन मैं रांची के योगदा सत्संग मठ पहुंचा। प्रसाद ग्रहण किया और परमहंस योगानन्द जी के फोटो को निहार रहा था, मुझे ऐहसास हो गया कि मुझे इस बीमारी से मुक्ति अवश्य मिलेगी और ये क्या मैं जैसे ही प्रसाद ग्रहण कर, योगदा सत्संग मठ से बाहर आया। उस बीमारी से आज तक मुक्त हूं, वह भी बिना वेल्लोर और दिल्ली गये। बिना कोई दवा खाये। आप कहेंगे कि ऐसा हो ही नहीं सकता, पर आपके मानने या न मानने से क्या होता हैं, मैं तो मानता हूं।
आज भी जब भंडारा स्थल पर प्रसाद ग्रहण कर रहा था तो मैं भंडारा के पास लगे परमहंस योगानन्द जी के फोटो को देख, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था, मेरी छोटी पोती जय गुरु-जय गुरु कहकर चहक रही थी, वो भी बड़े प्रेम से परमहंस योगानन्द जी के चित्र के समक्ष अपनी श्रद्धा निवेदित कर रही थी, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि परमहंस योगानन्द जी की उस पर भी विशेष कृपा बन रही है।
कोरोना प्रभाव के दो साल बाद फिर से योगदा सत्संग मठ में गुरु पूर्णिमा का मनना और परमहंस योगानन्द जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने से आज मैं और मेरा परिवार बहुत प्रसन्न हैं, क्योंकि इन दो वर्षों में गुरु पूर्णिमा समारोह का आयोजन नहीं होने से हमने बहुत कुछ खोया भी, पर हमें लगता है कि अब वैसी स्थिति नहीं होगी। हमारी आंखे हमेशा इस प्रकार के आयोजन को देख पुलकित होती रहेंगी। परमहंस योगानन्द जी की कृपा सभी पर बनी रहेगी।