अपनी बात

गणतंत्र दिवस के अवसर पर विभिन्न अखबारों/चैनलों में विज्ञापनोत्सव की धूम, भारी भरकम मिले विज्ञापनों से बौराए कई अखबारों के संवाददाता, ली मौज, कहा काश हर दिन गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस होता …

भारतीय गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे देश में विज्ञापनोत्सव की धूम रही। यह धूम ऐसी रही कि उसका प्रभाव केवल 26 जनवरी को ही नहीं दिखा, बल्कि इसका प्रभाव 28 जनवरी तक दिखा। देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे राज्यों से निकलनेवाले अखबारों में भी इसकी धूम दिखी। गणतंत्र दिवस के अवसर पर सारे अखबार/चैनल विज्ञापनों से रंगे रहे, क्योंकि प्रमुख समाचारों का स्थान विज्ञापनों ने ले लिया था।

ये सारे विज्ञापन गणतंत्र दिवस की बधाई व शुभकामनाओं से संबंधित थे। जिसका आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं होता हैं और न ही कोई आम आदमी उन विज्ञापनों को देखने या पढ़ने में रुचि लेता है। विज्ञापनोत्सव महापर्व को देखते हुए कई अखबारों ने परिशिष्टांक व विशेष पृष्ठ भी निकाले थे, क्योंकि यह दिन ही होता हैं, जिसमें अखबारों/चैनलों की अच्छी ढंग से गोद भराई हो जाती है।

ज्ञातव्य है कि इस विज्ञापनोत्सव पर विज्ञापन देनेवाले लोग दिल खोलकर अखबारों की गोद भराई, उनके संवाददाताओं के माध्यम से करते हैं, ताकि वर्ष भर उनके चेहरे उन अखबारों में चमकते रहे, जिन्हें उन्होंने विज्ञापन देकर मुंह बंद किये हैं। इनके मुंह बंद करनेवालों में केवल एक वर्ग ही नहीं होता, बल्कि समाज के सारे वर्ग शामिल होते हैं, क्योंकि अखबारों पर शिकंजा डालने का यहीं अच्छा मौका होता हैं तथा इनके संवाददाताओं से बेहतर संबंध बनाने का यही मौका होता है। इसलिए ये लोग सभी जानते है कि गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस इन अखबारों/चैनलों में काम करनेवाला बंदा उनके पास जरुर आयेगा और एक विज्ञापन का भीख जरुर मांगेगा। इसलिए वे भी दिल से तैयार रहते हैं ताकि वे विज्ञापन की भीख देकर उनका मुंह बंद कर सकें।

आपकी जानकारी के लिए हम आपको यह भी बता दें कि स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस आने के पहले कई अखबारों के संपादक/प्रबंधक/उसके मालिक अपने संवाददाताओं पर दबाव भी डालते हैं। उनके हाथों में सर्कुलर भी थमाते हैं ताकि विज्ञापनों की वसूली में उनके संवाददाताओं को ज्यादा दिमाग लगाना नहीं पड़े और सर्कुलर थमाकर अपने मनपसंद छपास की बीमारी से ग्रसित लोगों के जेबों से वे मुंहमांगा रकम निकाल लें।

जिसका बतौर पन्द्रह से पच्चीस प्रतिशत तक कमीशन भी ये अपने संवाददाताओं को देते हैं। अगर कोई संवाददाता किसी छपास की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का फूल पेज विज्ञापन ले आया तो उसे अखबार के मालिक से विशेष उपहार अलग से दिया जाता है। उसका अभिनन्दन भी किया जाता है। उसे प्रमोशन भी दिया जाता है यानी समझ लीजिये वो अपने अखबार के मालिक का गलेहार/कंठहार भी हो जाता है।

आप हमेशा याद रखिये कि विज्ञापन देनेवाले में भारी भरकम राजनीतिज्ञ से लेकर गली मुहल्ले की राजनीति करनेवाला चुरकुट टाइप्ड का नेता, व्यापारियों का समूह, थाना प्रभारियों का समूह, शिक्षा माफिया, स्वास्थ्य माफिया, केन्द्र व राज्य सरकार के विभिन्न विभागों मे काम करनेवाले विभागीय ऐसे भ्रष्ट अधिकारी जो जनता की गाढ़ी कमाई को इन बेकार की विज्ञापनों पर खर्च कर अपना अखबारों से बेहतर पी-आर बनाने का काम करते हैं, येन-केन प्रकारेन चमकने को बेताब रहनेवाले जैसे-तैसे धन कमानेवाले लंगा-लूच्चा, लोफर, समाज को लूटनेवाले सफेदपोश लोग भी  होते हैं। जो इस दिन अखबारों को विज्ञापन देकर स्वयं को महिमामंडित कराने में लगे होते हैं।

मूल रुप से राष्ट्रीय पर्वों पर ही विज्ञापनोत्सव की धूम दिखाई पड़ता हैं। हालांकि अब विज्ञापनोत्सव का रुप बदलता जा रहा हैं। अखबार के संपादक व मालिक अब अपनी ओर से विज्ञापनोत्सव का दिन अख्तियार कर रहे हैं। लेकिन असली विज्ञापनोत्सव स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के ही दिन दिखाई पड़ता हैं, जब अखबारों में काम करनेवालों को ज्यादा मगजमारी करनी नहीं पड़ती और लोग आराम से पांच हजार से लेकर पांच लाख तक का विज्ञापन गोद भराई के रुप में करने में तनिक भी देर नहीं लगाते। अब चूंकि 26 जनवरी बीत गया, अगला विज्ञापनोत्सव इस वर्ष का 15 अगस्त को मनाया जायेगा। तब तक के लिए उन सारे लोगों को बधाई दे दीजिये, जिन्होंने विज्ञापनोत्सव का आनन्द आप सभी को दिलवाया और आपकी-हमारी बेवकूफी के मजे लिये।

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