एक बार फिर झारखण्ड विधानसभा के प्रेस दीर्घा से एक पत्रकार द्वारा अपने मोबाइल से सदन की वीडियो बनाने की कोशिश करते देखा गया
एक बार फिर झारखण्ड विधानसभा स्थित प्रेस दीर्घा में अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो गई। जब चल रहे बजट सत्र के चौथे दिन एक पत्रकार को प्रेस दीर्घा से ही अपने मोबाइल से सदन की वीडियो बनाने की कोशिश करते देखा गया। जब उक्त पत्रकार को कुछ पत्रकारों ने वीडियो बनाते देखा तो उसे उसी जगह कड़ी डांट पिलाई। तब जाकर वो वीडियो बनाने को कोशिश करनेवाला पत्रकार अपने मोबाइल को बंद किया तथा जल्द से प्रेस दीर्घा छोड़कर बाहर निकल गया।
जब एक पत्रकार ने वीडियो बनाने की कोशिश करनेवाले पत्रकार से उसका प्रवेश पत्रक देखने की इच्छा जाहिर की। तब देखा गया कि उसके पास प्रेस दीर्घा में बैठने के लिए उचित प्रवेश पत्रक यानी ग्रीन कार्ड तक नहीं था, बल्कि सफेद कार्ड था। तभी उक्त पत्रकार ने वहां डयूटी पर तैनात महिला पुलिस कर्मी से इस संबंध में जानकारी ली। तो वीडियो बनाने की कोशिश करनेवाला पत्रकार और ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मी का बयान एक ही था, कि उसे प्रेस दीर्घा में जाने की अनुमति विधानसभा के जनसम्पर्क अधिकारी गुलाम मोहम्मद सरफराज ने दी थी।
आश्चर्य इस बात की है कि प्रेस दीर्घा में प्रवेश करने के पूर्व और प्रेस दीर्घा के अंदर झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष के आदेशानुसार बड़े-बड़े अक्षरों में साफ लिखा गया है कि मोबाइल का उपयोग प्रेस दीर्घा में वर्जित है। उसके बावजूद प्रेस दीर्घा में कई पत्रकारों द्वारा मोबाइल का उपयोग करते हुए देखना सामान्य बात है, लेकिन अब तो यह भी देखने को मिलने लगा है कि लोग प्रेस दीर्घा में बैठकर सदन का वीडियो भी बनाने की कोशिश करने लगे हैं।
पकड़े जाने पर ये थेथरई करने से भी बाज नहीं आते और जो इसका विरोध करता है, उससे ही उलझने में शान समझते हैं। कई पत्रकारों को तो प्रेस दीर्घा में बैग ले जाते भी देखा जा सकता है। लेकिन यहां कोई बोलनेवाला नहीं। शायद ये लोग इंतजार कर रहे हैं कि कभी लोकसभा जैसा कोई हादसा हो, तब जाकर यहां लोग इन बातों पर संज्ञान लेंगे कि अनुशासन में रहना कितना जरुरी है।
कल झारखण्ड विधानसभा के कांफ्रेस हॉल में भी यह देखा गया कि जिन कुर्सियों पर प्रेस लिखा था। उन कुर्सियों पर अन्य लोगों ने कब्जा जमा लिया था और जो सही में पत्रकार थे, वे अपने लिए उचित कुर्सियों के लिए तरस गये। कई अधिकारी-कर्मचारी स्तर के लोगों को देखा कि प्रेस लिखी पर्ची को हटाकर, खुद उक्त कुर्सी पर बैठे हुए थे।
इधर कई पत्रकारों ने आशंका व्यक्त की है कि आगामी तीन मार्च को जब झारखण्ड का बजट पेश होगा। उस वक्त भी भारी संख्या में तथाकथित पत्रकार के नाम पर ऐसे-ऐसे लोग जुटेंगे, जिनकी पत्रकारिता या मीडिया से कोई लेना-देना नहीं हैं और यही लोग आगे-आगे चलकर सही मायनों में पत्रकारिता कर रहे लोगों को परेशानी में डालेंगे। जो हमेशा से देखा गया है।