धर्म

जब आप स्वयं को आध्यात्मिकता के प्रकाश से जगमग करेंगे, ईश्वर की दिव्यता को महसूस करेंगे, तभी आप सही में दीपावली मना पायेंगे – स्वामी अमरानन्द

क्या है दीपावली? किसने समझा है दीपावली को? जिसने दीपावली को समझ लिया वो स्वयं आध्यात्मिक प्रकाश से स्वयं को आलोकित कर लिया। वो प्रकाश्यमान हो गया। वो प्रेम व आनन्द को महसूस ही नहीं, बल्कि उसी में रम गया। ईश्वराधीन हो गया। ये बातें आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए वरीय संत स्वामी अमरानन्द ने कही।

चूंकि आज दीपावली पर्व है। प्रकाश पर्व है। ज्योति पर्व है। इसलिए उनका पूरा व्याख्यान लोगों को यह समझाने में लगा कि आखिर प्रकाश क्या है? लोग स्वयं को प्रकाशित होना क्यों चाहते हैं? स्वामी अमरानन्द ने आज सबसे पहले परमहंस योगानन्द से जुड़ी आध्यात्मिक डायरी में लिखी बातों को योगदा सत्संगियों के बीच रखी।

प्रेमावतार परमहंस योगानन्द ने भक्ति के बारे में बताते हुए कहा है कि प्रभु कहते हैं : “जो शरीर, मन और आत्मा में मुझे सर्वव्यापी नित्य-नवीन आनन्द — ध्यान के नित्य बढ़ते परमानन्द — के रूप में जानने के लिए संघर्ष, प्रार्थना, एवं ध्यान करता है, मेरे उस पुत्र की भक्तिमय पुकार का मैं मौन एवं गहन रूप से प्रत्युत्तर देता हूँ।”

स्वामी अमरानन्द ने कहा कि परमहंस योगानन्द जी हमेशा एक भजन गाते थे, जिस भजन को हमलोग भी समय-समय पर गाया करते हैं। उस भजन को गाते-गाते गुरुजी इस प्रकार ईश्वर के साथ हो जाते थे, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने उस भजन को इस बार रेखांकित भी किया। सचमुच वो भजन अद्वितीय है। भजन है – ‘कौन है मेरे मंदिर में, द्वार खुले सब अपने आप, दीप जले सब अपने आप, अंधेरा काले पंछी समान, दूर उड़े, दूर उड़ें …’

स्वामी अमरानन्द ने कहा कि दीपावली हमें प्रेम, ईश्वर की अनुभूति, प्रकाश की ओर चलने को प्रेरित करता है। हम ओम् तकनीक और क्रिया योग से स्वयं को प्रकाशित कर सकते हैं, उस अद्भुत प्रेम व प्रकाश को पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज के दिन मां काली की भी आराधना होती है। जिन्हें मां श्यामा भी कोई कहते हैं।

वो काली की आराधना क्या है? दरअसल अपने अंदर छुपी अंह की भावना को पूरी तरह समाप्त करने का एक प्रण है। आपने देखा होगा कि मां काली के एक हाथ में एक राक्षस का कटा मुख होता है। दरअसल वो संकेत है कि आप अपने अंदर छुपी बुराइयों और अहं को पहले नष्ट करें, बिना उसे नष्ट किये आप स्वयं को प्रकाशित नहीं कर सकते।

उन्होंने राम-कथा, नरकासुर की कथा तथा अन्य दृष्टांतों को बताते हुए यही कहा कि हम सभी को अपने अंदर व्याप्त बुराइयों को शमन करने का उपाय ढूंढना चाहिए और उसका एकमात्र उपाय है। गुरुजी के द्वारा बताये गये मार्ग का अनुसरण। उन्होंने कहा कि बुराई क्या है? दरअसल हर सकारात्मक या अच्छाई के प्रति विपरीत भाव ही बुराई है। हम दुनिया में आये हैं या हमें किसलिये भेजा गया? बुराई में लिप्त होने के लिए नहीं, बल्कि हमेशा प्रकाश की ओर बढ़ने के लिए। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए, बार-बार जो माया हम पर अपने ढंग से प्रभाव डालती है। उस माया पर अंकुश लगाने के लिए, लेकिन ये इतना आसान भी नहीं।

उन्होंने कहा कि ईश्वर/गुरु/दिव्य आत्माएं कभी किसी को सजा नहीं देते, वो तो आनन्द व स्वतंत्रता व आपके उत्तरोत्तर विकास के लिए सारे संसाधन प्रबंध करते हैं, अगर आप उसे चाहने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि कभी-कभी जो दिव्य आत्माएं संसार में आती हैं। वो हमारे कल्याण के लिए ही ईश्वर उन्हें भेजते हैं। इसे समझने की जरुरत है। भटकाने का काम तो माया का है। दिव्य आत्माओं का महान स्पन्दन हर कोई समझ नहीं सकता, लेकिन अगर कोई चाह लें तो ये असंभव भी नहीं।

दूसरी ओर इधर आज प्रातःकाल से ही दीपावली की सज्जा के लिए विशेष व्यवस्था में योगदा भक्तों को आश्रम में लगे देखा गया। कोई गुरुजी के लीची पेड़ के पास रंगोली बनाने में व्यस्त था तो कोई विद्युतीय लाइट को सजाने में अपना समय व्यतीत कर रहा था। कई विशेष दिये जलाने के लिए हर स्थान पर उन दियों को लगाने में लगा था। पूरा का पूरा आश्रम ऐसा लग रहा था कि जैसे अद्भुत शांति में समा गया हो। इसी बीच जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया। संध्या ने रांची के योगदा सत्संग मठ को अपने बाहों में लेना शुरु किया, पूरा मठ विशेष प्रकाश से जगमग कर उठा।