जो समय के महत्व को समझेंगे, वे ही पा-लो-ना के महत्व को समझेंगे
बात उन दिनों की है, जब मैं ईटीवी धनबाद कार्यालय में कार्यरत था। उसी दौरान ईटीवी हैदराबाद मुख्यालय से एक दिन पत्र आया कि हमें सात दिनों तक एंटी टूबैको कैंपेन चलाना है। आदेश मुख्यालय से था, तो इस पर कार्य करना ही था, कोई ना-नुकूर भी नहीं कर सकते थे, इसलिए हमने योजना बनाई कि इस कार्य को बेहतरीन ढंग से संपन्न करें। लगे हाथों प्लान बनाया और उस प्लान के अनुसार हमने कार्य प्रारंभ कर दिया। इसी बीच पता चला कि जिस दिन एंटी टूबैको कैंपेन की शुरुआत होनी है, उसी दिन विश्वहिन्दू परिषद और भाजपा के नेताओं ने भारत बंद का ऐलान किया है। भारत बंद का ऐलान सुनने के बाद हैदराबाद मुख्यालय से आदेश आया कि भारत बंद को देखते हुए, अब यह कार्यक्रम एक दिन बाद से शुरु होगा। हमें यह सुनकर बड़ा दुख हुआ कि क्या सिर्फ भारत बंद को देखते हुए इतना सुंदर कार्यक्रम स्थगित हो जायेगा।
मैंने संकल्प किया कि चाहे जो हो, भारत बंद कोई बुलाये, चूंकि हमने डेट तय कर दिया है, इसलिए पूरे देश में ईटीवी का यह कार्यक्रम भले ही दूसरे दिन से प्रारंभ हो, पर मैं उसी दिन यह कार्यक्रम शुरु करुंगा, जिस दिन पूर्व में घोषणा की गई थी और इस बात की सूचना हमने हैदराबाद मुख्यालय को दे दी। हैदराबाद में उस दिन इस कार्य को प्रसेनजीत सिंह राय देख रहे थे, उन्होंने भी अपनी सहमति दे दी। इधर एंटी टूबैको कैंपेन की शुरुआत हम किससे कराये। इस पर हम विचार करने लगे, पता चला कि धनबाद में ज्यादातर नेताओं, अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का समूह नशा के शिकार है, ऐसे में जो स्वयं नशा करें और दूसरों को नशा न करने की सलाह दें, तम्बाकू न खाने का सलाह दे, ये तो बहुत बड़ा मजाक है।
काफी दिमाग दौड़ाने के बाद पता चला कि अभी – अभी नये-नये धनबाद आये, मंडल रेल प्रबंधक अम्बरीश कुमार गुप्ता तम्बाकू या अन्य नशा का सेवन नहीं करते। मैं प्रसन्न हुआ, उनके कार्यालय गया। मैंने उनसे अपने कार्यक्रम के उद्घाटन की सहमति मांगी। उन्होंने बिना देर किये, अपनी सहमति देते हुए कहा कि इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है, मैं जरुर आऊंगा।
और वह दिन भी आ गया, जिस दिन धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर ईटीवी द्वारा आयोजित एंटी टूबैको कैंपेन का उद्घाटन होना था। हमारी आदत है कि कोई आये या न आये, पर कार्यक्रम मैं सही समय पर ही शुरु करता हूं, किसी का इंतजार नहीं करता, चाहे इसके लिए हमें कुछ भी झेलना क्यों न पड़ जाये… ये आदत मेरी बचपन से है। ऐसे भी, मैं आज भी कहीं भी जाता हूं या कोई काम करता हूं तो समय का ख्याल रखता हूं, जो समय का सम्मान करते है, मैं उन्हें तहेदिल से सम्मान भी करता हूं और जो समय का सम्मान नहीं करते, मैं उन्हें पहचानता तक नहीं हूं।
इधर हमारा उदघाटन का समय 9 बजे था, सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थी, पर किसी का कोई अता-पता नहीं था, धनबाद क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े रहमान और सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश राव का तो जवाब ही नहीं, जो भी कार्यक्रम करते, ये दोनों जरुर हमारे साथ रहते, उस दिन भी हमारे साथ थे। इधर प्रातः 8.58 हुआ, और अम्बरीश कुमार गुप्ता, मंडल रेल प्रबंधक, अपने नियत समय पर पहुंच गये, हमें बड़ी खुशी हुई, उस वक्त अन्य कोई था भी नहीं, गिने-चुने पांच लोग मौजूद थे, और हमने बिना किसी इंतजार के अम्बरीश कुमार गुप्ता से दीप प्रज्ज्वलित कराकर, कार्यक्रम का श्रीगणेश किया और पहला हस्ताक्षर बैनर पर उनका कराया, और इस प्रकार हमारा कार्यक्रम चल पड़ा, बाद में और लोग आये, पर मैं उन्हें पहचान ही नहीं रहा था…
इधर बहुत दिनों के बाद, धनबाद रेल मंडल कार्यालय में कार्यरत वरीय मंडल कार्मिक पदाधिकारी सुरेश चंद्र श्रीवास्तव ने हमें बताया कि जब प्रातः 8.40 पर उन्हें मंडल रेल प्रबंधक का फोन आया और उन्होंने बताया कि उन्हें, इस कार्यक्रम में जाना है, तो उन्होंने मंडल रेल प्रबंधक को बताया था कि मिश्रा जी समय के बहुत ही पाबंद है, इसलिए उनके कार्यक्रम में समय पर पहुंचना ही ठीक रहेगा और हुआ भी वहीं, अम्बरीश कुमार गुप्ता समय पर पहुंचे, अगर नहीं समय पर पहुंचते तो एक गलत मैसेज जाता।
इसमें कोई दो मत नहीं कि हमें बड़ी खुशी हुई थी – जब धनबाद रेल मंडल प्रबंधक अम्बरीश कुमार गुप्ता एकदम नियत समय पर हमारे कार्यक्रम में पहुंचे और मैने भी बिना किसी लाग-लपेट के कार्यक्रम की शुरुआत की।
आज एक बार फिर ऐसे ही एक अधिकारी से मुलाकात हुई, जो समय के बेहद पाबंद है। फिलहाल झारखण्ड में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव तथा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव पद पर कार्यरत है। 30 जुलाई 2017, दिन रविवार। रांची का आइएमए भवन। वहां पा-लो-ना नामक संस्था का कार्यक्रम था। शायद वे पा-लो-ना नामक एक पोर्टल का उद्घाटन करनेवाले थे। अपराह्ण 3 बजे कार्यक्रम का उद्घाटन होना था। कई राजनीतिज्ञों, अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों को निमंत्रित किया गया था। आम तौर पर जैसा कि होता है, ये लोग अपने-अपने समय पर आये, पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार अपने नियत समय पर उपस्थित थे। उन्होंने नियत समय पर उपस्थित होकर अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज करायी, बल्कि इस खुबसुरत कार्यक्रम के महत्व को समझा। उन्होंने इस अवसर पर बातें ही नहीं रखी, बल्कि कार्य करना भी शुरु कर दिया। उन्होंने स्वयं पहल की, एक बेहतर आवरण बनाने की। हर संभव सहयोग देने का वायदा नहीं, बल्कि उन्होंने सहयोग करना भी प्रारंभ किया, ताकि कोई नवजात बच्चा कहीं भी दीखे, उसे बचाया जा सकें, उसे ममता प्राप्त हो, उसे वह हर चीजे मिले, जो एक सामान्य घर में बच्चों को प्राप्त होता हो, सचमुच अगर ऐसे अधिकारी की संख्या झारखण्ड में बढ़े तो सचमुच झारखण्ड आगे बढ़ेगा। हम बधाई देते है पा-लो-ना की संस्थापिका मोनिका आर्या को, जिन्होंने उनके लिए कुछ सोचने की कोशिश की है, जिसे लोग कूड़े-कचरे में फेंकना ज्यादा पसंद करते हैं। बधाई, उन्हें भी जो इस महायज्ञ में शामिल है, बधाई संजय कुमार को जो समय के महत्व को समझते हैं…
ऐसे भी जो समय के महत्व को समझेंगे, वे ही पा-लो-ना के महत्व को समझेंगे, क्योंकि जो इस प्रकार का क्राइम करने को तैयार रहते है, जो इन नवजात बच्चों को फेंकने का काम करते है, उन फेंके हुए बच्चों को बचाने के लिए शुरुआती समय ही महत्वपूर्ण होता है, नहीं तो ये बच नहीं पायेंगे।