परमहंस योगानन्द ने बताया- जीवन क्यों और किसके लिए?
जब मैं रांची के योगानन्द पथ के आस –पास प्रतिदिन लाखों वाहनों व उनमें सवार लोगों को योगदा सत्संग मठ के समीप से गुजरते देखता हूं, तो मुझे आश्चर्य होता है कि ये कितने नादान है, जो उनके इतनी नजदीक बह रही आध्यात्मिक गंगा में डूबकी लगाने से वंचित हैं और जहां इस प्रकार की आध्यात्मिक गंगा नहीं हैं, वहां के लोगों का समूह बड़ी संख्या में यहां आकर इस आध्यात्मिक गंगा में स्नान कर स्वयं को प्रकाशित कर धन्य हो रहा हैं।
इस योगदा सत्संग मठ में बड़ी संख्या में विभिन्न देशों के लोग आकर परमहंस योगानन्द जी द्वारा यहां बिताये गये कुछ पलों का रसास्वादन करते हैं, महसूस करते हैं कि वो दिन कैसा रहा होगा, जब परमहंस योगानन्द जी ने अपने प्रिय शिष्यों को यहां प्राकृतिक वातावरण में क्रिया योग की शिक्षा दी होगी। उस सच्ची शिक्षा से अपने शिष्यों को साक्षात्कार कराया होगा, जो भीतर में निहित अनन्त ज्ञान भंडार को ऊपर ले आता है, क्योंकि सच्ची शिक्षा को बाह्य साधनों द्वारा न तो किसी के हृदय या मन में भरा जा सकता है अथवा ठूंसा जा सकता है।
मैं योगदा सत्संग विद्यालय का छात्र नहीं रहा हूं और न ऐसा सौभाग्य मिला है, वर्तमान में जो योगदा सत्संग विद्यालय चल रहे हैं, हमें नहीं लगता कि वे परमहंस योगानन्द के उन सच्ची शिक्षा के प्रति सचेत होंगे या उसे पाने की कोशिश कर रहे होंगे और न ही वैसे शिक्षक जो बच्चों में ऐसी शिक्षा पाने को विवश कर सकें, क्योंकि इसके लिए उच्च कोटि के आध्यात्मिक गुरुओं का होना भी आवश्यक है।
ईश्वरीय कृपा कहिये, मेरा ऐसे घर में जन्म हुआ कि शुरु से ही आध्यात्मिक भाव हमारे हृदय में भरते रहे। कुछ जीवन में ऐसी घटनाएं भी घटी जो उन आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करने के लिए हमें सचेष्ट करती रही। जब मैं ईटीवी रांची से जुड़ा तो हमारी पहली भेंट यहां के ब्रह्मचारी निष्ठानन्द जी से हुई, उस वक्त वे कमल जी के नाम से जाने जाते थे। मेरे दोनों बच्चे उस वक्त योगदा सत्संग विद्यालय जगन्नाथपुर के छात्र थे। मैंने अपने दोनों बच्चों का नामांकन इसलिए वहां कराया था, क्योंकि वहां डा विश्वम्भर मिश्र जैसे प्राचार्य थे, जिनके चरित्र व ज्ञान पर कोई अविश्वास का सवाल ही नहीं था। मैंने विश्वम्भर मिश्र के हाथों में अपने दोनों बच्चों का भविष्य सौंप दिया और निश्चिंत हो गया।
इसी दौरान मुझे एक दिन पता चला कि योगदा सत्संग मठ में साल भर में एक सप्ताह का विशेष शिविर चलता है, जिसमें योगदा स्कूल में पढ़ रहे बच्चे ही भाग लेते हैं, मैंने तुरंत कमल जी से अनुरोध किया कि वे मेरे एक बच्चे को उस विशेष शिविर में भाग लेने की अनुमति दिलवाएं, संयोग से यह संभव भी हो गया, जिसका प्रभाव मैं आज भी अपने छोटे बच्चे में देखता हूं।
कुछ इससे जुड़े चमत्कार को तो मैं आजीवन महसूस कर रहा हूं। मेरा छोटा बच्चा पढ़ने में सामान्य से भी कम था, किसी को आशा नहीं थी कि वो मैट्रिक पास भी कर सकेगा, लेकिन उसका मैट्रिक सेकेंड डिवीजन से पास करना, वह भी एक ही बार में मेरे सारे परिवार को आश्चर्य करता है। मेरा मानना था कि यह सब परमहंस योगानन्द जी के आशीर्वाद की ही कृपा थी, मैट्रिक पास करने के बाद उसमें जो परिवर्तन दिखे, वो गजब था। वो बड़ी तेजी से साहित्य और राजनीतिक विज्ञान में दिलचस्पी दिखाई, आज वह केन्द्रीय सेवा में है।
2014 में तो हमें ऐसी बीमारी हुई कि मुझे बचने की आशा ही नहीं थी, पर जैसे ही 2016 में परमहंस योगानन्द जी की कृपा हुई, वह बीमारी कहां गई, मुझे स्वयं आश्चर्य होता है। एक दिन जहां मेरा मकान बनना था, वहां बोरिंग कराने की मैंने सोची। आसपास के लोगों ने मुझे पानी जांच कराने को कहा, पास के ही एक बोरिंग करनेवाले एक व्यक्ति ने मुझे एक व्यक्ति का फोन नंबर दिया और बताया कि यह आदमी आपके जमीन पर आकर बता देगा कि कहां पानी है? आप वहां आराम से पानी के लिए बोरिंग करा लीजिये।
जल्दी ही उस व्यक्ति से मैंने संपर्क किया। उसने डेढ़ हजार रुपये लिए और जांच करना शुरु किया तथा बताया कि इस जमीन के अंदर पानी नहीं है। यह सुनते ही मेरे पूरे परिवार की सिट्ठी-पिट्ठी गुम हो गई। मैंने उसके बात किसी की नहीं सुनी, परमहंस योगानन्द जी का नाम लिया, दूसरी जगह से बोरिंग वाले को बुलाया और अपनी सुविधानुसार बोरिंग करा दी, मात्र 220 फीट की दूरी पर ही पानी निकल आया, और वह भी तीन लेयर का।
इसके बाद आगे की कहानी सुनिये, 6 दिसम्बर 2019 को घर का निर्माण शुरु हुआ। पहली बार, नींव के लिए कंक्रीट के खंभे बनने के लिए ढलाई शुरु हुई और लीजिये इंद्रदेव भी ऐसे परेशान कर दिये, इंद्रदेव कंक्रीट के खंभे बनने से रोकने में तथा सामानों को नष्ट करने में दिमाग लगा दी थी, कम से कम डेढ़ लाख का नुकसान होना तय था, क्योंकि लोग बताते है कि पास के ही एक पड़ोसी का इसी प्रकार का काम हो रहा था।
पानी ने ऐसा कहर ढाया कि उनका दो लाख से ज्यादा का नुकसान हो गया, लेकिन मैंने जैसे ही योगदा सत्संग आश्रम का रुख किया और परमहंस योगानन्द जी की प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना शुरु किया, बारिश की बूंदों पर रोक लग चुकी थी। ऐसी अनेक घटनाएं मेरे जीवन से जुड़ी है, जो बताने के लिए काफी है कि परमहंस योगानन्द जी की कृपा हमारे उपर कैसे बनी हुई है। आज भी मुझे कोई परेशानी होती है, तो मैं कही नहीं जाता, बस परमहंस योगानन्द जी की ओर देखता हूं।
हमें खुशी इस बात की है कि मेरा छोटा सा परिवार किसी न किसी रुप में परमहंस योगानन्द जी से जुड़ा रहा। मेरी पत्नी स्वयं योगानन्द कन्या विद्यालय की छात्रा रही। दोनों बच्चे योगदा सत्संग स्कूल में ही पढ़े। मैं हरदम योगदा सत्संग मठ जाकर परमहंस योगानन्द जी से आशीर्वाद लेता रहता हूं।
मेरा तो अनुभव बताता है कि मैंने जब भी योगदा सत्संग मठ की ओर रुख किया, वहां के पेड़-पौधों ने आध्यात्मिक सुख प्राप्त करने का वो वातावरण तैयार किया कि हम आज स्वयं को बेहतर स्थिति में पाते हैं। हमें खुशी है कि परमहंस योगानन्द ने इतनी कृपा कर दी कि उन्होंने अपने पास रखने के लिए मुझे रांची में ही रहने के लिए शरण दे दी, वो सारी व्यवस्था कर दी कि हमें कही जाने की जरुरत नहीं।
ऐसे भी हमें क्या चाहिए, एक व्यक्ति को क्या चाहिए, सभी तो परमहंस योगानन्द जी की कृपा से प्राप्त हो ही रहा हैं, और जो नहीं भी प्राप्त हुआ है, जिसे प्राप्त करना मेरे लिए जीवन में जरुरी है, परमहंस योगानन्द जी की कृपा से वह प्राप्त हो ही जायेगा, तो फिर चिन्ता किस बात की।
जब चिन्ता करनेवाले स्वयं परमहंस योगानन्द हो, तो फिर उस व्यक्ति को कष्ट कैसे हो सकता हैं। मैं इन्हें पूरब और पश्चिम के बीच की आध्यात्मिक कड़ी नहीं मानता, मैं तो महसूस करता हूं कि ब्रह्मांड की एक-एक कड़ी को संपूर्णता प्रदान करनेवाले परमहंस योगानन्द जी का जन्मदिवस संपूर्ण जीवों के लिए आनन्द प्रदान करनेवाला हैं, तभी तो जिस मठ में परमहंस योगानन्द जी ने अपना समय गुजारा, वहां की दीवारें, पेड़-पौधे, तक गुरुजी के बिताये दिनों के पलों का ऐहसास करा देते हैं, वो यह भी ऐहसास करा देते है कि जीवन क्यों और किसके लिए?