धर्म

परमहंस योगानन्दजी की जयंती पर विशेष – अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।

कल परमहंस योगानन्द जी की जयन्ती है। किसी भी योगदा भक्तों के लिये यह दिन सामान्य नहीं होता। हर योगदा भक्त चाहता कि वो इस दिन अपना ज्यादा समय अपने गुरु के सान्निध्य में बिताये। ऐसे तो विश्व के किसी भी देश के किसी भी कोने में जहां भी योगदा संन्यासियों द्वारा बनाये गये ध्यान केन्द्र हैं, वहां इस दिन विशेष आयोजन होते हैं। लेकिन रांची में परमहंस योगानन्द जी के जन्मोत्सव की बात कुछ और ही होती है। शायद यही कारण है कि देश-विदेश में जितने भी योगदा भक्त हैं, वे चाहते है कि कुछ दिन या कुछ पल हम रांची में जरुर बितायें।

हमें आश्चर्य होता हैं कि भारत में ही दूसरे शहरों में रहनेवाले लोग जो योगदा से जुड़े हैं, वे जितना रांची को जानते हैं। आजकल उतना तो रांची में रहनेवाले लोग रांची को नहीं जानते। शायद यही कारण है कि यहां बड़ी संख्या में देश के छोटे-बड़े नगरों-महानगरों व गांवों-अंचलों से यहां लोगों के आने का सिलसिला अनवरत् जारी है। हाल ही में जब दक्षिण के महानायक रजनीकांत और क्रिकेट जगत् से जुड़े महान खिलाड़ी विराट कोहली जब रांची के योगदा सत्संग आश्रम आकर कुछ पल यहां के संन्यासियों के साथ बिताये तो यह शहर फिर चर्चा में रहा।

हमारे विचार से ऐसे बहुत कम ही स्थान हैं। जहां ईश्वरीय कृपा बरसती हैं। उनमें से एक स्थान रांची भी हैं, यह कहने में मुझे अब कोई झिझक नहीं होती। हाल ही में एक विदेशी युवती जो परमहंस योगानन्द जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर योगदा से जुड़ी थी, तो उनका दौरा रांची हुआ था। वो यहां आकर भाव-विह्वल थी। आश्रम के एक-एक स्थान से जुड़कर वो परमहंस योगानन्द जी के द्वारा यहां बिताये गये पल को महसूस करने की कोशिश कर रही थी।

वो सोच रही थी कि आज की रांची और आज से 100 साल पहले की रांची कैसी रही होगी। उस विकट परिस्थितियों में कैसे परमहंस योगानन्द जी यहां योगदा की शिक्षा दिये होंगे। यह सोचकर वो विस्मय से भर जाती और फिर परमहंस योगानन्द जी को याद करते हुए प्रसन्नता से भरकर यहां लोगों को टहलते हुए देख आनन्द से भर जाती। इस आनन्द में ही, उस विदेशी युवती के मुख से यह निकला था कि यहां के लोग कितने भाग्यशाली हैं, जो रांची में रहते हैं।

आज भी जब मैं उस विदेशी युवती के उस ऐहसास को देख समझ कर जब मैं इस पर खुद से विमर्श करता हूं तो पाता हूं कि उस विदेशी युवती ने गलत नहीं कहा था। सचमुच रांची के लोग भाग्यशाली है, क्योंकि यहां योगदा सत्संग आश्रम है। यहां परमहंस योगानन्द जी ने अपना बहुमूल्य समय बिताया है। यहां अपने हाथों से आश्रम की स्थापना व स्कूल खोलें, जो मील के पत्थर साबित हुए।

आज भी जब भी कोई इस आश्रम में आता हैं तो यहां की आबो-हवा व शांत वातावरण उसे अध्यात्म की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं है। मैंने तो कइयों को देखा है कि जो नाना प्रकार के कष्टों से युक्त थे। यहां से जुड़ने के बाद उनकी बीमारियां कहां गई। यह देखकर वे खुद आश्चर्य में पड़ गये और जब परमहंस योगानन्द जी कृपा हो गई तो फिर वे यही के होकर रह गये।

मैंने तो यह भी देखा है कि हर एक-दो मिनट में इस आश्रम के चारों ओर से सैकड़ों छोटी-बड़ी गाड़ियां गुजर जाती हैं। जिसमें हजारों लोग सवार रहते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं रहता कि जिन मार्ग से वे गुजर रहे हैं। वो मार्ग से ही सटे इस आश्रम में अध्यात्म का वो प्रकाश बिखरा है कि उसके स्पर्श मात्र से उसका जीवन आलोकित हो सकता है। लेकिन इनमें से कुछ ही लोगों को यह सौभाग्य प्राप्त हो पाता है कि वे आश्रम में प्रवेश कर पाते हैं। रांची की आबादी भी कोई कम नहीं हैं। झारखण्ड की राजधानी बनने के बाद इसकी जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

लेकिन उस आबादी में शामिल रहनेवालों बहुसंख्यकों को नहीं पाता कि यह आश्रम उन्हें मुक्ति प्रदान कर सकता है। यहां हमेशा बड़े-बड़े कार्यक्रम होते हैं। लेकिन यहां वहीं पहुंच पाता है, जिन पर ईश्वरीय कृपा होती है। ज्यादा लोगों की जिंदगी खत्म हो जाती है और रांची में रहकर अपने ही शहर में इस स्वर्गिक आनन्द को देनेवाले स्थान के सुख से वंचित रह जाते हैं। सचमुच यह विडम्बना नहीं तो और क्या है?

रांची से हावड़ा और हावड़ा से रांची तक एक ट्रेन चलती है। उसका नाम क्रियायोग एक्सप्रेस है। रांची से ही उसका नाम जुड़ा है, दूसरे अन्य शहरों में बसे लोग क्रिया योग और परमहंस योगानन्दजी को जानते हैं। लेकिन रांची निवासियों को पता नहीं। यह तो वहीं बात हो गई। किसी कवि ने कहा – पानी बीच मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवत हांसी। मतलब पानी में रहकर मछली प्यासी है, यह सुनकर उसे हंसी आ रही हैं।

ठीक उसी प्रकार आप रांची में रहते हैं और आपको न तो परमहंस योगानन्द जी के बारे मे मालूम हैं और न ही क्रियायोग में। आपको माया ने इस प्रकार से जकड़कर रखा है कि आप को भी माया में ही आनन्द हैं और उससे निकलने की कोशिश भी नहीं करते। समय-समय पर ईश्वर आपका मार्गदर्शन भी करता है कि देखों जिनके बैंटिंग को देख तुम इतराते हो, जिनके अभिनय को देख तुम बहुत ही प्रसन्नचित हो जाते हो, वे भी यहीं आकर प्रसन्नता और आनन्द को ढूंढ रहे हैं, लेकिन तुम्हें तो असली आनन्द चाहिए ही नहीं। ऐसे में तुम्हारे उपर ईश्वरीय कृपा कैसे होगी?

एक बार किसी व्यक्ति ने योगदा संन्यासी से इसी प्रकार का सवाल पूछा कि रांची में ही कई लोगों को पता नहीं है कि यहां इतना बड़ा आध्यात्मिक केन्द्र हैं। लेकिन दूसरे राज्यों के लोगों को हैं। उन्हें भी दूसरे राज्यों के लोगों से पता चला कि रांची में इतना बड़ा आध्यात्मिक केन्द्र हैं। आखिर इतना विरोधाभास क्यों? योगदा संन्यासी ने बड़ा ही सुंदर जवाब दिया था। उन्होंने कहा कि आपको जब प्यास लगती हैं तभी पानी पीते हैं। आपको भूख लगती है, तभी भोजन करते हैं।

आपको जब ठंड लगती है तभी आप ठंड से बचने के लिए गरम कपड़े पहनते हैं। जिस दिन आपको ईश्वरीय सत्ता का ऐहसास हो जायेगा। उनके प्रेम को समझ लेंगे। आपको योगदा सत्संग आश्रम भी समझ में आ जायेगा। आप यहां आने लगेंगे। आपमें स्वयं में सुधार हो जायेगा। लेकिन यह तभी संभव है। जब आपके उपर ईश्वरीय कृपा होगी। जब उक्त संन्यासी ने यह बात कही थी। तो हमें गोस्वामी तुलसीदास के श्रीरामचरितमानस की वो चौपाई याद आ गई – अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।