राजनीति

‘पत्थलगड़ी’ यानी झारखण्ड में भाजपा के अंत का प्रारम्भिक अध्याय

जहां की सरकार अपने नाकाबिल एवं भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के सम्मान की रक्षा के लिए जब सदन को दांव पर लगा देती है, जहां की सरकार अपने विपक्षी नेताओं के साथ दुर्व्यवहार करते हुए, उनके साथ गाली-गलौज पर उतर आती है, जहां की सरकार सबका साथ सबका विकास के नारे का मुखौटा ओढ़कर एक खास वर्ग को फायदा पहुंचाना शुरु कर देती है, जहां की सरकार संघ का अपहरण कर अपनी व्यापार की रोटी सेकनेवाले व्यापारियों की आर्थिक समृद्धि पर ध्यान देने लगती हैं, जहां की सरकार संविधान को ताक पर रखकर कनफूंकवों के बताये मार्ग का अनुसरण करती है, उस राज्य में पत्थलगड़ी होना सामान्य सी बात हो जाती है, और इस पत्थलगड़ी को चुनौती देना, सरकार के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि खतरे की घंटी बजने का संकेत भी दे जाती हैं।

इन दिनों रांची से करीब 30-35 किलोमीटर की दूरी पर खूंटी के कुछ गांवों में हो रही पत्थलगड़ी ने रघुवर सरकार के होश उड़ा दिये हैं, तथा एक बहुत बड़ी राजनीतिक उलट-फेर के संकेत भी दे दिये हैं, आनेवाले समय में अब इन इलाकों में शायद ही कमल के फूल दिखाई पड़ें, ये भाजपा नेताओं को समझ में आने लगा है, इसलिए अब पत्थलगड़ी पर इन इलाकों के भाजपा नेता कुछ भी बोलने से डरते हैं।

इधर एक महीने से पत्थलगड़ी हो रहे इलाकों में राज्य सरकार के पुलिस तंत्र ने दबिश बढ़ाई है, कई लोगों को जेल के अंदर बंद किया गया, ऐसे में सरकार को लगा कि वे ऐसा कर पत्थलगड़ी किये जानेवाले इलाकों में राज्य सरकार के खिलाफ बढ़ रहे जनाक्रोश को रोक लेंगे, पर ऐसा होता नहीं दीखता, ये जनाक्रोश और उग्र होता दीख रहा है। कल छह गांवों में की गई पत्थलगड़ी और उन इलाकों में उमड़ा सैलाब बता रहा कि अब ग्रामीण जनता, सरकार को जवाब देने के मूड में हैं। वे तो कहने लगे है कि पत्थलगड़ी, उनका संवैधानिक अधिकार है, उसे कोई छीन नहीं सकता।

पत्थलगड़ी होना या लगना, ऐसा नहीं कि आदिवासी इलाकों में यह पहली बार हो रहा है, इसके पूर्व भी यह कार्यक्रम चलता रहा है, पर इधर के कुछ महीनों में जिस प्रकार से पत्थलगड़ी प्रारंभ हुई और इन पत्थलगड़ी से झारखण्ड में जो राजनैतिक उठा-पटक होने के संकेत मिले, उससे राज्य सरकार की नींद उड़ गई, और इस पर कड़ा ऐक्शन लेना शुरु किया। पहले तो विज्ञापन के माध्यम से रघुवर सरकार ने अपनी बात रखनी शुरु की।

विभिन्न अखबारों में विज्ञापन निकाले गये, पर जब विज्ञापन का कोई असर नहीं दिखा तो वे सख्ती पर उतर आये। इसी बीच जो लोग पत्थलगड़ी के माध्यम से ग्रामीणों को संगठित कर रहे थे, तथा उन्हें उनका संवैधानिक हक बता रहे थे, उन्होंने इस पत्थलगड़ी को क्रांति का शक्ल दिया, जिसमें वे कामयाब हुए। कामयाबी ऐसी कि आज चुनाव हो, तो वे इन इलाकों में विधानसभा व लोकसभा का चुनाव आराम से जीत सकते हैं, तथा दूसरों को जीतवा भी सकते हैं।

यहीं नहीं, जिन अखबारों ने पत्थलगड़ी प्रकरण पर गलत रिपोर्टिंग की, उन अखबारों पर भी इन पत्थलगड़ी से जुड़े लोगों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया, यहीं नहीं कई इलाकों में उस अखबार के प्रतियों को भारी संख्या में जलाया गया। कुछ आंदोलनकारी तो एक अखबार के कार्यालय में जाकर, उस अखबार के कथित वरीय संवाददाता का, ऐसा क्लास लिया कि वह संवाददाता इस घटना को जिंदगी भर याद रखेगा, यही नहीं उक्त आंदोलनकारियों ने इस घटना का फेसबुक लाइभ भी किया, जिस पर सैकड़ों आदिवासी युवाओँ ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, कई ने उक्त संवाददाता और अखबार के खिलाफ केस करने की भी सलाह दी, सूत्रों की माने तो इनलोगों ने उक्त अखबार और उक्त संवाददाता के खिलाफ लीगल नोटिस भी भेजा है।

आखिर खूंटी के इलाकों में ऐसी घटना क्यों घटी?  उसका मूल कारण है, इन इलाकों में सरकार द्वारा की गई झूठी घोषणाएं तथा उन घोषणाओं का जमीन पर न उतरना। आज भी इन इलाकों में आधारभूत संरचनाओं का घोर अभाव है, न सड़क है, न बिजली है और न पानी है, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति इतनी खराब है कि लोग आज भी आदिम युग में जी रहे हैं, ऐसे में ये आदिवासी क्या करें?  किस पर विश्वास करें?  जो इन इलाकों में दबंग हैं, वे गलत कार्यों में लिप्त होकर, प्रशासन के साथ अच्छी पैठ बनाकर, पूरे गांव को ही बर्बाद कर रखा है, ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो गांव के लोगों के बीच जाकर कुछ भी बेहतरी की बातें करता है, तो वे उन पर विश्वास कर बेहतरी की आस लगाकर बैठ जाते हैं, पर अंततः वहीं होता है, जो वे सदियों से भोगते आ रहे हैं।

इधर कुछ पत्थलगड़ी के बीच नई चीजें देखने को मिल रही हैं। धीरे-धीरे लोगों का इन इलाकों में सरकारी योजनाओं से विश्वास उठता जा रहा हैं, लोगों ने स्वयं अपने गांवों को आगे बढ़ाने की सोची है, अब वहां के पढ़े लिखे युवाओं की टीम खुद गांवों में बच्चों को पढ़ा रही हैं, और ग्रामीण अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में जाने से रोक रहे हैं, लोगों का पंचायत से विश्वास उठता जा रहा हैं और ये ग्राम सभा को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, उनका कहना है कि जब संविधान ने उनकी ग्राम सभा को जब सारे अधिकार दे रखे हैं, तो फिर उन्हें संविधान से सब कुछ प्राप्त करना है, वे केन्द्र या राज्य सरकार के क्रियाकलापों या योजनाओं के पचड़ें में क्यों पड़े?

इन दिनों रांची से प्रकाशित सभी अखबारों ने सारे काम-काज छोड़कर प्रतिदिन पत्थलगड़ी पर विशेष रिपोर्टिंग की खबरें प्रकाशित कर रहे हैं, शायद उन्हें पता चल गया हैं कि यह मामला राज्य की राजनीति के लिए हॉट केक है, हालांकि पत्थलगड़ी पर विद्रोही24. कॉम ने पहले ही संकेत दे दिया था कि आनेवाले समय में पत्थलगड़ी यहां की सरकार को हिला कर रख देंगी, फिलहाल सरकार हिलने लगी हैं, अगर 2019 तक इसे हिलाकर रखा गया तो विधानसभा चुनाव में इसे कबाड़ कर फेंकने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

सचमुच इन इलाकों में कुछ गिने-चुने आदिवासी युवकों की टीम ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से पत्थलगड़ी योजनाओं को इस प्रकार से जनता के बीच रखा है कि अब रघुवर सरकार जो भी कर लें, इन ग्रामीणों को समझा पाना, सरकार और सरकार के लोगों के बूते के बाहर हैं, और जो ये सोचते है कि रघुवर सरकार 2019 में पुनः सत्ता में आ जायेगी, वो समझ लें, कि कल की खूंटी के 6 गांवों में पत्थलगड़ी की घटना बता रही हैं कि गांवों में जनता संकल्प कर चुकी हैं, कि वे रघुवर सरकार को सत्ता से हटाकर रहेंगे, और इसकी उलटी गिनती शुरु हो चुकी है।