अपनी बात

हेमन्त के जाने पर भले ही भाजपा और मीडिया से जुड़े लोग आज खुशियां मना लें, पर इसके राजनीतिक दुष्परिणाम अंततः भाजपा को ही झेलने पड़ेंगे, झामुमो को नहीं

जैसा कि सर्वविदित था। हुआ भी वही। हेमन्त सोरेन ने राज भवन जाकर आज अपना इस्तीफा सौंप दिया है। हेमन्त सोरेन की जगह चम्पई सोरेन ने ले ली है। पिछले कई दिनों से चल रही अटकलों का एक तरह से विराम लग गया है। भाजपा के नेता हेमन्त सोरेन के सत्ता से हटने की घटना को अपनी जीत मानकर खुश हो रहे है। झामुमो कार्यकर्ता अपने नेता हेमन्त सोरेन के सत्ता से हटने के गम में डूबे हैं। राजनीतिक पंडितों का अनुमान लगाने का क्रम अभी भी जारी है। ईडी एक तरह से अपना काम कर चुकी है। वो हेमन्त सोरेन को गिरफ्तार कर चुकी है। लेकिन इन सारी घटनाओं का लब्बोलुआब क्या है?

लब्बोलुआब यह है कि भाजपा झारखण्ड में अपनी एक शक्तिशाली विरोधी राजनीतिक हस्ती, जिसका जवाब उसके पास नहीं था, जिसकी शक्ति के आगे प्रदेश ही नहीं, बल्कि भाजपा के बहुत सारे केन्द्रीय सारे नेता पानी भरते नजर आते थे। फिलहाल अपने रास्ते से हटा दिया है। ताकि वो 2024 की लोकसभा चुनाव में आसानी से झारखण्ड की सभी 14 लोकसभा सीटों को फतह कर सकें। हो सकता है कि उसे आंशिक रुप से कामयाबी भी मिले। लेकिन जिस प्रकार से भाजपा के प्रदेश व केन्द्रीय नेताओं तथा राजभवन ने हेमन्त सोरेन को लेकर पिछले कई सालों से राजनीतिक घटनाक्रमों को अंजाम दिया, उसका दुष्परिणाम भी भाजपा को ही झेलना होगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो पिछले तीन दिनों से जिस प्रकार से हेमन्त सोरेन पर भाजपा द्वारा निम्नस्तर के हमले शुरु हुए, वो राजनीति के गिरते स्तर को प्रदर्शित करता है। यह गिरता स्तर भाजपा को ही एक न एक दिन प्रभावित करेगा, क्योंकि राजनीतिक जवानी कभी न कभी तो पिघलेगी ही, उसके बाद क्या होगा? उसे खुद ही पता चल जायेगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भगोड़ा शब्द से हेमन्त सोरेन को जो भाजपा ने विभूषित किया, उन पर 11000 रुपये के इनाम रखे, कुछ नेता थाना जाकर उनके लापता होने का सनहा भी दर्ज करा दिया। ये बताता है कि भाजपाइयों ने कैसे राजनीतिक मर्यादाओं का हनन किया। हालांकि इसका जवाब झामुमो के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने समय-समय पर अपने संवाददाता सम्मेलन में जरुर दिया।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा में ज्यादातर नेता जो हेमन्त सोरेन पर राजनीतिक वार कर रहे थे। उनकी जन्मकुंडली देखा जाये तो ज्यादातर वे भगोड़े ही साबित होंगे। कभी झामुमो के नेता रहे अर्जुन मुंडा, आज भाजपा में हैं और केन्द्रीय मंत्री बने हुए हैं। आज नेता प्रतिपक्ष हो या भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कभी न कभी दूसरे दलों में रहे ही हैं और वहां से भाग कर ही, भाजपा में जमें हैं। इसलिए भगोड़ा शब्द कहां फिट हो रहा हैं। ये तो सामान्य जनता भी जानती है। लेकिन हेमन्त सोरेन कल भी झामुमो में थे और आज भी झामुमो में हैं। उन्होंने अपनी इस छोटी सी राजनीतिक कालखंड में स्वयं को देश की राजनीति में स्थापित ही नहीं किया, बल्कि लोहा भी मनवाया।

जब भी कोरोना की बात आयेगी। इस शख्स की अपने राज्य की जनता के प्रति की गई सेवा को लोग कभी भूला ही नहीं पायेंगे। भाजपा के शासनकाल में तो भूख से मौत की खबर आई, लेकिन कोरोना में जब भूख से मौत की खबर सामान्य हो सकती थी, इस व्यक्ति ने किसी को भूख से मरने नहीं दिया। यहां तक की अपने लोगों को बचाने के लिए केन्द्र से टक्कर लिया और कोरोना में अगर पहली ट्रेन चली तो वो ट्रेन तेलगांना से झारखण्ड के लिए चली।

आदिवासियों-मूलवासियों को बचाने के लिए चली, जो उस दौरान उन राज्यों में जलालत भरी जिंदगी जीने को मजबूर थे। जब कहने को अमीर राज्य गुजरात-महाराष्ट्र से लोग भगाये जा रहे थे, तब वहां के मुख्यमंत्रियों ने इन्हें संरक्षण देने का काम नहीं किया, लेकिन हेमन्त सोरेन ने वो किया, जो कोई भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं कर सका। हेमन्त सोरेन ने तो राज्य के सभी थानों में एक तरह से तीनों टाइम का लंगर तक खुलवा दिया था। जहां गरीब लोग जाकर तीनों टाइम भोजन किया करते थे।

हेमन्त सोरन ने वो काम किया है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। आज जितना आरोप हेमन्त सोरेन पर भाजपा या उनके विरोधी लगा लें। लेकिन राज्य की जनता के दिलों से उस व्यक्ति को कोई निकाल नहीं सकता। हेमन्त सोरेन की स्थिति ठीक सामाजिक न्याय के पुरोधा लालू प्रसाद यादव के जैसे ही हो गई है। जैसे लालू यादव न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये जाने के बावजूद बिहार और सामाजिक न्याय पर विश्वास रखनेवालों के बीच आज भी लोकप्रिय है। ठीक उसी प्रकार हेमन्त पर ईडी जो भी आरोप लगा दें। इनकी लोकप्रियता पर कोई आंच नहीं आयेगी। ये अक्षरशः सत्य हैं।

हालांकि कुछ दिनों से हेमन्त सोरेन के विरोध में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग देखते ही देखते मुखर हो गया। हालांकि ये मुखर उस वक्त भी था, जब उन्होंने 2019 में सत्ता संभाली थी। लेकिन जब-जब हेमन्त सोरेन के खिलाफ कुछ राजनीतिक षडयंत्र होता। ये मीडिया वाले और उनके खिलाफ मुखर हो जाते। आज जैसे ही हेमन्त सोरेन की सत्ता से हटने की खबर आई है। मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग आनन्दित है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं हैं। कइयों के लिए आज का दिन बहुत खुशियां लेकर आया है।

इधर ईडी के आज के कार्य से मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग और भाजपा के बहुत सारे नेता खुश हैं। खुश होना भी चाहिए। राजनीति में शह और मात का खेल तो जारी ही रहता है। लेकिन आनेवाला इतिहास तो लिखेगा कि केन्द्र, राजभवन, ईडी, भाजपा और मीडिया के इस बहुकोणीय संघर्ष में हेमन्त सोरेन अकेला खड़ा रहा। अकेला संघर्ष करता रहा। कई दबाव आये। लेकिन वह अजीत पवार बनने को तैयार नहीं हुआ। वो नीतीश कुमार बनने को तैयार नहीं हुआ। वो भगोड़ा बनने को तैयार नहीं हुआ।

वो राजनीतिक संघर्ष करता हुआ पद को ठोकर मारने को तैयार हो गया, गिरफ्तार हुआ। लेकिन, वो किसी के आगे नहीं झूका और यही इस व्यक्ति की राजनीतिक इच्छा शक्ति 2024 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में राजनीतिक तूफान खड़ा करेगी। वो जेल मे भी रहेगा तो उसकी एक राजनीतिक अपील लोगों के जेहन तक पहुंचकर एक राजनीतिक बवंडर खड़ा करेगी और सभी को परास्त करेगी। यह ब्रह्मवाक्य है। सभी को गांठ बांध लेना चाहिए। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं।